प्रार्थना एक वैज्ञानिक क्रिया है। विज्ञान खुद में एक प्रार्थना है। जीव जब शयन की अवस्था में होता है तो उसकी चेतना उसकी देह से इतर अंतरिक्ष के भ्रमण पर होती है। चेतना का यह भ्रमण जीव की देह की शयनपूर्व अवस्था में किये गए कार्यो और प्रार्थनाओं के अनुरूप कुछ पराभौतिक क्रियाएं आयोजित करता है। जीव यानी मनुष्य की यह चेतना इस समय अंतरिक्ष की असीम ऊर्जा से सम्मिलन करती है। इसी लिए हमारी सनातन संस्कृति प्रतिपल सकारात्मक सोच और चिंतन की बात करती है। हमारे संस्कार भी इसी कारण सोने से पूर्व प्रार्थना की बात करते हैं। सृष्टि में हमारे अस्तित्व की पहचान सिर्फ हमारी दैहिक उपस्थिति नहीं हो सकती। इसके लिए हमें हर पल अपनी इसी चेतना पर आश्रित रहना होता है।
हमारे शयन यानी नींद के प्रारम्भ से लेकर जागने तक हमारी चेतना की अनंत यात्रा का कोई आभास हमें नहीं होता। क्योकि इस आभास के लिए हम तत्पर नहीं होते। लेकिन वे साधक जो नियमित ध्यान लगाते हैं , वे इसी स्थिति का लाभ पाते हैं। ध्यान में वे जीव , साधक अपनी चेतना के साथ ही स्वयं यात्री बन जाते हैं। इस अवस्था में चेतना जहां जहां जाती है साधक उसी की अनुभूति करता रहता है। बहरहाल, प्रार्थना की वैज्ञानिकता को आज पश्चिम का समग्र वैज्ञानिक जगत स्वीकार कर चुका है। पश्चिम की अवधारणा में भी भारतीय सनातन परम्परा की वैज्ञानिक सोच को अब स्थापना मिल चुकी है। अब नासा के वैज्ञानिक भी प्रार्थना का विज्ञान समझ रहे हैं और समझा भी रहे हैं। भारतीय संस्कृति में जन्म से मृत्यु तक ही नहीं, बल्कि दिन के प्रारम्भ से लेकर अंत तक की भी, महत्वपूर्ण प्रार्थनाओं का समावेश है। प्रस्तुत हैं छह अति महत्वपूर्ण प्राथनाएं :
‘‘काराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम॥’’
हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती तथा हाथ के मूल भाग में भगवान नारायण निवास करते हैं। अत: प्रात:काल अपने हाथों का दर्शन करते हुए अपने दिन को शुभ बनायें।
बिस्तर छोडऩे के बाद जमीन पैर रखने से पहले यह श्लोक दोहरायें -
मातृभूमि प्रार्थना मन्त्र -
‘‘समुन्द्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि!नमस्तुभ्यंपादस्पर्शं क्षमस्व मे।।’’
हे! मातृभूमि! देवता स्वयं विष्णु (पतिरूप में) आपकी रक्षा करते हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूं। हे सागर रूपी परिधानों (वस्त्रों) और पर्वत रूपी वक्षस्थल से शोभायमान धरती माता, मैं अपने चरणों से आपका स्पर्श कर रहा हूं, इस के लिए मुझे क्षमा कीजिए।
नवग्रह शांति प्रार्थना मंत्र-
ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी
भानु: शशि भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतवे:
कुर्वन्तु सर्वे मम सु प्रभातम।।
ब्रह्मा, मुरारी (विष्णु) और त्रिपुर-नाशक शिव (अर्थात तीनों देवता) तथा सूर्य, चन्द्रमा, भूमिपुत्र (मंगल), बुध, बृहस्पति, शुक्र्र, शनि, राहु और केतु ये नवग्रह, सभी मेरे प्रभात को शुभ एवं मंगलमय करें।
सप्त ऋषि-सप्त रसातल-सप्त स्वर प्रार्थना मन्त्र-
सनत्कुमार: सनक: सनन्दन:
सनातनोऽप्यासुरिपिङगलौ च।
सप्त स्वरा: सप्त रसातलानि
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥
(ब्रह्मा के मानसपुत्र बाल ऋषि) सनतकुमार, सनक, सनन्दन और सनातन तथा (सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल मुनि के शिष्य) आसुरि एवं छन्दों का ज्ञान कराने वाले मुनि पिंगल मेरे इस प्रभात को मंगलमय करें। साथ ही (नाद-ब्रह्म के विवर्तरूप षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद) ये सातों स्वर और (हमारी पृथ्वी से नीचे स्थित) सातों रसातल (अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल, और पाताल) मेरे लिए सुप्रभात करें।
सप्तार्णवा सप्त कुलाचलाश्च
सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त।
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ।।
सप्त समुद्र (अर्थात भूमण्डल के लवणाब्धि, इक्षुसागर, सुरार्णव, आज्यसागर, दधिसमुद्र, क्षीरसागर और स्वादुजल रूपी सातों सलिल-तत्व) सप्त पर्वत (महेन्द्र, मलय, सह्याद्रि, शुक्तिमान्, ऋक्षवान, विन्ध्य और पारियात्र), सप्त ऋषि (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र), सातों द्वीप (जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौच, शाक, और पुष्कर), सातों वन (दण्डकारण्य, खण्डकारण्य, चम्पकारण्य, वेदारण्य, नैमिषारण्य, ब्रह्मारण्य और धर्मारण्य), भूलोक आदि सातों भूवन (भू:, भुव:, स्व:, मह:, जन:, तप:, और सत्य) सभी मेरे प्रभात को मंगलमय करें।
पंच-तत्व प्रार्थना मन्त्र
पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथाप:
स्पर्शी च वायुज्र्वलनं च तेज:।
नभ: सशब्दं महता सहैव
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥
अपने गुणरूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस से युक्त जल, स्पर्श से युक्त वायु, ज्वलनशील तेज, तथा शब्द रूपी गुण से युक्त आकाश महत् तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें अर्थात पांचों बुद्धि-तत्व कल्याण हों।
प्रात: स्मरणमेतद्यो विदित्वादरत: पठेत।
स सम्यक्धर्मनिष्ठ: स्यात् अखण्डं भारतं स्मरेत॥
इन श्लोकों का प्रात: स्मरण भली प्रकार से ज्ञान करके आदरपूर्वक
पढऩा चाहिए।