चमत्कारी मंदिर: सुनाई देती है मां के चूड़ियों की खनक, जल से दूर होती है हर बीमारी
मंदिर के प्रवेश द्वार पर अंकित तीन चौथाई भित्ति चित्र नष्ठ हो चुके हैं। राजा रामचंद्र मराठा ने जीर्णोद्धार कराया था।
लखनऊ: नवरात्रि ( Navratri) में दुर्गा देवी (Durga Devi ) के शक्तिपीठों ( Shaktipeeth) की रौनक बढ़ जाती है । देश के अलग-अलग भागों में उनके अलग-अलग स्वरुपों की पूजा हीती है। पूरे देश दुनिया में मां दुर्गा के कई शक्तिपीछ और मंदिर है जो भक्ति और आस्था का केंद्र है। इन्हीं में एक यूपी के सहारनपुर (Saharanpur) से 46 किलोमीटर दूर स्थित देवबंद में है। यहां देवी मां के बाला सुंदरी रूप की पूजा की जाती है।
कहते हैं कि मां गौरी (सती) का यहां पर गुप्तांग गिरा था, इसलिए यहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई और देवी दुर्गा मां बाला सुंदरी देवी कहलाई। देश को कोने-कोने से भक्त मां के दरबार में आते है।
धार्मिक सत्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब राज दक्ष ने यज्ञ कराया तो सती और उनके पति भगवान शकंर को आमंत्रित नहीं किया। देवाधिदेव शंकर के इस अपमान से लज्जित होकर गौरा देवी इस यज्ञ के दौरान सती हो गई थी और भगवान शंकर उनके पार्थिव शरीर को ही गोद में उठा कर तीनों लोकों का भ्रमण कर रहे थे। तब भगवान विष्णु ने भगवान शंकर का मां गौरी से ध्यान हटाने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से मां गौरी के पार्थिव शरीर के टुकड़े कर दिया था। उस वक्त जहां-जहां मां सती के पार्थिव शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई। इसी तरह देवबंद में मां गौरी का गुप्तांग गिरा था।
इस मंदिर में पिंडी से निकलता है जल
देवबंद में स्थित त्रिपुर मां बाला सुंदरी ऐतिहासिक और प्राचीन है। मंदिर में आज भी मां के स्रान के समय चुड़ियां खनकने की आवाज सुनाई पड़ती है, लेकिन ये आवाज हर किसी को नहीं सुनाई पड़ती। मां दुर्गा के सच्चे भक्त को ही इसका सौभाग्य प्राप्त होता है। इस मंदिर में पिंडी से पानी निकलता है, इसे पीने से बीमारी दूरी होती है । मां दुर्गा के इस रुप का स्नान आंखों पर पट्टी बांध कराया जाता है।यहां 15 सेमी. ऊंचे और 10 सेमी. व्यास के लालिमायुक्त धातुनिर्मित मूर्ति यहां स्थापित है।
आदिशक्ति के होने का अहसास ऐसे होता है
इस मंदिर का जल बीमारियों के लिए रामबाण, सुनाई देती हैं मां के चूड़ियों की खनकतो तेज आंधी आती है और बहुत बारिश होती है। हिंदू शक सम्बत् के अनुसार चैत्र माह की चतुर्दर्शी पर यहां हर साल आयोजित होने वाले मेले में पहले दिन मौसम अचानक अपना रंग बदलता है। तेज आंधी चलने लगती है और बारिश होती है। कहा जाता है कि तेज आंधी का चलना और बारिश आना देवी दुर्गा के अपने मंदिर में प्रवेश करने का प्रतीक है। यह आंधी और बारिश केवल देवबंद क्षेत्र में ही आती है।
बलि चढ़ाने की प्रथा कायम
मंदिर के प्रवेश द्वार पर अंकित तीन चौथाई भित्ति चित्र नष्ठ हो चुके हैं। राजा रामचंद्र मराठा ने इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार कराया था। मां श्री त्रिपुरा बाला सुंदरी देवी मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर प्राचीन लिपि में एक शिलालेख लगा है, कहा जाता है कि इस भाषा को आज तक कोई नहीं पढ़ सका। मां बाला सुंदरी देवी के पार्श्व में मां काली और मां शाकुंभरी देवी का मंदिर है। यहां पर बलि चढ़ाए जाने की प्रथा आज भी कायम है। वर्तमान समय में श्रद्धालु बकरे की बलि देते हैं।
पांडव पुत्रों ने ली थी शरण
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवताओं की पुकार पर मां भगवती ने यहां पर राक्षसों का वध किया था। तभी घने जंगलों के बीच मां त्रिपुर बाला सुंदरी शक्ति पीठ की स्थापना हुई थी। यहां देवता वनों में विहार करते थे, तभी से इस शहर का नाम देववृंद हुआ और आज लोग देवबंद के नाम से जानते है। राजा मराठा ने कराया था जीर्णोद्धार अज्ञातवास के दौरान पांडव पुत्रों ने यहां वनों में शरण ली थी और देवी की पूजा-अर्चना की थी।