तेज प्रताप सिंह
गोंडा: नवरात्र में माता के दर्शन से मनुष्य को अनेक दु:खों से छुटकारा मिल जाता है। जिले में एक ऐसा स्थान है जहां शक्ति स्वरूपिणी माता वाराही देवी के दर्शन मात्र से नेत्र विकारों से पीडि़त लोगों की आंखों में रोशनी आ जाती है। यहां 1800 साल पुराने विशालकाय बरगद के वृक्ष से निकलने वाले दूध को आंखों में डालने से यह चमत्कार होता है। इस स्थान को उत्तरी भवानी के नाम से भी जाना जाता हैं। नवरात्र में मां के भक्त भक्ति भाव से मां की पूजा, अर्चना और व्रत रखते हैैं। वाहाही देवी के मंदिर नवरात्र के दौरान भक्तों के आकर्षण का केन्द्र होता है।
पौराणिक मंदिर और 18 सौ साल पुराना वटवृक्ष
जनपद मुख्यालय से करीब 27 किलोमीटर पश्चिम दक्षिण कोने पर तहसील तरबगंज के मुकुन्दपुर गांव में वाराही देवी के पौराणिक मंदिर में प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्र व वासंतिक नवरात्र के अवसर पर विशाल मेला लगता है। इसी स्थान को उत्तरी भवानी के नाम से जाना जाता हैं जिसमें देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मां के इस पौराणिक मंदिर के बारे में एक प्राचीन मान्यता है कि यहां 18 सौ साल पुराने विशाल वटवृक्ष का दूध डालने से आंखों से संबंधित हर तरह की बीमारियां दूर हो जाती हैं और आंखों में रोशनी आ जाती है।
मां भगवती के स्थान पर बरगद का विराट वृक्ष है। यह वट वृक्ष करीब 500 मीटर क्षेत्र में चारों तरफ से पृथ्वी को छूते हुए वाराही देवी की पौराणिकता व महत्ता का प्रत्यक्ष साक्षी बना हुआ है। देवी की इस अपार महिमा के चलते नेत्र विकारों से छुटकारा पाने के लिए यहां भारी संख्या में देवी भक्तों का जमावड़ा लगता है। श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए अलग-अलग राज्यों से आते हैं। वैसे प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को मंदिर में भारी भीड़ उमड़ती है।
वाराह और वाराही देवी की उत्पत्ति
सरयू व घाघरा के पवित्र संगम पर पसका सूकरखेत स्थित भगवान वाराह का एक विशालतम मंदिर है। संगम जाने वाले श्रद्धालु भगवान वाराह के दर्शन के बाद मां वाराही देवी उत्तरी भवानी के भी दर्शन करते हैं। मान्यता है कि पूर्व काल में भगवान वाराह ने सूकर के रूप में पृथ्वी के जितने भूभाग पर लीलाएं की थीं, वही स्थान वाराह धाम सूकरखेत के नाम से प्रचलित हुआ। पुराणों के अनुसार एक बार हिरणयाक्ष्य नामक दैत्य द्वारा पृथ्वी को समुद्र में डूबो दिए जाने पर ब्रह्मïा जी की नाक से अंगूठे के बराबर एक सूकर प्रकट हुआ जिसने देखते-देखते विशाल रूप धारण कर लिया। समुद्र से बाहर निकलकर वह सर्वप्रथम जिस भूभाग में बाहर आया वह क्षेत्र आज के युग में अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। तत्पश्चात उसने पृथ्वी में जितने भूभाग की जमीन को खोद डाला वह घाघरा नदी के नाम से जानी जाती है। तीनों लोक के प्राणी, ऋषि-मुनि व देवता अचम्भित होकर एकाएक पशुक:-पशुक: बोल पड़े। इस कारण यह स्थान पसका के रूप में जाना जाता है।
श्रीमद्भागवत में वाराह व वाराही देवी का उल्लेख
पुजारी राघवराम बताते हैं कि पसका सूकरखेत में अवतरित भगवान वाराह की विशेष स्तुति के फलस्वरूप वहां से कुछ ही दूरी पर मुकुन्दपुर नामक गांव में धरती से देवी भवानी वाराही के रूप में अवतरित हुईं। प्राचीन मान्यता के अनुसार मनोकामना की पूर्ति औेर खासकर नेत्र सम्बन्धी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए वर्ष के दोनों नवरात्र में श्रद्धालु भक्त यहां पहुंचकर मां भगवती की स्तुति करते हैं। श्रीमद्भागवत के तृतीय खंड में भगवान वाराह की कथा और स्तुति में वाराही देवी का विशेष उल्लेख मिलता है। मां भगवती देवी उत्तरी भवानी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। दुर्गा स्तुति में 12वें श्लोक मे मां भगवती स्वयं कहती है कि मैं अपने भक्तों को सभी बाधाओं से मुक्त करके धन, पुत्र व ऐश्वर्य प्रदान करती हूं। देवी वाराही जगदम्बा ने महिषासुर के वध के दौरान कहा था कि मनुष्य जिन मनोकामनाओं के लिए मेरी स्तुति करेगा वह निश्चित रूप से पूर्ण होंगी।