Navratri 2023 2nd Day: कौन है मां बह्रमाचारिणी, क्यों और किस मंत्र से कब की जाती है इनकी पूजा

Navratri 2023 2nd Day Maa Brahmacharini: शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन किसकी पूजा होगी, इस दिन का शुभ मुहूर्त योग और तिथि

Update: 2023-10-16 02:43 GMT

Navratri 2023 2nd Day Maa Brahmacharini: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस साल 16 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा धूमधाम से की जाएगी। शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन यानी कि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर मां दुर्गा का दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां देवी ब्रह्मचारिणी तप, संयम और त्याग की प्रतीक हैं। कहते हैं ब्रह्मचारिणी को तप की देवी कहा जाता है और मान्‍यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और इसी वजह से इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया।

मां ब्रह्मचारिणी पूजा मुहूर्त 2023

  • 16 अक्टूबर -द्वितीया 01:13 AM, Oct 17 तक
  • अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM से 12:35 PM
  • अमृत काल - 10:17 AM से 11:58 AM
  • ब्रह्म मुहूर्त - 04:51 AM से 05:39 AM
  • गोधूलि मुहूर्त: 05:19 PM से 05:43 PM

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

 मां ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी भी कहा जाता है। बता दे ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी मतलब आचरण करने वाली यानी कि तप का आचरण करने वाली शक्ति। दरअसल देवी के दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। बता दे भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तप किया था जिससे ये मां ब्रह्मचारिणी कहलाईं।भगवान शिव (Lord Shiva ) को पाने के लिए कठोर तप आज दूसरा दिन का होता है, जिन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या करने के कारण देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से होता है। मां दुर्गा का ये स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।मां का स्वरुप देवी सफेद वस्त्र (White clothes ) धारण करती हैं और उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। देवी की पूजा करने से किसी भी कार्य के प्रति कर्तव्य, लगन और निष्ठा बढ़ती है। देवी अपने भक्तों के अंदर भक्तिभावना उत्पन्न करने वाली मानी गई हैं। देवी ने भगवान शंकर को पाने के लिए घनघोर तप किया, जब तक वह उन्हें पा नहीं सकीं। उनकी भक्ति और लगन उनके भक्तों में भी आती है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि 

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में लाल रंग का ज्यादातर इस्तेमाल करना चाहिए। सबसे पहले स्नान के बाद लाल वस्त्र पहने। फिर जहां कलश स्थापना की है या फिर पूजा स्थल पर मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं और मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, अक्षत, हल्दी अर्पित करें। फिर देवी मां को पूजा में लाल रंग के फूल चढ़ाएं। अब माता की चीनी और पंचामतृ का भोग लगाएं। ध्यान रखें फल में सेब जरूर रखें। अब अगरबत्ती लगाएं और देवी मां के बीज मंत्र का 108 बार जाप करें। बता दे नवरात्रि में प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बहुत शुभ माना गया है। फिर अंत में देवी ब्रह्मचारिणी की कपूर से आरती करें।

मां देवी ब्रह्मचारिणी को शक्कर और पंचामृत का भोग अति प्रिय है। देवी मां को इसका भोग लगाने से दीर्धायु होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए लाल रंग शुभ माना गया है। माता ब्रह्मचारिणी प्रिय फूल  मां ब्रह्मचारिणी को बरगद (वट) वृक्ष का फूल बहुत पसंद है। इस फूल का रंग लाला होता है।

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा 

मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से भक्त की शक्ति, संयम, त्याग भावना और वैराग्य में बढ़ोत्तरी होती है। मां ब्रह्मचारिणी संकट में देवी भक्त को संबल देती है। दरअसल तप के जरिए देवी ने असीम शक्ति प्रप्ता की थी, इसी शक्ति से मां राक्षसों का संहार किया था। माता के आशीर्वाद से भक्त को अद्भुत बल मिलता है, जिससे शत्रु का सामना करने की शक्ति मिलता है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से आत्मविश्वास और स्मरण शक्ति में बढ़ोतरी होती है। देवी के प्रभाव से जातक का मन भटकता नहीं है।

मां ब्रह्मचारिणी कथा 

मां ब्रह्मचारिणी की कथा पूर्व जन्म में देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। एक हजार साल तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखें और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। 3 हजार सालों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ गया।

कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता,ऋषि, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी किसी ने इस तरह की घोर तपस्या नहीं की। तुम्हारी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़ घर जाओ। जल्द ही तुम्होरे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।

मां ब्रह्मचारिणी मंत्र-

ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।

दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इसी स्वरूप की उपासना ( Worship )की जाती है। इस देवी की कथा का सार ये है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।मां के इस रूप की पूजा करने से सर्वसिद्धी की प्राप्ति होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। ये देवी का रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य देने वाला है। देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।

मां ब्रह्मचारिणी का भोग

देवी मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है और इसलिए इनकी पूजा के दौरान इन्हीं फूलों को देवी मां के चरणों में अर्पित करते हैं। चूंकि मां को चीनी और मिश्री काफी पसंद है इसलिए मां को भोग में चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाएं। इस भोग से देवी ब्रह्मचारिणी प्रसन्न हो जाएंगी। इन्हीं चीजों का दान करने से लंबी आयु का सौभाग्य भी मिलता है। शास्त्र के अनुसार, यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। अत: स्वाधिष्ठान चक्र में ध्‍यान लगाने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

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