सहारनपुर: नरक चतुर्दशी को कहीं-कहीं छोटी दीपावली भी कहा जाता है क्योंकि ये दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है और इस दिन मूल रूप से यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं, जिसे दीप दान कहा जाता है। मान्यता ये है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विंष्णु ने इसी दिन नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध भी किया था।
मूल रूप से इस दिन को यम पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो कि घर से अकाल मृत्यु की संभावना को समाप्त करता है। यम पूजा के रूप में अपने घर की चौखट पर चावल के ढेरी बना कर उस पर सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है। साथ ही इस दिन गायों के सींग को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।
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नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान
पांच दिन का दीवाली उत्सव धनत्रयोदशी के दिन प्रारंभ होता है और भाई दूज तक चलता है। दीवाली के दौरान अभ्यंग स्नान को चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिन करने की सलाह दी गई है।
चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह माना जाता है कि जो भी इस दिन स्नान करता है वह नरक जाने से बच सकता है। अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।
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अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले या उसी दिन हो सकता है। जब सूर्योदय से पहले चतुर्दशी तिथि और सूर्योदय के बाद अमावस्या तिथि प्रचलित हो तब नरक चतुर्दशी और लक्ष्मी पूजा एक ही दिन हो जाते हैं। अभ्यंग स्नान चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए हमेशा चन्द्रोदय के दौरान (लेकिन सूर्योदय से पहले) किया जाता है।
अभ्यंग स्नान के लिए मुहूर्त का समय चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए चन्द्रोदय और सूर्योदय के मध्य का होता है। हम अभ्यंग स्नान का मुहूर्त ठीक हिंदू पुराणों में निर्धारित समय के अनुसार ही उपलब्ध कराते हैं। सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर हम अभ्यंग स्नान के लिए सबसे उपयुक्त दिन और समय उपलब्ध कराते हैं।
नरक चतुर्दशी के दिन को छोटी दीवाली, रूप चतुर्दशी, और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। अक्सर नरक चतुर्दशी और काली चौदस को एक ही त्योहार माना जाता है। वास्तविकता में यह दोनों अलग-अलग त्यौहार है और एक ही तिथि को मनाए जाते हैं। यह दोनों त्योहार अलग-अलग दिन भी हो सकते हैं और यह चतुर्दशी तिथि के प्रारंभ और समाप्त होने के समय पर निर्भर होता है।
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यमराज की प्रार्थना का दिन
कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहकर अकाल मृत्यु के निवारण और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए यमराज की प्रार्थना का दिन माना गया है। चौमासे की बीमारियों से बचकर शरीर और त्वचा के स्वास्थ्य के लिए “स्नेहक” यानी चिकने पदार्थों का प्रयोग शुरू करते समय आप मृत्यु के देवता यमराज से प्रार्थना करें कि हम रोग और अकाल मृत्यु के ग्रास न हों, यह स्वाभाविक ही है। इस चौदस के दिन यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैनस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दग्ध, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त- इन चौदह नामों से प्रत्येक बार एक अंजलि जल छोड़ते हुए जो यमराज का तर्पण करते हैं, उन्हें कभी अकाल मृत्यु प्राप्त नहीं होती, ऎसा मंत्रशास्त्रीय प्रयोग भी मिलता है।
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नरक से मुक्ति के लिए दीप-दान
- पुराणों में नरक कुंडों की संख्या 86 मानी गई है
- नरक चतुर्दशी इन्हीं नरक कुंडों से ही तो सावधान करती है।
- नरकासुर आसुरी नरक कुंडों का प्रतीक है।
- जहां दुष्टों को कई तरह की यातनाएं दी जाती हैं उसे नरक कुंड कहते हैं।
- धर्म से विमुख होना, अनाचार, वासनाएं ही नरक कुंड हैं।
- देवी तत्व दर्शन में कई किस्म के नरक कुंड बताए गए हैं।
- अहं पालने वाला अग्नि कुंड में जाता है।
- इसलिए छोटी दीवाली अर्थात नरक चौदस को घर को साफ-सुथरा रखा जाता है।
नरक मुक्ति का जादुई टोटका
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने सिर के ऊपर से एक लंबा घीया (कद्दू) को वार कर नरक से बचाने की भगवान सूर्य से प्रार्थना करते हैं।