Nakshatra Ka Mahatva ज्योतिष में नक्षत्र का महत्व क्या होता है, जानिए इससे जुड़ी खास बातें, इन 27 नक्षत्रों का विभाजन की विधि

Nakshatra Ka Mahatva नक्षत्र का महत्व क्या होता है:ज्योतिषशास्त्र के आधार पर हर ग्रह में 3-3 नक्षत्र है। यहां 27 नक्षत्रों के बारे में बताया गया है, लेकिन एक अन्य नक्षत्र का भी समावेश किया जाता है, जिसे अभिजित नक्षत्र कहा गया है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की 15 और श्रवण नक्षत्र की प्रारंभ की 4 घड़ियों को मिलाकर 19 घड़ी की अभिजित नक्षत्र की गणना भी करते हैं।

Update:2023-02-03 11:22 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Nakshatra Ka Mahatva: 

नक्षत्र का महत्व (importance of constellation) :  किसी भी जातक के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कारों में नक्षत्र की भूमिका बेहद अहम होती है। सामान्यतया जिसे मुहूर्त कहा जाता है उसके मूल में नक्षत्र ही हैं। जिस किसी भी जातक के जन्म के समय चंद्र जिस नक्षत्र में होता है, उसे उसका जन्म नक्षत्र माना जाता है, वहीं वह नक्षत्र पूरी तरह या आंशिक रूप से जिस राशि में होता है उसे उस जातक की जन्म राशि कही जाती है। भारतीय ज्योतिष में नक्षत्रों का व्यापक अध्ययन किया जाता है। माना जाता है कि नक्षत्र जातक की कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ फल की सूचना देते हैं।

नक्षत्र का अर्थ -नक्षत्र की संस्कृत भाषा में "न क्षरति, न सरति, इति नक्षत्र" के रूप में व्याख्या की गई है। अंग्रेजी में इसे Constellation कहा जाता है।नक्षत्रों को सूर्य, मंगल, चंद्र या अन्य ग्रहों की तरह इकाई नहीं माना जाता है, बल्कि नक्षत्र कुछ तारों के समूह का विशिष्ट नाम है। सभी 27 नक्षत्र दक्ष की पुत्रियाँ हैं, जिनमें प्रत्येक का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ है। चंद्रमा प्रत्येक तारामंडल के पास एक दिन स्थित रहता है। इस प्रकार, चंद्र मास में लगभग 27 दिन होते हैं, जो नक्षत्रों की संख्या के बराबर हैं।

नक्षत्र-राशियों के बीच संबंध

नक्षत्र 27 माने गए हैं और राशियों 12 होती हैं। जब इन 27 नक्षत्रों के 12 से भाग दिया जाता है तो प्रत्येक राशि में सवा दो नक्षत्रों की परिकल्पना की गई है। क्रांति वृत्त के 360 अंशों को बारह राशियों में विभाजित किया गया तो हर राशि में 30 अंश आए, वहीं जब 27 नक्षत्रों से विभाजित किया गया तब प्रत्येक नक्षत्र को 13.20 अंश मिले। गणना करने में आसानी हो इसलिए हर नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया गया है, उनके 13.20 अंशों को 4 से विभाजित करने पर हर चरण को 3 अंश 20 कला प्राप्त हुए।

27 नक्षत्रों के देवता और स्वामी ग्रह

1. अश्विनी अश्विनीकुमार केतु चू, चे, चो, ला

2. भरणी यम (काल) शुक्रवार ली, लू, ले, लो

3. कृत्तिका अग्नि सूर्य अ, इ, उ, ए

4. रोहिणी ब्रह्मा चंद्र ओ, वा, वी, बू

5. मृगशिरा चंद्र मंगल बे, बो, का, की

6. आर्द्रा रूद्र राहु कू, घ, ड, छ

7. पुनर्वसु आदित्य गुरु के, को, ह, ही

8. पुष्य बृहस्पति शनि हू, हे, हो, डा

9. आश्लेषा सर्प बुध डी, डू, डे, डो

10. मघा पितर केतु मा, मी, मे, मो

11. पूर्वा फाल्गुनी भग शुक्र मो ट, टी, टू

12. उत्तरा फाल्गुनी अर्यम सूर्य टे, टो, पा, पी

13. हस्त सूर्य (सविता) चंद्र पू, ष, ण, ठ

14. चित्रा विश्वकर्मा मंगल पे, पो, रा, री

15. स्वाति मरूत राहु रू, रे, रो, ता

16. विशाखा इंद्र-अग्नि गुरु ती, तू, ते, तो

17. अनुराधा मित्र शनि न, नी, नू, ने

18. ज्येष्ठा इंद्र बुध नो, य, यी, यू

19. मूल निऋति केतु ये, यो, भ, भी

20. पूर्वाषाढ़ा जल शुक्र भू, ध, फ, ढ

21. उत्तराषाढ़ा विश्वेदेव सूर्य भे, भो, जू, जी

22. श्रवण विष्णु चंद्र खि, खू, खे, खो

23. धनिष्ठा वसु मंगल ग, गी, गू, गे

24. शतभिषा वरूण राहु मो, सा, सी, सू

25. पूर्वभाद्रपद अजैकपाद गुरु से, सो, दा, दी

26. उत्तराभाद्रपद अहिर्बुध्न्य शनि दु, थ, झ, त्र

27. रेवती पूषा बुध दे, दो, चा, ची

ज्योतिषशास्त्र के आधार पर हर ग्रह में 3-3 नक्षत्र है। यहां 27 नक्षत्रों के बारे में बताया गया है, लेकिन एक अन्य नक्षत्र का भी समावेश किया जाता है, जिसे अभिजित नक्षत्र कहा गया है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की 15 और श्रवण नक्षत्र की प्रारंभ की 4 घड़ियों को मिलाकर 19 घड़ी की अभिजित नक्षत्र की गणना भी करते हैं। 19 घटी वाला यह अभिजित नक्षत्र सर्वथा शुभ माना जाता है। भगवान श्रीराम का अवतरण इसी मुहूर्त में माना गया है।

नक्षत्रों से जुड़ी खास बातें


 महर्षि पतंजलि अनुसार हर नक्षत्र में सत्व, रज या तम कोई एक गुण होता है। जैसा कि सभी जानते हैं इन तीनों गुणों का विशेष महत्व बताया गया है। जिसे सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण कहा जाता है।नक्षत्रों की तारा 9 प्रकार की मानी गई है, जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, साधक, वध, मित्र, अतिमित्र। ये नाम ही इन ताराओं के मायने प्रदर्शित करते हैं। जन्म नक्षत्र से इष्ट दिवस तक नक्षत्र की संख्या गिनकर उसमें 9 का भाग देने पर शेष तुल्य तारा ज्ञात होती है। 3, 5, 7 संज्ञावाली तारा के अलावा अन्य 1, 2, 4, 6, 8, 0 शुभ मानी गई हैं।

नक्षत्र पंचक  -भारतीय ज्योतिष के अनुसार 5 नक्षत्रों को पंचक की संज्ञा दी जाती है। इन नक्षत्रों के दौरान शुभ कार्य करना निषेध माना गया है। इन नक्षत्र पंचकों में धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती शामिल हैं। किसी भी नक्षत्र में कोई ग्रह एक जैसा फल नहीं देता है। ग्रह विशेष नक्षत्र के किस चरण में स्थित है औस उस चरण विशेष का स्वामी ग्रह कौन है। उस चरण और स्वामी ग्रह से नक्षत्र स्थित ग्रह के संबंध कैसे हैं, दोनों शुभ अथवा अशुभ हैं, मित्र हैं या शत्रु हैं आदि का अध्ययन करने के बाद ही फल का विचार किया जाता है।

जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर होता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। इसे शुभ नहीं माना जाता। इस दौराना घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती) होते हैं, उन्हें पंचक कहते हैं। इस दौरान आग लगने का खतरा होता है, इस दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, घर की छत नहीं बनवानी चाहिए, पलंग या कोई फर्नीचर भी नहीं बनवाना चाहिए। पंचक में अंतिम संस्कार भी वर्जित है।

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