Rama Ekadashi Vrat Kab Hai October 2022: दिवाली के पहले कब है रमा एकादशी, जरूर सुनें इसकी कथा खुलेगा स्वर्ग का दरवाजा

Rama Ekadashi Vrat Kab Hai October 2022:रमा एकादशी दिन भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी को अतिप्रिय है। कार्तिक मास की यह एकादशी दिवाली के 4 दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन चावल का त्याग और व्रत करने से मनोकामना पूर्ति के साथ फल की प्राप्ति होती है।

Update:2022-10-17 14:04 IST

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Rama Ekadashi Vrat Kab Hai October 2022

रमा एकादशी 2022 कब है


कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी 20-21 अक्टूबर को है इस दिन व्रत के नियम का पालन करेंगे तो आपको हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है। इस माह की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से बिछड़े हुए लोगों से मुलाकात होती है। संबंधों में प्रेम बढ़ता है। रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं। जो भक्त भगवान का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने और इस ब्रह्मांड की कई सुखों को प्राप्त करने के लिए रमा  एकादशी उपवास का पालन करते हैं। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी एकादशियों में श्रेष्ठ एकादशी है। इसे रमा एकादशी भी कहते हैं। इस साल 2022 में 20-21अक्टूबर को रमा  एकादशी है। इस दिन कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और उपवास किया जाता है।

शास्त्रों में एकादशी का बड़ा महत्व है इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। दिवाली से पहले कार्त‌िक कृष्‍ण एकादशी का बड़ा महत्व है क्योंकि यह चतुर्मास की अंत‌िम एकदशी है। भगवान व‌िष्‍णु की पत्नी देवी लक्ष्मी ज‌िनका एक नाम रमा भी हैं उन्हें यह एकादशी अधिक प्रिय है, इसल‌िए इस एकादशी का नाम रमा एकादशी है। ऐसी मान्यता है क‌ि इस एकादशी के पुण्य से सुख ऐश्वर्य को प्राप्त कर मनुष्य उत्तम लोक में स्‍थान प्राप्त करता है। रमा एकादशी दिवाली के त्‍यौहार के चार दिन पहले आती है। है।

रमा एकादशी में नियमों में व्रत का पालन किया जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से  लक्ष्मी जी की कृपा बरसती है। इस व्रत के प्रभाव से स्वयं के लिए भी स्वर्ग लोक के मार्ग खुलता हैं। विधि विधान से इस एकादशी का व्रत करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी तिथि का आरंभ 20 अक्टूबर को शाम 04.04 पर होगा और इसका समापन 21 अक्टूबर को शाम 05 .22 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से रमा एकादशी का व्रत 21 अक्टूबर, दिन शुक्रवार को रखा जाएगा और व्रत का पारण अगले दिन 22 अक्टूबर, दिन शनिवार को किया जाएगा। इस व्रत में पारण का समय सुबह 06 बर 29 मिनट से 08. 43 मिनट तक रहेगा। 

रमा एकादशी का शुभ मुहूर्त और पारण

  • रमा एकादशी तिथि का प्रारंभ: 20 अक्टूबर को शाम 04.04 पर होगा
  • रमा एकादशी तिथि का समापन :21 अक्टूबर शाम 05 .22 मिनट पर होगा
  • ब्रह्म मुहूर्त:04:47 AM से 05:35 AM
  • अमृत काल : 09:58 AM से 11:28 AM
  • अभिजीत मुहूर्त:11:51 AM से 12:38 PM
  • रमा एकादशी पर पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 . 43 मिनट से 12. 28 मिनट तक रहेगा।
  • पारण का समय : 22 अक्टूबर सुबह 06 बर 29 मिनट से 08. 43 मिनट तक रहेगा

रमा एकादशी विधि

रमा  एकादशी के दिन बिना जल और अन्न के व्रत रखकर पीले फूल, फल तुलसी गंगाजल से भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। उपवास से एक दिन पहले सात्विक भोजन कर व्रत की शुरुआत करना चाहिए । इस व्रत में भगवान विष्णु की उपासना करें। भगवार श्री हरि को तुलसी, ऋतु फल और तिल अर्पित करें। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। एकादशी के दिन रात्रि में जागकर भगवान श्री हरि का भजन कीर्तन करें। विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें।

एकादशी के दिन सुबह प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के समक्ष घी का दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें और विधि पूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। फिर उन्हें पूजा के समय तुलसी दल और फल का भोग लगाएं। भगवान को रोली व अक्षत का तिलक लगाएं। बता दें कि इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी के भी मंत्रों का कम से कम 108 बार जाप करें। इसके बाद रात में भगवान का स्मरण और भजन करें। वहीं फिर एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर एकादशी व्रत का पारण कर जरूरतमंदों को फल, चावल आदि चीजों का दान करें। ध्यान रखें एकादशी के दिन भूलकर भी चावल का सेवन न करें।रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं और मृत्यु उपरांत विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि रमा एकादशी पर संध्या के समय दीपदान करने से देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं। इससे सुख-समृद्धि, धन में वृद्धि होती है और समस्त बिगड़े काम बन जाते हैं।

'विष्णु सहस्रनाम' को पढ़ना बेहद शुभ माना जाता है। इस विशेष दिन, भक्त भगवान विष्णु की, विशाल उत्साह और अत्यधिक भक्ति के साथ पूजा करते हैं। एक बार जब सभी अनुष्ठान पूर्ण हो जाते हैं, भक्त आरती करते हैं। रमा की पूर्व संध्या पर दान करना बहुत ही लाभदायक होता है। ब्राह्मणों को भोजन, कपड़े और धन दान करना चाहिए। भक्त दान के एक हिस्से के रूप में 'ब्राह्मण भोज' भी आयोजित करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस त्यौहार की पूर्व संध्या पर परोपकार और दान करते हैं, वह मृत्यु के बाद नरक में कभी नहीं जाते।

व्रत रखने वाले व्यक्ति को रमा एकादशी के दिन क्रोध नहीं करना चाहिए, अपने आचरण पर नियंत्रण रखकर कम बोलना चाहिए। रात के समय भगवान की पूजा-आराधना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने के अलावा सोना, तिल, गाय, अन्न, जल, छाता व जूते का दान करने से पिछले जन्म के भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

रमा एकादशी की कथा

कथा पौराणिक युग में मुचुकुंद नाम के प्रतापी राजा थे, उनकी एक सुंदर कन्या थी। जिसका नाम था चंद्रभागा था। राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ किया। शोभन शारीरिक रूप से दुर्बल था। वह एक समय भी बिना खाएं नहीं रह सकता था। शोभन एक बार अपनी ससुराल आया हुआ था। वह कार्तिक का महीना था। उसी मास में महापुण्यदायिनी रमा एकादशी आ गई। इस दिन सभी व्रत रखते थे। चंद्रभागा ने सोचा कि मेरे पति तो बड़े कमजोर हृदय के हैं वे एकादशी का व्रत कैसे करेंगे जबकि पिता के यहां तो सभी को व्रत करने की आज्ञा है। जिसके बाद राजा ने आदेश जारी किया कि इस समय उनका दामाद राज्य में पधारा हुआ है अतः सारी प्रजा विधानपूर्वक एकादशी का व्रत करे। यह सुनकर सोभन अपनी पत्नी के पास गया और बोला तुम मुझे कुछ उपाय बताओॆ क्योंकि मैं उपवास नहीं कर सकता।

पति की बात सुनकर चंद्रभागा ने कहा मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता। यहां तक कि जानवर भी अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं करते। यदि आप उपवास नहीं कर सकते तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहां रहेंगे तो आपको व्रत तो अवश्य ही करना पड़ेगा। पत्नी की बात सुन सोभन ने कहा तुम्हारी राय उचित है लेकिन मैं व्रत करने के डर से किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाऊंगा, अब मैं व्रत अवश्य ही करूंगा। सभी के साथ सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया और भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल होने लगा। दूसरे दिन सूर्योदय होने से पहले ही भूख-प्यास के कारण सोभन के प्राण चले गए। राजा ने सोभन के मृत शरीर को जल-प्रवाह करा दिया और अपनी पुत्री को आज्ञा दी कि वह सती न हो और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे। चंद्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी।

उधर रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को जल से निकाल लिया गया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। उसके महल में रत्न तथा स्वर्ण के खंभे लगे हुए थे। राजा सोभन स्वर्ण तथा मणियों के सिंहासन पर सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था। गंधर्व तथा अप्सराएं नृत्य कर उसकी स्तुति कर रहे थे। उस समय राजा सोभन मानो दूसरा इंद्र प्रतीत हो रहा था। उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर में रहने वाला सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था। घूमते-घूमते वह सोभन के राज्य में जा पहुंचा, उसको देखा। वह ब्राह्मण उसको राजा का जमाई जानकर उसके निकट गया। राजा सोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने ससुर तथा पत्‍नी चंद्रभागा की कुशल क्षेम पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा हे राजन हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चंद्रभागा भी कुशल है। अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए। आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे। मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुंदर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा है, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ।


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