Papankusha Ekadashi 2023: जन्म-जन्मांतर के पापों को नाश करने का दिन है पापकुंशा एकादशी, जानिए इसका महत्व और कथा

Papankusha Ekadashi 2023 Significance: कब है पापाकुंशा एकादशी , पापांकुशा एकादशी व्रत को पूरी लगन, विधि विधान के साथ रखता है। इस व्रत के बाद उसके पाप क्षमा हो जाते है, और उसे मुक्ति मिल जाती है।जानिए इससे जुड़ी सारी बाते...

Update:2023-10-24 06:30 IST

Papankusha Ekadashi 2023 पापांकुशा एकादशी 2023: आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी 25 अक्टूबर को है इस दिन व्रत के नियम का पालन करेंगे तो आपके हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है। इस माह की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से बिछड़े हुए लोगों से मुलाकात होती है। संबंधों में प्रेम बढ़ता है।एकादशी सभी 24 एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ एकादशी है। इसे एकादशी भी कहते हैं। इस साल 2023 में 25 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी है। इस दिन कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और उपवास किया जाता है।

पापांकुशा एकादशी 2023

पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं। जो भक्त भगवान का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने और इस ब्रह्मांड की कई सुखों को प्राप्त करने के लिए पापांकुशा एकादशी उपवास का पालन करते हैं। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है।  

पापांकुशा एकादशी में नियमों में व्रत का पालन किया जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से एक करोड़ पितरों का उद्धार होता है। इस व्रत के प्रभाव से स्वयं के लिए भी स्वर्ग लोक के मार्ग खुलता हैं। विधि विधान से इस एकादशी का व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी के दिन ही वनवास से लौटने के बाद श्री राम और भरत का मिलन भी इसी दिन हुआ था। इसीलिए इस दिन की शुभता और भी बढ़ जाती है।

पापांकुशा एकादशी का शुभ मुहूर्त और पारण

एकादशी तिथि का प्रारंभ:24 अक्टूबर दिन मंगलवार को दोपहर 03 . 14 मिनट से प्रारंभ होगी

एकादशी तिथि का समापन :25 अक्टूबर दिन बुधवार को दोपहर 12. 32 मिनट पर होगी

अमृत काल-06:53 AM से 08:21 AM, 04:08 AM से 05:35 AM

ब्रह्म मुहूर्त-04:54 AM से 05:42 AM

 बता दें कि इस बार पापांकुशा एकादशी पर शूल योग बन रहा है जो किसी भी काम की पूर्णता के लिए शुभ है।

पारण का समय : 26 अक्टूबर की सुबह 06. 09 मिनट से सुबह 08.35 मिनट के बीच कर सकते हैं।

पापांकुशा एकादशी  की पूजा विधि

पापांकुशा एकादशी के दिन बिना जल और अन्न के व्रत रखकर पीले फूल, फल तुलसी गंगाजल से भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। उपवास से एक दिन पहले सात्विक भोजन कर व्रत की शुरुआत करना चाहिए । इस व्रत में भगवान विष्णु की उपासना करें। भगवान श्री हरि को तुलसी, ऋतु फल और तिल अर्पित करें। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। एकादशी के दिन रात्रि में जागकर भगवान श्री हरि का भजन कीर्तन करें। विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें।

पापांकुशा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठने और स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनें। जब तक एकादशी तिथि समाप्त नहीं होती, व्रत उस समय तक जारी रहता है। पापांकुशा एकादशी व्रत करने के दौरान किसी प्रकार का पाप या बुरा काम नहीं करना चाहिए और यहां तक कि झूठ भी नहीं बोलना चाहिए। द्वादशी की पूर्व संध्या पर व्रत पूर्ण होता है जो बारहवां दिन है। उपवास समाप्त करने से पहले कुछ दान करने और ब्राह्मणों को भोजन अर्पित करना होता है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्हें पूरे समय मंत्रों का जप करना चाहिए।

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

एक बहुत ही क्रूर शिकारी क्रोधना, विंध्याचल पर्वत में रहा करता था। उसने अपने पुरे जीवन में सिर्फ दुष्टता से भरे कार्य किये थे। उसकी ज़िन्दगी के अंतिम दिनों में, यमराज अपने एक आदमी को उस शिकारी को लाने के लिए भेजते है। क्रोधना मौत से बहुत डरता था, वो अंगारा नाम के एक ऋषि के पास जाता है और उनसे मदद की गुहार करता है। वो ऋषिमुनि उसे पापांकुश एकादशी के बारे में बताते है, उसे बोलते है कि आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत वो रखे और उस दिन भगवान् विष्णु की आराधना करे। पापांकुशा एकादशी व्रत को पूरी लगन, विधि विधान के साथ रखता है। इस व्रत के बाद उसके पाप क्षमा हो जाते है, और उसे मुक्ति मिल जाती है।

कृष्ण ने युधिष्ठिर को कहा-

एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि "आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है और इस अवसर पर किसकी पूजा होती है एवं इस व्रत का क्या लाभ है?" युधिष्ठिर की मधुर वाणी को सुनकर गुणातीत श्रीकृष्ण भगवान बोले- आश्विन शुक्ल एकादशी 'पापांकुशा' के नाम से जानी जाती है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पाप का निरोध करती है अर्थात उनसे रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ, मोक्ष और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसके सारे संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रती को सुबह स्नान करके विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनके नाम से व्रत और पूजन करना चाहिए। व्रती को रात्रि में जागरण करना चाहिए। जो भक्ति पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है और वह भोगों मे लिप्त नहीं होता। श्रीकृष्ण कहते हैं, जो इस पापांकुशा एकदशी का व्रत रखते हैं, वे भक्त कमल के समान होते हैं जो संसार रूपी माया के भवर में भी पाप से अछूते रहते हैं। कलिकाल में जो भक्त इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें वही पुण्य प्राप्त होता है, जो सतयुग में कठोर तपस्या करने वाले ऋषियों को मिलता था। इस एकादशी व्रत का जो व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि से अनुष्ठान करते हैं, वे न केवल अपने लिए पुण्य संचय करते हैं, बल्कि उनके पुण्य से मातृगण व पितृगण भी पाप मुक्त हो जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करके व्रती को द्वादशी के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दान देना चाहिए।

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