Raksha Bandhan 2022: रक्षाबंधन पर्व को लेकर समाज में भ्रम एवं अविश्वास की स्थिति क्यों, जानें सही तिथि और मुहूर्त

Raksha Bandhan 2022: उपाकर्म एवं रक्षाबंधन पर्व को लेकर समाचार पत्रों में कई तरह की खबरें प्रकाशित हो रही हैं जिससे समाज में भ्रम एवं अविश्वास की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

Update: 2022-08-09 11:15 GMT

 रक्षाबंधन पर्व: जानें सही तिथि और मुहूर्त : Photo- Social Media

Raksha Bandhan 2022: उपाकर्म एवं रक्षाबंधन पर्व (Rakshabandhan festival) को लेकर समाचार पत्रों में कई तरह की खबरें प्रकाशित हो रही हैं जिससे समाज में भ्रम एवं अविश्वास की स्थिति उत्पन्न हो रही है। जबकि सनातन धर्म के अंतर्गत किसी भी व्रत पर्व या उत्सव का निर्णय आकाशीय ग्रह पिंडों की गति स्थिति आदि से प्राप्त मानो की ज्योतिषीय परिगणना करते हुए धर्म शास्त्र में निर्दिष्ट व्यवस्था के अंतर्गत किया जाता है। इस क्रम में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में मनाया जाने वाला उपाकर्म एवं रक्षाबंधन सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है।

इस वर्ष पूर्णिमा के मान 11 अगस्त को प्रातः 9:35 से आरंभ होकर 12 अगस्त के दिन प्रातः 7:16 तक होने के कारण तिथि को लेकर समाज में भ्रम की स्थितियां उत्पन्न हो गई है। इस संदर्भ में अपने अपने विवेक का उपयोग करते हुए कुछ लोग 11 तो कुछ लोग 12 अगस्त को रक्षाबंधन एवं उपाकर्म मनाने का निर्णय दे रहे हैं। परन्तु अतः समाज में व्याप्त इस भ्रम के निवारण के लिए काशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं ज्योतिष शास्त्र के सर्वमान्य मनीषी प्रो.रामचंद्र पाण्डेय गुरु जी की अध्यक्षता में काशी के सभी वरिष्ठ ज्योतिषियों से चर्चा संपन्न हुई जिसमें धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के रक्षा बन्धन एवं उपाकर्म निर्णय सम्बन्धी उद्धरणों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि यदि पूर्णिमा का मान दो दिन प्राप्त हो रहा हो तथा प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए परंतु इदं प्रतिपत युतायां न कार्यम इस वचन के अनुसार पूर्णिमा यदि प्रतिपदा से युक्त होकर 6 घटी से न्युन हो तो उसमे रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए ।

रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान है

इस वर्ष 12 तारीख को पूर्णिमा 6 घटी से कम प्राप्त हो रही है तथा 11 तारीख को 8:25 बजे तक भद्रा है अतः 11 तारीख को ही रात्रि 8:25 के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा क्यों की ऐसी स्थिति में रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान है जैसा कि कहा गया है तत्सत्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते।"

रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्यते।

श्रावण पूर्णिमा का एक महत्वपूर्ण कर्म उपाकर्म भी होता है जिसका अनुष्ठान धर्म शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार 11 तारीख को ही पूर्णिमा तिथि में करना शास्त्र सम्मत रहेगा क्योंकि खंड रूप में पूर्णिमा का 2 दिन मान प्राप्त होने की स्थिति में द्वितीय दिन यदि दो/तीन घटी से अधिक और 6 घटी से कम पूर्णिमा प्राप्त हो रही हो तो शुक्ल यजुर्वेद की तैतरीय शाखा के लोगों को श्रावणी उपाकर्म दूसरे दिन तथा शुक्ल यजुर्वेदीय अन्य सभी शाखा के लोगों को श्रावणी उपाकर्म पूर्व दिन अर्थात 11 अगस्त को ही करना चाहिए उपा कर्म में भद्रा दोष नहीं लगता।

क्योंकि धर्म शास्त्र का जो वचन भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा के रूप में उद्धृत है वहां श्रावणी शब्द से रक्षा बंधन का ग्रहण है उपाकर्म नहीं। क्योंकि श्रावण्यां श्रावणीकर्म यथाविधि समाचरेत्। उपाकर्म तु कर्तव्यं कर्कटस्थे दिवाकरे। इत्यादि वचन दोनो को अलग अलग वर्णित कर रहे है।

इस समय रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा

अतः 11 तारीख को ही प्रातः 9:35 के बाद श्रावणी उपाकर्म तथा रात्रि 8:25 बजे के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा। पूर्णिमा को स्थिति एवं मान को देखकर धर्म शास्त्रीय वचनों का आश्रय लेते हुए सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया। इस संबंध में काशी विद्वत परिषद का भी निर्णय यही है इस बैठक में काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी जी भी उपस्थित रहे तथा उन्होंने परिषद के ज्योतिष प्रकोष्ठ से संपर्क करते हुए 11 तारीख के ही रक्षाबंधन और उपाकर्म निर्णय का भी अनुमोदन किया।

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के न्यास परिषद के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठतम ज्योतिर्विद प्रो.चंद्रमा पाण्डेय, प्रो. चंद्रमौली उपाध्याय, प्रो.शत्रुघ्न त्रिपाठी, प्रो. माधव जनार्दन रटाटे, डॉ.सुभाष पाण्डेय आदि ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र के सभी विद्वानों ने विभिन्न पंचांगों में प्रदत पूर्णिमा की मानों तथा धर्मशास्त्र के वचनों की समीक्षा करते हुए 11 को 9:35 के बाद उपाकर्म तथा 11 को ही रात्रि 8:25 के बाद रक्षा बन्धन रक्षा बंधन को शास्त्र सम्मत बताया।

इसका विस्तृत विवरण विद्वत गण धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु आदि धर्मशास्त्र के ग्रंथों में स्पष्टतया देख सकते हैं। इस विषय पर डॉ. शैलेश तिवारी ने बड़ा सुंदर और विस्तृत आलेख अपने फेसबुक पटल पर प्रमाण वचन सहित लिखा है।

प्रो. विनय पाण्डेय की कलम से

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