Radha Krishna Story: देखि मनोरम छटा निराली
Radha Krishna Story Hindi तुम नेत्र बन्द करो और इस दिव्य श्रीवृन्दावन के दर्शन करो । विपिन राज की ये जो भूमि है कंचनमयी है। चमकीली है। कोमल है। सुगन्धित है । और मुस्कुराती हुई
Radha Krishna Vrindavan Story Hindi: तुम नेत्र बन्द करो और इस दिव्य श्रीवृन्दावन के दर्शन करो । विपिन राज की ये जो भूमि है कंचनमयी है। चमकीली है। कोमल है। सुगन्धित है । और मुस्कुराती हुई हरिप्रिया बोलीं-मादक भी है ये भूमि। जो भी यहाँ आएगा। वो मत्त हो जाएगा। वो सब कुछ भूल जाएगा। इसलिए ये भूमि धतूरे के समान मतवाला बना देती है जो भी यहाँ आए उसे ।
- दिव्य कनक अवनी बनी, जटित मनी बहुभाँति ।
- अति विचित्रता सों ठनी, रवनी कवनी काँति ॥
- दिव्य कंचनमयी अवनि रवनी । जटित मनि बिबिधि बर चित्रकवनी ॥
- बिमल वृक्षन की सोभा बनि सार । पेड़ मनि नील तो हरितमनि डार ॥
- पत्र मनि पीत फल अरुन अनुकूल । मधुर सौरभ सुभग सुरंग रंग फूल ॥
- बहुत दुम ऐसें रहि जिनकी छबि छाय। फूल फल मूल साखादि बहुभाय ॥
- सबहिं आभासि रहे रँग नाना। मनहरन रम्य को कोटि भाना ।।
- अतिहि रसीली रही रँग रेली। ललित वृक्षन सों लपटाय बेली ॥
- बहुत कै लत्तिका उर्ध्व गवनी। बहुत कै भूमि परि सरित रवनी ।।
हरिप्रिया यह कहते हुए मुझे फिर अपने नेत्र खोलने के लिए कहती हैं। जब मैं नेत्र खोलता हूँ सामने मेरे दिव्य श्रीवृन्दावन है। ओह ! वही भूमि , कंचनवत् । मैंने देखा चारों ओर वन हैं , उपवन हैं , पुष्प वाटिका है। अनेक मार्ग हैं। वो सब मार्ग मणि जटित हैं। मार्ग के निकट सरोवर है। अत्यन्त सुन्दर सुन्दर सरोवर हैं । सरोवर के पास पास महल हैं । उस महल की शोभा कौन कह सकता है । मैं चकित था। मैं विस्मय में पड़ गया था। श्रीवन की जो भूमि थी उसमें चित्रकारी हो रही थी। चित्रकारी ? हरिप्रिया हंसीं -वो मेरे मन को पढ़ रही थीं। मैंने चित्रकारी शब्द का प्रयोग किया था । तब मुझे सफाई देनी पड़ी, तो क्या कहूँ ? इस भूमि पर जो वृक्ष लताएँ हैं , सरोवर हैं , नहर हैं , महल हैं , मणिमण्डप है। ये सब ऐसा लग रहा है जैसे - सच में ही किसी चित्रकार ने चित्रकारी की हो , अद्भुत अनुपम । मेरी बात सुनकर हरिप्रिया जोर से हंसीं । फिर मुझ से बोलीं-इन वृक्षों को देखा ? वृक्षों से लिपटी लताओं को ? आश्चर्य ये था कि सखी जी जो जो देखने के लिए कह रही थीं वो दिव्य होता जा रहा था। जैसे - अब उन्होंने कहा था। वृक्ष-लताओं को देखो। मैंने जैसे ही देखा वो अपने दिव्य रूप में आगया था । दर्पण के समान वृक्षावलियाँ थीं। उन वृक्षों का तना नीलमणि के समान था। और शाखायें हरित मणि के समान । फूल सुगन्धित , सुन्दर , और सुरंगित भी थे । उन फूलों से जो सुगन्ध का प्रसार हो रहा है उससे निकुँज महक उठा था । फल कैसे लगे थे वृक्षों में ? जैसे अरुण मणि के समान हों। शोभा सुन्दर लग रही थीं । ऐसे ही प्रत्येक फल रंग विरंगे थे वहाँ किन्तु एक रंग दूसरे रंग का सहायक लग रहा है। ये अद्भुत बात थी ।
अब मेरी दृष्टि गयी लताओं पर। इनकी सुन्दरता तो देखते ही बन रही थी। रस पूर्ण लताएँ वृक्षों से लिपटी हुयी थीं। उन लताओं को देखकर लग रहा था कि जैसे - प्रेयसी अपने प्रियतम से लिपट गयी हो । अरे ! ये क्या है ? मुझे ये आश्चर्य लगा कि वृक्ष से लिपट कर लता ऊपर की ओर जा रही हैं। और देखते देखते ही दूसरा कुँज भी तैयार कर दिया था इन लताओं ने । तब मुझे लगा कि यहाँ की लताएँ भी चेतन हैं । यहाँ का सब कुछ चेतन है । सब यहाँ सखी हैं । ये कहो ना ! हरिप्रिया की बात सुनकर मैं प्रसन्न हुआ था। हाँ , यहाँ सब कुछ सखी है । मैं बहुत हंसा।अब आनन्द जो बढ़ता जा रहा था । अच्छा , अब आप जानना चाहोगे कि लताएँ कुँज का निर्माण क्यों कर रही थीं ? तो सुनो। युगल की इच्छा के लिए ये बात मुझे हरिप्रिया ने बताई थी। अब सुनो , कुँज का निर्माण कैसे हो रहा था। वृक्षों से लिपटी लता ऊपर जा रही थी और ऊपर जाते जाते वो दूसरे वृक्ष को ऊपर से पकड़ लेती। फिर वितान बन जाता। छा जातीं। दोनों वृक्षों के बीच में । ऐसे वहाँ कुँज बन रहे थे ।
बीच में दीवार भी लताओं की ही थी। और दीवार बनाते समय रंध्र भी लताएँ छोड़ रहीं थीं उसमें झरोखे बन रहे थे । मैंने ये भी देखा कि कुँज के भीतर पुष्पों की चित्रकारी भी लताओं के द्वारा ही की जा रही थी । बहुत दिव्य था ये सब। ये सब कुँज थीं लताओं की। किन्तु इतनी चतुराई से बनाया गया था कि मणिमय लग रहा था । मैंने देखा। श्रीवन के पुष्पों से रंग बह रहे थे। और वो बहते हुए कुँज की भूमि में जाकर फैल जाते इसी से फर्श का निर्माण हो रहा था । और उसी समय उसी फर्श पर पलंग का भी निर्माण हो रहा था। उसमें फूलों की शैया बिछाई गयी थी। ये सब लताओं के द्वारा ही हो रहा था। इसलिए हरिप्रिया सखी इन्हें ‘लता सखी’कहकर सम्बोधन कर रहीं थीं ।पलंग के नीचे एक चौकी बना दी थी। जिसमें युगल अपने चरण रखते । एक चौकी और थी जो सिरहाने की तरफ थी। उसमें यमुना जल से भरी झारी रखी गयी थी जल पीने के लिए । सामने एक बड़ी चौकी थी जिसमें फूलों की डलिया और एक डलिया में फल आदि रखे थे ।
मैंने देखा - लताएँ पाँवड़े बिछा रहीं थीं ।युगलवर जब वन विहार करके आयेंगे तब वे इन पुष्पों में चरण रखते हुए पर्यंक पर विराजेंगे और जैसे ही युगलवर विराजें तभी लताएँ वृक्षों पर चढ़ देवताओं की तरह ऊपर से पुष्प बरसाने लगतीं। झुक कर फल आदि देतीं । ये सखियाँ हैं लताएँ । इनकी सेवा देखकर मेरा मन आनन्द से भर गया था। इनके विषय में क्या लिखूँ ! ये श्रीवृन्दावन की लताएँ हैं जो चिद हैं ,और आनन्द स्वरूप हैं ।हरिप्रिया सखी जू ने मेरे सिर में हाथ रखा था । दिव्य श्रीवृन्दावन का ऐसा दर्शन कर और हरिप्रिया सखी जू का स्नेहासिक्त कर कमल अपने सिर में पाकर मैं भी रसोन्मत्त हो गया ।