Motivational Story Hindi: श्री ब्रह्मचैतन्य महाराज गोंदवलेकर

Motivational Story Hindi: भगवान का अस्तित्व जहाँ देखें वहाँ हैं । भगवान का मर्म जानने के लिए हमें कैसा बर्ताव करना चाहिए, यह पहले देखें । भगवान हैं या नहीं यह जानने के लिए हमें बुद्धि दी गई है । कुछ लोगों को अनुभव से निश्चित ज्ञात हुआ है कि भगवान हैं ।

Newstrack :  Network
Update:2023-11-27 20:50 IST

श्री ब्रह्मचैतन्य महाराज गोंदवलेकर: Photo- Social Media

Motivational Story Hindi: भगवान का अस्तित्व जहाँ देखें वहाँ हैं । भगवान का मर्म जानने के लिए हमें कैसा बर्ताव करना चाहिए, यह पहले देखें । भगवान हैं या नहीं यह जानने के लिए हमें बुद्धि दी गई है । कुछ लोगों को अनुभव से निश्चित ज्ञात हुआ है कि भगवान हैं । उनके आर्षवाक्य को हमने प्रमाण माना । भगवान यदि निश्चित हैं तो हम उसे आखिर जाने भी कैसे ? बीजगणित में सवाल हल करने के लिए अज्ञात 'क्ष' लेना पड़ता है । जब तक सवाल का उत्तर नहीं आता, तब तक 'क्ष' का सही मूल्य क्या है , यह हमारी समझ में नहीं आता। लेकिन उसे लिए बिना काम नहीं चलता, वैसे ही जीवन की पहेली हल करने के लिए आज हमें अज्ञात भगवान को मान कर ही चलना चाहिए । उस भगवान का सच्चा स्वरुप, इस जीवन की पहेली हल होगी तभी हमारी समझ में आएगा । सचमुच जो हमें जन्म-मरण से मुक्त होने का मार्ग दिखाता है वह सच्चा विश्वस्त ।

भगवान की शरण में जाएं

संत यह कह गए हैं कि भगवान को सबसे अधिक प्रिय क्या है? वह यह है कि "हम विषय, वासना आदि सब कुछ छोड़कर भगवान की शरण जाएँ" हम विषयों की तो सदा ही शरण जाते हैं । जो भगवान की शरण जाता है उसे संसार का भय नहीं लगता । सचमुच सब चमत्कार किए जा सकते हैं। लेकिन भगवान की शरण जाना बहुत कठिन है ।

परमेश्वर की प्राप्ति के साधन

हम सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, वह सीढियों के लिए नहीं बल्कि ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए चढ़ते हैं । यानी ऊपर की मंजिल पर जाना हमारा साध्य है और सीढ़याँ साधन हैं । वैसे ही तीर्थ यात्रा, व्रत उपवास, नियम-धर्म आदि हमारे साधन हैं और परमेश्वर की प्राप्ति हमारा साध्य है । किन्तु परमेश्वर की प्राप्ति तो अलग रह गई और साधन को हम ही कसके पकड़े बैठे हैं, तो अब इसके लिए क्या करें ? मूलतः भगवान निर्गुण, निराकार और अव्यक्त है किन्तु मनुष्य उसे अपनी कल्पना में ले आता है । हम ऐसी कल्पना करते हैं कि हम में विद्यमान सभी गुण भगवान में पूर्णत्व के रूप में हैं ।

भगवान की बनाई यह सृष्टि

इसका मतलब यह हुआ कि हम पहले भगवान को स्थूल में देखते हैं और तब उसके नाम के बारे में सोचते हैं । भगवान की बनाई यह सृष्टि जैसी है वैसी सब आवश्यक है । इसमें परिवर्तन की जरुरत नहीं है, परिवर्तन हमें अपने में करना चाहिए । हमारा सम्पूर्ण जीवन यदि भगवान के हाथ में है, तो फिर जीवन के सभी बनाव बिगाड़ उतार चढ़ाव उसी के हाथ में हैं, इसमें संदेह की क्या बात है ? पेड़ की जड़ में पानी डालने से वह उसके सब भागों में पहुँच जाता है, वैसे ही भगवान का विस्मरण नहीं होने दिया तो सभी बातें ठीक होती हैं । इसी में सब मर्म है कि भगवान हमें अपना लगें । आत्मा समुद्र की तरह विशाल है । उसकी छोटी सी बूँद की तरह अपना जीव है । उसे पहचान कर आत्मा से एकरूप होने में ही सच्चा तत्व ज्ञान है । इस आत्मा का नित्य स्मरण रखकर हम आनंद में रहें ।

संतों ने नामस्मरण रूपी नौका हमें दी है । उसमें हम विश्वास से बैठें। संत कर्णधार हैं, वे हमें नदी पार उतार देंगे ।

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