Papankusha Ekadashi in Hindi: पापनाशिनी और मोक्षदायिनी है पापांकुशा एकादशी , जानिए सही तिथि कब और कैसे करें व्रत के नियमों का पालन

Papankusha Ekadashi in Hindi: कब है पापांकुशा एकादशी , पापांकुशा एकादशी व्रत को पूरी लगन, विधि विधान के साथ रखने से पाप नष्ट हो जाते है, जानिए इससे जुड़ी सारी बाते...

Update:2024-10-13 06:30 IST

Papankusha Ekadashi in Hindi: अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को  पापांकुशा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी पर व्रत करने से व्यक्ति के सभी जाने-अनजाने में किए गए पापों का प्रायश्चित होता है।

पापांकुशा एकादशी शुभ मुहूर्त (Papankusha Ekadashi 2024S hubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 13 अक्टूबर को सुबह 9 . 8 मिनट से होगा। एकादशी तिथि का समापन 14 अक्टूबर को सुबह 6 . 41 मिनट पर होगा। पापाकुंशा एकादशी का व्रत 13 अक्टूबर, रविवार को रखा जाएगा।

आश्विन एकादशी प्रारंभः 09.08 AM (13 अक्टूबर 2024, रविवार)

आश्विन एकादशी प्रारंभः 06.41 AM (14 अक्टूबर 2024, सोमवार)

पापांकुशा एकादशी व्रत का पारण समय 14 अक्टूबर की दोपहर 1.16 मिनट से 3 . 34 मिनट तक रहेगा।

अमृत काल 06:37 PM से 08:09 PM

ब्रह्म मुहूर्त-04:50 AM से 05:38 AM

अभिजीत मुहूर्त-11:50 AM से 12:38 PM

रवि पुष्य योग- 05:55 AM से 02:51 AM, अक्टूबर 14

 पापांकुशा एकादशी का व्रत विधि (Papankusha Ekadashi 2024 Puja Vidhi)

व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, फल, फूल, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।: पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा का श्रवण करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। भगवान विष्णु के नाम का स्मरण और भजन-कीर्तन करने से मन को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। इस एकादशी को लेकर मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत करता है और भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे अगले जन्म में उच्च स्थान प्राप्त होता है और जीवन के अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 पापांकुशा एकादशी व्रत का पालन में  कम से कम बोलना चाहिए। दशमी तिथि को भोजन में तामसिक चीजों (प्याज-लहसुन, नॉनवेज आदि) का सेवन नहीं करना चाहिए और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। मन में भी कोई बुरे विचार न लाएं। एकादशी तिथि पर सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। संकल्प अपनी शक्ति के अनुसार ही लेना चाहिए यानी एक समय फलाहार का या फिर बिना भोजन का। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र की स्थापना किसी साफ स्थान पर करें। शुद्ध घी की दीपक लगाएं। कुमकुम से तिलक करें। चावल, अबीर, गुलाल, फूल, हार आदि चीजें चढ़ाएं। इस प्रकार पूजा करने के बाद भगवान को अपनी इच्छा अनुसार भोग लगाएं। उसमें तुलसी के पत्ते जरूर रखें। अंत में आरती करें और प्रसाद सभी लोगों को बांट दें। दिन भर भगवान का ध्यान करते रहें। रात्रि में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

पापाकुंशा एकादशी की कथा (Papankusha Ekadashi  Katha)

एक बहुत ही क्रूर शिकारी क्रोधना, विंध्याचल पर्वत में रहा करता था। उसने अपने पुरे जीवन में सिर्फ दुष्टता से भरे कार्य किये थे। उसकी ज़िन्दगी के अंतिम दिनों में, यमराज अपने एक आदमी को उस शिकारी को लाने के लिए भेजते है। क्रोधना मौत से बहुत डरता था, वो अंगारा नाम के एक ऋषि के पास जाता है और उनसे मदद की गुहार करता है। वो ऋषिमुनि उसे पापांकुश एकादशी के बारे में बताते है, उसे बोलते है कि आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत वो रखे और उस दिन भगवान् विष्णु की आराधना करे। पापांकुशा एकादशी व्रत को पूरी लगन, विधि विधान के साथ रखता है। इस व्रत के बाद उसके पाप क्षमा हो जाते है, और उसे मुक्ति मिल जाती है।

कृष्ण ने युधिष्ठिर को कहा-

एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि "आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है और इस अवसर पर किसकी पूजा होती है एवं इस व्रत का क्या लाभ है?" युधिष्ठिर की मधुर वाणी को सुनकर गुणातीत श्रीकृष्ण भगवान बोले- आश्विन शुक्ल एकादशी 'पापांकुशा' के नाम से जानी जाती है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पाप का निरोध करती है अर्थात उनसे रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ, मोक्ष और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसके सारे संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रती को सुबह स्नान करके विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनके नाम से व्रत और पूजन करना चाहिए। व्रती को रात्रि में जागरण करना चाहिए। जो भक्ति पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है और वह भोगों मे लिप्त नहीं होता। श्रीकृष्ण कहते हैं, जो इस पापांकुशा एकदशी का व्रत रखते हैं, वे भक्त कमल के समान होते हैं जो संसार रूपी माया के भवर में भी पाप से अछूते रहते हैं। कलिकाल में जो भक्त इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें वही पुण्य प्राप्त होता है, जो सतयुग में कठोर तपस्या करने वाले ऋषियों को मिलता था। इस एकादशी व्रत का जो व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि से अनुष्ठान करते हैं, वे न केवल अपने लिए पुण्य संचय करते हैं, बल्कि उनके पुण्य से मातृगण व पितृगण भी पाप मुक्त हो जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करके व्रती को द्वादशी के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दान देना चाहिए।

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