Shree Krishna Leela: जब भगवान कृष्ण ने माता जसोदा को दिखाया अपना विराट रूप

Shree Krishna Leela: एक बार बलराम सहित ग्वाल-बाल खेलते-खेलते यशोदा के पास पहुँचे और यशोदाजी से कहा- माँ! कृष्ण ने तो आज मिट्टी खाई है। यशोदा ने कृष्ण के हाथों को पकड़ लिया और धमकाने लगी कि तुमने मिट्टी क्यों खाई है। यशोदा को यह भय था कि मिट्टी खाने से इसको कोई रोग न लग जाए।

Update:2023-04-15 02:24 IST
Shree Krishna Leela (Pic: Newstrack)

Shree Krishna Leela in Hindi:

देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड।

रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड॥

भावार्थ:-फिर उन्होंने माता जसोदा को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं। एक बार बलराम सहित ग्वाल-बाल खेलते-खेलते यशोदा के पास पहुँचे और यशोदाजी से कहा- माँ! कृष्ण ने तो आज मिट्टी खाई है। यशोदा ने कृष्ण के हाथों को पकड़ लिया और धमकाने लगी कि तुमने मिट्टी क्यों खाई है। यशोदा को यह भय था कि मिट्टी खाने से इसको कोई रोग न लग जाए। कृष्ण तो इतने भयभीत हो गए थे कि वे माँ की ओर आँख भी नहीं उठा पा रहे थे।

तब यशोदा ने कहा- नटखट तूने एकान्त में मिट्टी क्यों खाई। बलराम सहित और भी ग्वाल इस बात को कह रहे हैं। कृष्ण ने कहा- मिट्टी मैंने नहीं खाई है। ये सभी लोग मिथ्या कह रहे हैं। यदि आप उन्हें सच्चा मान रही हैं तो स्वयं मेरा मुख देख ले। माँ ने कहा यदि ऐसा है तो तू अपना मुख खोल। लीला करने के लिए उस छोटे बालरूप धारी सर्वेश्वर सम्पन्न श्रीकृष्ण ने अपना मुख माँ के समक्ष खोल दिया।

यशोदा ने जब मुख के अंदर झाँका तब उन्हें उसमें चर-अचर संपूर्ण विश्व दिखाई पड़ने लगा। अंतरिक्ष, दिशाएँ, द्वीप, पर्वत, समुद्र सहित सारी पृथ्वी प्रवह नामक वायु, विद्युत, तारा सहित स्वर्गलोक, जल, अग्नि, वायु, आकाश, अपने अधिष्ठाताओं एवं शब्द आदि विषयों के साथ दसों इंद्रियाँ सत्व, रज, तम इन तीनों तथा मन, जीव, काल, स्वभाव, कर्म, वासना आदि से लिंग शरीरों का अर्थात चराचर शरीरों का जिससे विचित्र विश्व एक ही काल में दिख पड़ा।

इतना ही नहीं, यशोदा ने उनके मुख में ब्रज के साथ स्वयं अपने आपको भी देखा। इन बातों से उन्हें तरह-तरह के तर्क-वितर्क होने लगे। यह क्या मैं स्वप्न देख रही हूँ या देवताओं की कोई माया है। अथवा मेरी बुद्धि ही व्यामोह है। अथवा इस मेरे बच्चे का ही कोई स्वाभाविक अपना प्रभावपूर्ण चमत्कार है।

अन्त में उन्होंने यही दृढ़ निश्चय किया कि अवश्य ही इसी का चमत्कार है और निश्चय ही ईश्वर इसके रूप में आए हैं। तब उन्होंने कृष्ण की स्तुति की जो चित्त, मन, कर्म, वचन तथा तर्क की पहुँच से परे इस सारे ब्रह्मांड का आश्रय है। जिसके द्वारा बुद्धि वृत्ति में अभिव्यक्त प्रकाश से इसकी प्रतीति होती है। उस अचिन्त्य शक्ति परब्रह्म को मैं नमस्कार करती हूँ।

अस्तुति करि न जाइ भय माना। जगत पिता मैं सुत करि जाना॥

हरि जननी बहुबिधि समुझाई। यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई॥

भावार्थ:- (माता से) स्तुति भी नहीं की जाती। वह डर गई कि मैंने जगत्पिता परमात्मा को पुत्र करके जाना। श्री कृष्ण ने माता को बहुत प्रकार से समझाया (और कहा-) हे माता! सुनो, यह बात कहीं पर कहना नहीं॥कृष्ण ने जब देखा कि माता यशोदा ने मेरा तत्व पूर्णतः समझ लिया है। तब उन्होंने तुरंत पुत्र स्नेहमयी अपनी शक्ति रूप माया विस्तृत कर दी जिससे यशोदा क्षण में ही सबकुछ भूल गई। उन्होंने कृष्ण को उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। उनके हृदय में पूर्व की भाँति पुनः अपार वात्सल्य का रस उमड़ गया।

(कंचन सिंह)

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