Pishach Mochan Kund: पिशाच मोचन कुंड का रहस्य, जानिए पितृ पक्ष में आत्मा को कील से बांधने की कहानी
Pishach Mochan Kund : पिशाच मोचन कुंड: गरुड़ पुराण, स्कंद पुराणों के अनुसार पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग या बैकुंठ का द्वार खुल जाता है और अनादि काल से स्थित इस कुंड के माध्यम से भूत-प्रेत सभी को मुक्ति मिल जाती है।
Pitru Paksha 2024
पिशाच मोचन कुंड:श्राद्ध पक्ष शुरू हो गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक पितरों का दिन है। इन 15-16 दिनों में श्राद्ध तर्पण कर पितरों का आशीर्वाद लिया जाता है। हमारे संस्कारों में एक संस्कार पितरों को नमन करने का भी है। ताकी हम इस लोक में रहकर बैकुंठ का मार्ग खोल सके। बैकुंठ या मोक्ष जाने के लिए सबसे सरल मार्ग बनारस या काशी को माना गया है। इसे धर्म ग्रंथों में मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है ।
पिशाच मोचन त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व
बनारस के पिशाच मोचन कुंड ( Pishach Mochan Kund ) में श्राद्ध करने से व्यक्ति अपने पितरों को शांति और गति देते हैं और उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति भी दिलाते हैं। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि अगर पितृ दोष से मुक्ति पानी है तो श्राद्ध कर्म एवं तर्पण जरुर करें नहीं तो पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होते हैं। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से जीव को मुक्ति मिलती है। अमावस्या तिथि को पिशाच श्राद्ध करने से पितृ आत्मा प्रसन्न होते हैं सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा पितरों का आशीर्वाद बना रहता है।
पितृ पक्ष में मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का गढ़
कहते हैं यहां जो इंसान अंतिम सांस लेता है उसे मोक्ष मिलता है। जिन लोगों की मृत्यु यहां नहीं होती । उनका अंतिम संस्कार यहां पर कर देने मात्र से ही मोक्ष मिलता है। गया की तरह ही काशी में भी एक ऐसा कुंड भी है जहां पर मृत आत्माओं की शांति के लिए लोग पिंड दान करने आते है। पितृपक्ष ( Pitru paksha) शुरू होते ही इस कुंड पर भूतों का मेला लगता है।
- इस कुंड का नाम है पिशाचमोचन कुंड। जहां पितृपक्ष में अकाल मृत्यु होने पर मरने वालों को श्राद्ध से मुक्ति मिलती है।
- तामसी आत्माओं से छुटकारे के लिए कुंड के पेड़ में कील ठोक कर बांधा जाता है। कुछ लोग नारायन बलि पूजा भी कराते है जिससे मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है।
- शिवपुराण के अनुसार काशी से पहले इस शहर को आनंदवन के नाम से जाना जाता था। जो भगवान शिव को अतिप्रिय है।
- पिशाचमोचन मंदिर के पुजारी बताते है कि यहां एक मान्यता ऐसी भी है कि अकाल मौत मरने वालों की आत्माएं तीन तरह की होती है जिसमें तामसी, राजसी, और सात्विक।
- तामसी प्रवृत्ति की आत्माओं को यहां के विशाल वृक्ष में कील ठोककर बांध दिया जाता है, जिससे वो यहीं पर पर बैठ जाए और किसी भी परिवार के सदस्य को परेशान न करें।
- इस पेड़ में अब तक लाखों कील ठोकी जा चुकी है ये परंपरा बेहद पुरानी है जो आज भी चली आ रही है।
- इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिए काला, लाल और सफेद झंडे लगाए जाते हैं। इसे त्रिदेव शंकर, ब्रह्मा और विष्णु के रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य करते हैं।
- धार्मिक गुरुओं के अनुसार पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग या बैकुंठ का द्वार खुल जाता है। और अनादि काल से स्थित इस कुंड के माध्यम से भूत-प्रेत सभी से मुक्ति मिल जाती है।
गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण में श्राद्ध पक्ष और पिशाचन मोचन का वर्णन मिलता है। बनारस में अकेला ऐसा स्थान है, जहां त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। जिस भी व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है, उसे यहां मोक्ष मिलता है। शास्त्रों में कहा गया है कि गंगा के धरती पर आने के पहले से ही बनारस में इस कुंड का अस्तित्व रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन कुंड का नाम पिशाच नाम के व्यक्ति से पड़ा था, जो कि बहुत पाप करता था। उसे इसी कुंड में मुक्ति मिली थी। इसके साथ ही जिन लोगों की अकाल मृत्यु होती हैं, उनके परिजन यहां आकर के पूजा करते हैं। वे श्राद्ध कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु तर्पण करते हैं।पिशाच मोचन श्राद्ध काशी में अमावस्या पर ऐसे करें
इस दिन कहा गया है कि सुबह स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए। कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करें। तिलक, आचमन के बाद पीतल या ताँबे के पात्र में पानी लेकर उसमें दूध, दही, घी, शहद, कुमकुम, अक्षत, तिल, कुश रखें । फिर हाथ में जल लेकर संकल्प में व्यक्ति का नाम लें, जिसके लिए पिशाचमोचन श्राद्ध किया जाता है। फिर नाम लेते हुए जल को भूमि में छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार आगे कि विधि संपूर्ण कि जाती है। तर्पण करने के बाद शुद्ध जल लेकर सर्व प्रेतात्माओं की सदगति हेतु यह तर्पण कार्य भगवान को अर्पण करेंय़ इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है साथ में पीपल के वृक्ष पर भी जलार्पण किया जाता है ।
- इस पेड़ में अब तक लाखों कील ठोकी जा चुकी है ये परंपरा बेहद पुरानी है जो आज भी चली आ रही है।