Mrityu Ka Rahasya Jyotish Shastra : मृत्यु आज भी रहस्य है, इस पर विज्ञान भी कुछ कहने में लाचार है, जानते हैं मौत से जुड़ी बातें

Mrityu Ka Rahasya Jyotish Shastra : मृत्यु का रहस्य ज्योतिष शास्त्र क्या कहता है? जन्म-मृत्यु जीवन का शाश्वत सत्य है, कई बार कर्म इतने अच्छे होते है कि मुक्ति मिल जाती है तो कई बार यह क्रम तब तक चलता है जब तक की मोक्ष नहीं मिल जाता है। कई बार स्थितियां बदल जाती हैं। जानते हैं मौत से जुड़ी हकीकत...

Update: 2022-12-24 05:48 GMT

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Mrityu Ka Rahasya Jyotish Shastra

मृत्यु का रहस्य ज्योतिष शास्त्र 

मनुष्य (Humans)की जिंदगी(Life) का असली सच मृत्यु(Death) है। इंसान ही नहीं, बल्कि हर जीव को भी एक ना एक दिन अपना शरीर त्याग कर जाना ही पड़ता है। कहते हैं जब मृत्यु आती है तो मरने वाले व्यक्ति को पहले ही उस मृत्यु का संकेत मिल जाता है। मनुष्य उन संकेतों को सही से समझ नहीं पाते और अनजान बने रहते हैं। आज भले ही विज्ञान(Science) ने बहुत उन्नति कर ली है, लेकिन बड़े बड़े विज्ञानी भी मौत के रहस्य( Mystery) को नहीं समझ पाए हैं।

बता दें कि मौत कभी भी आ जाती है। एक पल इंसान हँसता खेलता होता है तो अगले ही पल मृत्यु उसे हमेशा के लिए दूर ले जाती है। यह सत्य है कि जो जन्मा है वह मरेगा ही चाहे वह मनुष्‍य हो, देव हो, पशु या पक्षी सभी को मरना है। ग्रह और नक्षत्रों की भी आयु निर्धारित है और हमारे इस सूर्य की भी। इसे ही जन्म चक्र कहते हैं। जन्म मरण के इस चक्र में व्यक्ति अपने कर्मों और चित्त की दशा अनुसार नीचे की योनियों से उपर की योनियों में गति करता है और पुन: नीचे गिरने लगता है। यह क्रम तब तक चलता है जब तक की मोक्ष नहीं मिल जाता है। कई बार स्थितियां बदल जाती हैं।

मृत्यु के बाद कब  ना जलाए शव

धर्मशास्त्रों के अनुसार मरने के बाद क्यों नहीं मृत शरीर को अकेला छोड़ा जाता है। सूर्यास्त के बाद हुई है मृत्यु तो शव को जलाया नहीं जाता है। इस दौरान शव को रातभर घर में ही रखा जाता और किसी न किसी को उसके पास रहना होता है। उसका दाह संस्कार अगले दिन किया जाता है। यदि रात में ही शव को जला दिया जाता है तो इससे व्यक्ति को अधोगति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी आत्मा असुर, दानव अथवा पिशाच की योनी में जन्म लेते हैं।


मृत्यु पंचक में हो  तो जानें क्या करें

यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल में हुई है तो पंचक काल में शव को नहीं जलाया जाता है। जब तक पंचक काल समाप्त नहीं हो जाता, तब तक शव को घर में ही रखा जाता है और किसी ना किसी को शव के पास रहना होता है।

कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है। इसी डर के कारण पंचक काल के खत्म होने का इंतजार किया जाता है परंतु इसका समाधान भी है कि मृतक के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।

यदि कोई मर गया है परंतु उसका दाह संस्कार करने के लिए उसका पुत्र या पुत्री से दाह दिलाना चाहिए। कहते हैं कि पुत्र या पुत्री के हाथों ही दाह संस्कार होने पर मृतक को शांति मिलती है नहीं तो वह भटकता रहता है।

मृत्यु के बाद रहें शव पास

शव को अकेला न छोड़ने के पीछे वैसे तो कईं कारण हो सकते हैं। लेकिन इनमे से सबसे अहम कारण यह है कि जब भी मृत्यु आती है तो शरीर से आत्मा निकल जाती है जोकि मरने वाले वक्ती के आस-पास ही भटकती रहती है। ऐसे में यदि शव को अकेला छोड़ा जाए तो वह आत्मा उस शरीर पर पुन: अधिकार जमा सकती है।अगर उस बॉडी को अकेल छोड़ दे तो कई सारी गलत आत्मा उसके अंदर प्रवेश कर सकती है इसलिए हमेंशा उसके पास किसी ना किसी को बिठाकर रखना पड़ता है। इसलिए रात के दौरान शव को अकेला नहीं रखा जाता।

मौत के बाद आत्मा का विचरण

महाभारत काल में खुद भीष्म पितामह ने अधोगति से बचने के लिए ही सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। उत्तरायण में प्रकृति और चेतना की गति उपर की ओर होने लगती है। पुराणों के अनुसार व्यक्ति की आत्मा प्रारंभ में अधोगति होकर पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, पशु-पक्षी योनियों में विचरण कर ऊपर उठती जाती है और अंत में वह मनुष्य वर्ग में प्रवेश करती है। मनुष्य अपने प्रयासों से देव या दैत्य वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकता है।

उपनिषदों के अनुसार एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है। यह सबसे कम समयावधि है। सबसे ज्यादा समायावधि है 30 सेकंड। परंतु पुराणों के अनुसार यह समय लंबा की हो सकता है 3 दिन, 13 दिन, सवा माह या सवाल साल। इससे ज्यादा जो आत्मा नया शरीर धारण नहीं कर पाती है वह मुक्ति हेतु धरती पर ही भटकती है, स्वर्गलोक चली जाती है, पितृलोक चली जाती है या अधोलोक में गिरकर समय गुजारती है।

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