Sanatan Dharma: करुणा से सिद्ध होता है देवत्व

Sanatan Dharma: हमने ऐसे किसी भी शक्तिपुंज को अपना देवता नहीं माना जो हमें भयभीत करता हो। किसी का देवत्व उसकी क्रूरता से सिद्ध नहीं होता, देवत्व करुणा से सिद्ध होता है।

Written By :  Sankata Prasad Dwived
Update: 2023-12-04 12:21 GMT

sanatan dharma  (photo: social media )

Sanatan Dharma: सनातनी लोगों को जब भगवान शिव, राम और कृष्ण के शक्ति के केंद्र में जब करुणा, जगतकल्याण का भाव दिखा, तभी वह देवत्व के रूप में स्वीकार्य हुए।

हमने ऐसे किसी भी शक्तिपुंज को अपना देवता नहीं माना जो हमें भयभीत करता हो। किसी का देवत्व उसकी क्रूरता से सिद्ध नहीं होता, देवत्व करुणा से सिद्ध होता है।

भगवान शिव जब पत्नी का शव उठाये बिलख रहे होते हैं, तभी उनकी करुणा उभर कर आती है। दिखता है कि संसार का सबसे शक्तिशाली पुरुष अंदर से कितना कोमल है। उनके भीतर की यही कोमलता सामान्य मनुष्य के अंदर यह विश्वास जगाती है कि वे कृपालु हैं, करुनानिधान हैं। इसी कारण हम मानते हैं कि वे पूजे जाने योग्य हैं।


ऐसा केवल महाशिव के साथ नहीं है। अयोध्या की प्रजा राजकुमार भरत के साथ वन में उस महान योद्धा को वापस लाने गयी थी जिन्होंने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध किया था। पर जब उन्होंने भरत से लिपट कर बिलखते राम को देखा, तो जैसे तृप्त हो गए। राम की करुणा उनके रोम रोम में बस गयी। वे राजा लाने गए थे, पर देवता लेकर लौटे! संसार को यदि वे केवल रावण वध के लिए याद होते तो वे महायोद्धा राम होते, पर सिया के लिए बहाए गए अश्रु उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम राम बना गए। वे हमें इसी स्वरूप में अधिक प्रिय हैं।


कृष्ण की सोचिये! वे उस युग के नायक हैं जब समाज में प्रपंच बढ़ गया था। अपने युग के अधर्म को समाप्त करने के लिए कृष्ण अपने स्वभाव में कठोरता धारण करते हैं। वे किसी को क्षमा नहीं करते, सबको दंडित करते हैं। दृढ़ता ऐसी कि न्याय के लिए शस्त्र न उठाने का प्रण तोड़ देते हैं। पर वे श्रीकृष्ण भी अपने दरिद्र मित्र को देख कर द्रवित हो जाते हैं। संसार का स्वामी अपने दरिद्र सखा के साथ वह मित्रता निभाता है कि सुदामा का स्मरण होते ही जगत को भगवान श्रीकृष्ण के अश्रु दिखाई देने लगते हैं। वे अश्रु ही तो भरोसा दिलाते हैं कि वे हमारी बांह नहीं छोड़ेंगे। जो अपने भक्तों की पीड़ा देख कर रो पड़ता हो, उससे बड़ा देवता कौन हो सकता है? उससे अधिक अपना कौन हो सकता है?


तो क्या शक्ति, साहस, सामर्थ्य का कोई मूल्य नहीं? ऐसा बिल्कुल नहीं है। मूल्य है! पर संसार में उनसे अधिक शक्तिशाली कौन जिनका तीसरा नेत्र खुलते ही सबकुछ जल जाता हो? उन दो भाइयों से अधिक साहसी कौन जो अकेले ही समूचे राक्षसी साम्राज्य को समाप्त कर देने निकल पड़े थे और संसार के सबसे बलशाली योद्धा का अंत कर के लौटे? उनसे अधिक सामर्थ्य किसका जो संसार के समस्त श्रेष्ठ योद्धाओं के मध्य निहत्थे खड़े होकर भी सारे अधर्मियों का अंत कर देते हैं?

शक्ति की आराधना के लिए हमें कोई अन्य विग्रह तलाशने की आवश्यकता नहीं, भारत अलौकिक शक्तिपुंजों की संतानों का देश है। इस सभ्यता ने अतुलित बलशाली, हिमशैलाभ देहधारियों को बार बार अवतरित होते देखा है, इसीलिए शक्ति हमें भयभीत नहीं करती। हम इससे आगे बढ़कर करुणा को पूजते हैं।

हर शक्तिशाली के समक्ष शीश झुका देना अज्ञानता है। शक्ति के केंद्र में जब करुणा हो, जगतकल्याण का भाव हो, तभी वह देवत्व के रूप में स्वीकार्य होती है। पर इतना समझने के लिए सनातनी होना पड़ता है।

भगवान शिव, राम और कृष्ण के अश्रु देवत्व की ओर से मानवता को दिया गया सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है।

( लेखक प्रख्यात धर्म विद् हैं ।)

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