Rang Panchami Kyo Manaya Jata h : आखिर होली के बाद रंग पंचमी क्यों मनाई जाती है, जानिए शुभ-मुहूर्त और कथा-महत्व

Rang Panchami Kyo Manaya Jata h : रंगपंचमी का धार्मिक महत्व बहुत अधिक होता है। इस दिन रंगों की बजाए गुलाल से होली खेली जाती है। साथ ही रंगपंचमी के दिन हुरियारे गुलाल उड़ाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन वातावरण में गुलाल उड़ाना शुभ होता है।

Update:2023-02-16 10:06 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Rang Panchami Kyo Manaya Jata h?

रंग पंचमी क्यों मनाया जाता है?

रंग पंचमी का त्योहार तामसिक और राजसिक गुणों पर सत्त्वगुण (पवित्रता) की जीत और विजय का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक विकास के मार्ग में आने वाली बाधाएं जल्द समाप्त हो जाएंगी। रंग पंचमी त्योहार पांच प्रमुख तत्वों को सक्रिय करने में मदद करता है। इन पांच प्रमुख तत्वों में हवा, आकाश, पृथ्वी, जल और प्रकाश शामिल हैं। पुराणों के अनुसार, मनुष्य का शरीर भी इन्हीं पंच तत्त्वों से मिलकर बना हुआ है।

होली के बाद पंचमी के दिन फिर से रंग और गुलाल यानि रंगोत्सव का आनंद लोग  लेते हैं। रंग पंचमी का महत्व देव दीपावली की तरह ही है। रंग पंचमी का यह दिन देवी देवताओं को समर्पित होता है। इस दिन वातावरण में उड़ने वाले रंग को लेकर यह भी माना जाता है कि उड़ते हुए गुलाल से व्यक्ति में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक गुण प्रवेश करते हैं। 

रंग पंचमी में किन जगहों पर खेला जाता है गुलाल

मान्‍यता अनुसार अगर इस दिन कोई पूरे तन मन से व्रत रखे और पूजा पाठ करे तो देवी देवता भक्‍त को आशीर्वाद देते हैं। यही नहीं आज के दिन व्रत रखने से बड़े दोष मिटाएं जा सकते हैं। रंग पंचमी के दिन खास कर महाराष्ट्र में चैत्र की पंचमी तिथि के दिन सूखा रंग खेलने की परंपरा है। इसके अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में आज के दिन रंग व गुलाल खेला जाता है।

रंग पंचमी का शुभ मुहूर्त

2023 में रंग पंचमी का त्योहार 12 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। रंग पंचमी के साथ होली महोत्सव का भी समाप्त होता है। रंग पंचमी की शुरुआत 11 मार्च को रात 10 बजकर 5 मिनट पर ही जाएगी। वहीं, इसका समापन 12 मार्च को रात 10 बजकर 01 मिनट पर होगा।

रंगपंचमी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग के प्रारंभ में जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था। धूलि वंदन से आशय ये है कि 'उस युग में श्री विष्णु ने अलग-अलग तेजोमय रंगों से अवतार कार्य का आरंभ किया। अवतार निर्मित होने पर उसे तेजोमय, अर्थात विविध रंगों की सहायता से दर्शन रूप में वर्णित किया गया है। होली ब्रह्मांड का एक तेजोत्सव है। ब्रह्मांड में अनेक रंग आवश्यकता के अनुसार साकार होते हैं और संबंधित घटक के कार्य के लिए पूरक व पोषक वातावरण की निर्मित करते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, होलाष्टक के दिन भगवान भोलेनाथ ने कामदेव को भस्म कर दिया था। जिसके चलते देवलोक में उदासी छा गई थी। उसके बाद भगवान शिव ने कामदेव की पत्नी देवी रति और देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव को दोबारा जीवित कर देने का आश्वासन दिया था। इससे सभी देवी-देवता प्रसन्न हो गए और रंगोत्सव मनाने लगे। इसके बाद से ही पंचमी तिथि को रंगपंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा।

रंगपंचमी का धार्मिक महत्व बहुत अधिक होता है। इस दिन रंगों की बजाए गुलाल से होली खेली जाती है। साथ ही रंगपंचमी के दिन हुरियारे गुलाल उड़ाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन वातावरण में गुलाल उड़ाना शुभ होता है। साथ ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता भी धरती भी पर आ जाते हैं और वह इंसानों के साथ गुलाल खेलते हैं। ये भी कहा जाता है कि हवा में उड़ने वाली अबीर-गुलाल के संपर्क में जो व्यक्ति आ जाता है उसको हर पापों से छुटकारा मिल जाता है।


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