Panchmukhi Hanuman: ग्रह बाधा प्रेत बाधा इत्यादि सभी संकटों से मुक्त करते हैं पंचमुखी हनुमान

Panchmukhi Hanuman: पूर्व दिशा की तरफ जो मुंह है उसे वानर कहा गया है जिसकी चमक सैकड़ों सूर्यों के वैभव के समान है। इस मुख के पूजन मात्र से शत्रुओं पर आसानी से विजय प्राप्त की जा सकती है।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2022-07-05 18:06 IST

Panchmukhi hanuman ji(Image credit : Newstrack)

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Panchmukhi Hanuman: हनुमान जी का पंचमुखी अवतार पांचों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। पंचमुखी यानि पांच मुख वाला विराट रूप जिसके प्रत्येक स्वरूप में एक मुख, त्रिनेत्र और दो भुजाएं हैं। बता दें कि इन पांच मुखों में नरसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह के रूप मौजूद हैं। हनुमान जी के यही पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रधान भी माने जाते हैं।

मान्यताओं के अनुसार पूर्व दिशा की तरफ जो मुंह है उसे वानर कहा गया है जिसकी चमक सैकड़ों सूर्यों के वैभव के समान है। कहा जाता है कि इस मुख के पूजन मात्र से शत्रुओं पर आसानी से विजय प्राप्त की जा सकती है।

हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ रामायण के अनुसार श्री हनुमान का विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में विद्ध्यमान हैं। इनका हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। उल्लेखनीय है कि यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह के रूप है। इतना ही नहीं हनुमान जी के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने जाते हैं। 

ज्योतिषाचार्य पंडित धनेश मणि त्रिपाठी

पौराणिक मान्यतााओं के अनुसार भक्तों का कल्याण करने के लिए ही पंचमुखी हनुमान का अवतार हुआ हैं। आपको बता दें कि पंचमुखी हनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को ही माना जाता हैं। रुद्र के अवतार माने जाने वाले हनुमानजी ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं और इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढ़ जाती है।

इस संबंध में और प्रकाश डालते हुए ज्योतिषाचार्य पंडित धनेश मणि त्रिपाठी बताते हैं कि जब मनुष्य चारों तरफ संकट से घिर जाए या उसे अपने संकट से निकलने का कोई रास्ता ना सूझ रहा हो तो पंचमुखी हनुमान के शरण में उसे जाना चाहिए। पंचमुखी हनुमान की पूजा से मारक ग्रह के संकट से भी बचा जा सकता है। पंचमुखी रूप, हनुमान जी का सबसे शक्तिशाली स्वरूप माना गया है। इस स्वरूप को हनुमान जी ने रावण से युद्ध के समय उसकी माया को खत्म करने के लिए धारण किया था। पुराणों में बजरंगबली के पंचमुखी स्वरूप धारण करने की पौराणिक कथा वर्णित है। तो आइए जानें कि हनुमान जी ने ये स्वरूप किन परिस्थितियों में धारण किया था।

रावण को जब यह लग गया कि वह भगवान श्रीराम से ये युद्ध हार रहा है तो उसने अपनी मायावी शक्तियों का प्रयोग करने को उचित समझा। रावण अब समझ चुका था कि यदि वह मायावी शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा तो उसकी हार निश्चित है। इसलिए उसने अपने मायावी भाई अहिरावन की मदद युद्ध में ली। अहिरावन की मां का नाम भवानी था जो तंत्र-मंत्र की ज्ञाता भी।

अहिरावन भी इन तांत्रिक गतिविधियों में माहिर था इसलिए उसने युद्ध के समय एक ऐसी चाल चली की श्रीराम की सेना धीरे-धीरे कर निद्रा में समाती गई और सारी सेना युद्ध भूमि पर ही सो गई। इतना ही नहीं भगवान राम और लक्ष्मण भी इससे नहीं बच सके। मानो जैसे आधुनिक बेहोश करने वाली दवा हवा मे छोड़ दी गई हो भगवान राम एवं लक्ष्मण के निद्रा में आते ही अहिरावण ने उनका अपहरण कर लिया और पाताल लोक ले गया।

कुछ घंटों बाद जब धीरे-धीरे माया का प्रभाव कम हुआ या यू कहें दवा का प्रभाव कम हुआ तो सब जागे, लेकिन प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण वहां नहीं दिखे। तब विभीषण ने समझ लिया कि ये मायावी काम अहिरावन का है और उन्होंने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को बचाने के लिए हनुमान जी को पाताल लोक जाने को कहा। हनुमान जी जब पाताल लोक पहुंचे तो देखा कि द्वार पर उनका ही पुत्र मकरध्वज है।

मकरध्वज ने जब उन्हें रोका तो उन्होंने मकरध्वज को युद्ध में हरा कर अंदर प्रवेश किया तो देखा भगवान श्री राम और लक्ष्मण बंधक बने हैं। साथ ही वहां पांच दीपक, पांच दिशाओं में जल रहे हैं। ये तंत्र अहिरावण की मां भवानी का था। हनुमान जी समझ चुके थे कि ये पांचों दीपक एक साथ बुझाने के बाद ही अहिरावण का अंत हो सकता है इसलिए उन्होंने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण कर पाचों दीपक एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध किया श्रीराम लक्ष्मण को साथ ले आये।

यही कारण है कि हनुमान जी के इस स्वरूप की पूजा करने से मनुष्य के हर संकट एक साथ खत्म हो जाते हैं। हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप में उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख है। जय श्रीराम।

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