Puri Jagannath Mandir Ka Rahasya:पुरी जगन्नाथ मंदिर से जुड़े इन रहस्यों से आज तक नहीं उठ पाया पर्दा, जानिए क्यों?

Puri Jagannath Mandir Ka Rahasya: आज जगन्नाथ रथयात्रा दिन है। भगवान जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को नगर भ्रमण ओर अपने मौसी के घर जाते है । और 9 दिनों तक विश्राम करते है। इस दिन का धार्मिक महत्व है। जानते है इस रथ यात्रा और मंदिर से जुड़े रहस्य...

Update:2023-06-20 10:03 IST

Puri Jagannath Mandir Ka Rahasya जगन्नाथ मंदिर का रहस्य : 20 जून 2023 को पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जायेगी, भगवान जगन्नाथ अपने मौसी के घर और भाई बहन के साथ नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। जानते है भगवान जगन्नाथ के मंदिर और उसमे स्थित मुर्तियों का रहस्य...

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार राजा इंद्रदयुम्न भारत और माता सुमति के पुत्र थे और मालवा के राजा थे। कहते हैं कि राजा इंद्रदयुम्न को सपने में भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए थे । कई ग्रंथों में राजा इंद्रदयुम्न और उनके यज्ञ के बारे में वर्णन है। उन्होंने कई विशाल यज्ञ किए और लोक कल्याण के काम किए। एक रात भगवान विष्णु ने उनको सपने में दर्शन दिए और कहा नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव (भगवान जगन्नाथ) कहते हैं। ‍तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो । राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा। उसमें से एक था ब्राह्मण विद्यापति । विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है। वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्‍ववसु भगवान जगन्नाथ के उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है। चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया। आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया। उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी। विश्‍ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त के दुख से भगवान भी दुखी हो गए। भगवान गुफा में लौट गए, लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे। राजा ने मंदिर बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा। भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है। राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए। तब राजा को समझ आ गया कि नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्‍ववसु की ही सहायता लेना पड़ेगी। सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए।

विश्वकर्मा के शर्त की अवहेलना

लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की कोशिश। राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश के बाद कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका। तब तीनों लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्‍वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धरकर आए। उन्होंने राजा को कहा कि वे नीलमाधव की मूर्ति बना सकते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने अपनी शर्त भी रखी कि वे 21 दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे। कोई उनको बनाते हुए नहीं देख सकता। उनकी शर्त मान ली गई। लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं। राजा इंद्रदयुम्न की रानी गुंडिचा अपने को रोक नहीं पाई। वह दरवाजे के पास गई तो उसे कोई आवाज सुनाई नहीं दी। वह घबरा गई। उसे लगा बूढ़ा कारीगर मर गया है। उसने राजा को इसकी सूचना दी। अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी तो राजा को भी ऐसा ही लगा। सभी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया।

जगन्नाथ मंदिर स्थापित अधूरी मूर्ति का रहस्य

कमरा खुला तो विश्वकर्मा भगवान गायब थे और उसमें 3 अधूरी ‍मूर्तियां मिली पड़ी मिलीं। भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन की अधूरी मूर्तियां पड़ी थी। राजा ने इसे ईश्वर की इच्छा मानकर अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक भगवान जगन्नाथ और उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम अधूरे रुप में विद्यमान हैं।

इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा 20 जून 2023 को आषाढ़ की द्वितीया तिथि है। इस दिन पूरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा निकलेगी। जिसका धार्मिक महत्व और रहस्य है। पुराणों में भगवान जगन्नाथ का मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है। धर्म पुराणों के अनुसार, पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इनकी नगरी जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाई। पुरी को चार धाम में से एक मानते हैं। इसे धरती का स्वर्ग और बैकुंठ भी कहते है। इस मंदिर में भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भगवान विष्णु विराजमान हैं।

पवित्र सुदर्शन चक्र अष्टधातु मंदिर के शिखर पर लगा पवित्र सुदर्शन चक्र अष्टधातु से निर्मित है। इसे स्‍थापित करने की तकनीक आज भी रहस्‍य है। पूरी में आप कहीं भी हों, सुदर्शन चक्र हमेशा सामने ही दिखेगा। मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत लहराता है। कहा जाता है कि इस मंदिर के ऊपर से कभी कोई पक्षी या विमान नहीं उड़ पाता है। मंदिर के इस रहस्य पर विज्ञान भी अपना तर्क देने में असमर्थ रहा है। सदियों से चला आ रहा ये रहस्य आज भी रहस्य बना है। 4 लाख वर्ग फुट में फैला 214 फुट ऊंचाई है। इसकी छाया एक नहीं पड़ती है।

जगन्नाथ रथ यात्रा पूजा-विधि

  • भगवान जगन्नाथ की आरती करने से पहले उन्हें अच्छे से आसन दें और फूल चंदन से सजा लें। अब उन्हें टिंबर पुष्पांजलि अर्पण करें और धूप-दीप जलाकर उन्हें दिखाएं।
  • आरती के धूप को "एतस्मै धूपाय नमः" इस मंत्र को बोलकर आचमन करें। जल छिड़के और फिर गंध पुष्प से "इदं धूपं ॐ नमो नारायणाय नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्पण करें।
  • फिर धूप से आरती करें, इसके बार आरती के पांच दीप यानि पंचप्रदीप जलाकर "एतस्मै नीराजन दीपमालाएं नमः" कह कर आचमनी जल छिड़के ।
  • गंध पुष्प लेकर "एष नीराजन दीपमालाएं ॐ नमः नारायणाय नमः" इस मंत्र उच्चारण कर आरती करें।
  • भगवान का आशीर्वाद इसके बाद अगर चाहें तो कपूर, जल भरे शंख, पुष्प और चामर से आरती कर सकते हैं। आरती के खत्म होने पर शंख ध्वनि करके प्रणाम करें और प्रसाद स्वरुप आरती के बाद धूप और दीप सबको दें। इसके बाद ही भोग या प्रसाद सब में बांटे।
  • अगर रथ यात्रा के दिन आरती करते हैं तो आपको पूर्णयात्रा (अंतिम दिन) के दिन भी आरती करना चाहिए। रथ यात्रा में सूर्यास्त से पहले एक बार आरती जरूर करें और फिर शाम को संध्या आरती करें। पूजा करने से पहले पूरे घर को धूप के सुगंध से सुगन्धित करें।

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