सावन का महीना: भगवान शंकर को कैसे चढ़ाना चाहिए बिल्व पत्र ताकि मिले लाभ

Update: 2018-07-23 05:55 GMT

सहारनपुर: सावन के महीने में भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा अनेकों प्रकार के जतन किए जाते हैं। नाना प्रकार के भोग अर्पित करने के साथ ही फल और फूल भी अर्पित किए जाते हैं लेकिन इन सबसे इतर एक खास और सामान्य बात यह है कि सभी लोग भगवान शंकर को बिल्व पत्र अर्पित करते हैं। मगर अधिकांश लोग आज भी यह नहीं जानते हैं कि बिल्वपत्र कैसे भगवान शंकर को अर्पित करना चाहिए, शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य पंडित मदन गुप्ता सपाटू बताते हैं कि शिवलिंग पर बिल्वपत्र को अर्पित करने से भगवान शंकर जल्द ही प्रसन्न होते हैं। हम सभी ने गर्मियों में बेल का शरबत सेंवन किया होगा। बेल वात, पित्त व कफ को नियन्त्रित करता है तथा पाचन संस्थान को बलवान बनाता है।

आयुर्वेद में बेल की बड़ी महिमा बताई गई है। यह एक जगंली पेड़ जो आम-तौर पर लोग अपने घर में इसे नहीं लगाते है। बेल की पत्तियों को जितना तोड़ा जायेगा इस पेड़ का उतना ही विकास होगा। यह प्रकृति की अनमोल कृति बची रही है, इसलिए इसकी पत्तियों को भगवान शंकर पर चढ़ाया जाता है।

बिल्वपत्र कैसे चढ़ायें?

  • बिल्वपत्र भोले नाथ पर सदैव उल्टा रखकर अर्पित करें। यानि जिस तरफ से बिल्वपत्र चिकना हो, उस तरफ से शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए।
  • बिल्वपत्र में चक्र एवं वज्र नहीं होने चाहिए। कीड़ो द्वारा बनायें हुए सफेद चिन्हों को चक्र कहते है और डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं।
  • बिल्वपत्र कटे या फटे न हो। ये तीन से लेकर 11 दलों तक प्राप्त होते है। रूद्र के 11 अवतार है, इसलिए 11 दलों वाले बिल्वपत्र चढ़ायें जाये तो महादेव ज्यादा प्रसन्न होंगे।
  • बिल्वपत्र चढ़ाने से तीन जन्मों तक पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • शिव के साथ पार्वती जी पूजा अवश्य करें तभी पूर्ण फल मिलेगा।
  • पूजन करते वक्त रूद्राक्ष की माला अवश्य धारण करें।
  • भस्म से तीन तिरछी लकीरों वाला तिलक लगायें।
  • शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करें।
  • शिव जी पर केंवड़ा व चम्पा के फूल कदापि न चढ़ायें।

पूजन के लिए मंत्र

  • ऊॅ अघोराय नामः
  • ऊॅ शर्वया नमः
  • ऊॅ महेश्वराय नमः
  • ऊॅ ईशानाय नमः
  • ऊॅ शूलपाणे नमः
  • ऊॅ भैरवाय नमः
  • ऊॅ कपर्दिने नमः
  • ऊॅ त्रयम्बकाय नमः
  • ऊॅ विश्वरूपिणे नमः
  • ऊॅ विरूपक्षाय नमः
  • ऊॅ पशुपते नमः

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