Nirjala Ekadashi Puja Vidhi: इस निर्जल व्रत को करके मनुष्य का होता है कल्याण, जानिए पूजा-विधि और महत्व

Nirjala Ekadashi Puja Vidhi: इस व्रत का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। निर्जला एकादशी जब सूर्य की तपिश चरम पर रहती है, तब ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मिथुन संक्रांति में निर्जल रहकर व्रत का संकल्प लेने से मनुष्य के सारे पाप धूल जाते हैं और मोक्ष का मार्ग खुलता है।

Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update:2021-06-18 11:34 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

निर्जला एकादशी  पूजा विधि : इस साल 2021 में 21 जून को निर्जला एकादशी है। इस दिन कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और उपवास किया जाता है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी 24 एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ एकादशी है। इसे भीमसैनी एकादशी भी कहते हैं।

धर्म शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन  व्रत रखकर इन नियमों का पालन करना चाहिए । खुद भगवान  श्रीकृष्ण ने  पांडवों के इस व्रत की महिमा बताई थी।

निर्जला एकादशी व्रत कैसे किया जाता है

  • भगवान विष्णु को प्रिय एकादशी के दिन विधि-विधान से निर्जल रहकर पूजा करने पर उनकी कृपा बनी रहती है। यह एकादशी बहुत ही फलदायी हैं।
  • निर्जला एकादशी के एक दिन पहले दशमी को लहसुन, प्याज, मांस मदिरा का त्याग कर देना चाहिए है और जामुन या नीम के दातुन से दांत साफ करना चाहिए।
  • एकादशी को सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद व्रत और दान का संकल्प किया जाता हैं । वही पूजा करने के बाद कथा सुनकर श्रद्धा अनुसार दान करना शुभ माना जाता हैं।
  • इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता हैं। सात्विक दिनचर्या के साथ नियमों का पालन कर के व्रत पूरा किया जाता हैं। इसके बाद ही रात में भजन कीर्तन के साथ जागरण किया जाता हैं।
  • इस व्रत के दिन दान में छाता, मिट्टी का मटका, सत्तू वस्त्र का दान किया जाता है।
  • निर्जला एकादशी के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए और ना ही बड़ो का अपमान करना चाहिए।
  • ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए।
  • फूल , अक्षत फल से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

निर्जला एकादशी का महत्व

इस व्रत का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। निर्जला एकादशी जब सूर्य की तपिश चरम पर रहती है, नदी तलाब के जल सुख जाते हैं, दिन बड़ा होता है तब ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मिथुन संक्रांति में निर्जल रहकर व्रत का संकल्प लेने से मनुष्य के सारे पाप धूल जाते हैं और मोक्ष का मार्ग खुलता है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। निर्जला एकादशी का व्रत करने वाला व्यक्ति मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नहीं झेलता है। इस एकादशी को द्रौपदी और पांडवों ने भी किया था। इससे उनके कष्टों का निवारण भी हुआ।

निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त और पारण

एकादशी तिथि का प्रारंभ: 20 जून 04.21 PM – 21 जून 01.31 PM

एकादशी तिथि का समापन : 21 जून 01:31 PM –22 जून 10.44 AM

ब्रह्म मुहूर्त: 04. 09 AM – 04.52 AM

अमृत काल : 08.43 AM – 10.11 AM

अभिजीत मुहूर्त: 12.00 PM – 12.55 PM

पारण का समय : 22 जून सुबह 5.21 AM से 08.12 AM तक

इस बार निर्जला एकादशी के दिन स्वाति नक्षत्र 06.08 PM तक रहने के बाद विशाखा नक्षत्र रहेगा और योग शिव और सिद्ध रहेगा। दोनों ही योग में किया गया कार्य शुभ परिणाम देगा है। इसलिए निर्जला एकादशी के दिन बिना जल और अन्न के व्रत रखकर पीले फूल, फल तुलसी गंगाजल से भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। उपवास से एक दिन पहले सात्विक भोजन कर व्रत की शुरुआत करना चाहिए और व्रत के पूर्ण होने पर पंखा, छाता, गाय, अन्न, घड़ा का दान करने से समस्त सुखों की प्राप्ति के साथ मुक्ति का मार्ग खुलता है।

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