Navratri Kalash Asthapna Vidhi ( नवरात्रि कलश स्थापना) : बुराई पर अच्छाई का प्रतीक मां दुर्गा की का पर्व, ऐसे बरसेगी कृपा
Navratri Kalash Asthapna Vidhi ( नवरात्रि कलश स्थापना विधि) :कलश स्थापना देव-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि इस प्रकार है
Navratri Kalash Asthapna Vidhi ( नवरात्रि कलश स्थापना विधि) :
शक्ति की देवी दुर्गा की आराधना के नौ दिन नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू हो रही है। इस दिन से 9 दिन तक मां दुर्गा के नव रुपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था जो ब्रह्माजी का भक्त था। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
या देवी सर्वभूतेषू शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्य नमस्तस्य नमो नम: । हर साल की तरह इस बार भी शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होगी। इस बार आदिशक्ति की आराधना का नौ दिवसीय उत्सव शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। साल में चार नवरात्रियों में सबसे अहम दो नवरात्रि होती है चैत्र और शारदीय नवरात्रि। नौ दिनों का ये उत्सव 7 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक चलेगा।नौ दिनों तक लोग भक्तिमय होकर मां दुर्गा की आराधना करते हैं और दुर्गा देवी के नौ रुपों की अलग-अलग दिन पूजा करते हैं।
कलश स्थापना विधि जानते हैं आचार्य कौशलेन्द्र पाण्डेय के अनुसार
शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर से प्रारम्भ हो रहे हैं जिसमे कलश स्थापना की इच्छा हर सनातनी को होती है आचार्य कौशलेन्द्र पाण्डेय कहते हैं कि कलश स्थापना देव-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि इस प्रकार है...
- सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी/सफेद बालू डालें। और उसमे जौ के बीज डाल दें।
- अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मौली बांध दें। साथ ही तिलक भी लगाएं ।
- इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें।
- इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का,चंदन,पंचरत्न आदि डाल दें।
- अब इस कलश के किनारों पर आम का पल्लव रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें।
- अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें।
- इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें।
- तीनों चीजों को तैयार करने के बाद सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ़ करके उसपर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें। तथा सभी देवी देवताओं का आवाहन कलश में निम्न मन्त्रो से करें
नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधनाथाय नमो नमस्ते ॥
ॐ अपां पतये वरुणाय नमः ।
ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः।
आपकी कलश स्थापना संपूर्ण हो चुकी है। इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत गौरी गणेश दुर्गा देवी का नवग्रह आदि का पूजन करें। इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखना होगा। बस ध्यान रखें सुबह-शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें।
महालया के बाद आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाली नवरात्रि का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन ही कलश की स्थापना की जाती है। मान्यता है कि कलश में त्रिदेव का वास होता है और कलश स्थापित कर भगवान गणेश समेत ब्रह्मा विष्णु का आह्वान किया जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर मां दुर्गा के आहवान से पहले कलश स्थापित करने का विधान है।
कलश स्थापित करने के लिए घर के मंदिर की साफ-सफाई करके एक सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं।उसके ऊपर एक चावल की ढेरी बनाएं। एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जौ बोएं और इसका ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं, कलावा बांधे. एक नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटें और कलावे से बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें। कलश के अंदर एक साबूत सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें। अशोक के पत्ते कलश के ऊपर रखकर नारियल रख दें। नारियल रखते हुए मां दुर्गा का आवाह्न करना न भूलें। अब दीप जलाकर कलश की पूजा करें। फिर उसके बाद नौ दिनों के व्रत करने का मन हो तो संकल्प लेकर सप्तशती की पाठ करें।