Sankashti Chaturthi 2022 April : इन मंत्रों से शुभ मुहूर्त में करें भगवान गणेश की पूजा, जानिए संकष्टी चतुर्थी की कथा

Sankashti Chaturthi 2022 April :विघ्नहर्ता भगवान गणेश ( lord ganesha) को बुद्धि प्रदाता माना जाता है। उनको लड्डू, दुर्वा, मूसक और चतुर्थी तिथि अतिप्रिय है। सालभर में 24 चतुर्थी तिथि होती है। इसमें 12 कृष्ण पक्ष में और 12 शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि होती है। संकटहर्ता भगवान गणेश कृपा पाने , धन-धान्य को लिए और संतान सुख मिले इसके लिए चतुर्थी का व्रत-पूजा करने से पार्वती नंदन अति प्रसन्न होते हैं।

Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update: 2022-04-19 04:07 GMT

सांकेतिक तस्वीर,सौ.से सोशल मीडिया

Sankashti Chaturthi 2022 April 

संकष्टी चतुर्थी 2022

विघ्नहर्ता भगवान गणेश ( lord ganesha) को बुद्धि प्रदाता माना जाता है। उनको लड्डू, दुर्वा, मूसक और चतुर्थी तिथि अतिप्रिय है। सालभर में 24 चतुर्थी तिथि होती है। इसमें 12 कृष्ण पक्ष में और 12 शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि होती है। संकटहर्ता भगवान गणेश कृपा पाने , धन-धान्य को लिए और संतान सुख मिले इसके लिए चतुर्थी का व्रत-पूजा करने से पार्वती नंदन अति प्रसन्न होते हैं। हर माह पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi ) तिथि के अलग-अलग नाम है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी  और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहते है।

इसलिए 19 अप्रैल की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। क्योंकि भी वैशाख माह का कृष्ण पक्ष चल रहा है। प्रथम पूज्य भगवान गणेश की पूजा से सब कष्टों का निवारण होता है। इसका वर्णन पुराणों में भी है। संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली । हर माह के संकष्टी चतुर्थी व्रत को करने से दुखों से छुटकारा पाने के लिए विधि-विधान से भगवान गणपति की पूजा करते हैं। कहते हैं कि इस दिन व्रत करने और सच्चे मन से भगवान की आराधना करने से भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं।

संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त

आज मंगलवार की संकष्ट चतुर्थी को अंगारीक चतुर्थी भी कहते है। इसका शुभ मुहूर्त है।

चतुर्थी तिथि आरंभ- 19 अप्रैल, मंगलवार की शाम को लगभग 4. 38 pm पर होगी।

जो चतुर्थी तिथि समाप्त - 20 अप्रैल दोपहर 1 . 52 pm तक रहेगी।

अभिजीत मुहूर्त - 12.01 pm से 13.10 pm तक रहेगा।

विजय मुहूर्त- दोपहर 2. 06 pm से दोपहर 2. 57 pm तक रहेगा।

आज चंद्रोदय -रात 9 .50 मिनट तक रहेगा

संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि और मंत्र

संकट चतुर्थी हो या विनायक इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत होने के बाद घर में गंगाजल छिड़कें। फिर घर के मंदिर के पास एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़े को बिछाकर उस पर भगवान श्री गणेश की तस्वीर स्थापित करें। कलश रखकर भगवान का आवाहन करें और श्री गणेश को कुंकुम , चावल और दुर्वा चढ़ाएं। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद अबीर, गुलाल आदि द्रव्य अर्पित करें। गणेश जी को फूल, जनेऊ, दूर्वा, सुपारी, लौंग, इलायची आदि चीजें चढ़ाएं। मोदक या लड्डू का भोग लगाएं।

पूजा के समय ऊं श्री गणेशाय नम: और ऊं गं गणपते नम: मंत्र का जाप करें। फिर चतुर्थी का व्रत करें। इसे करने से सभी तरह के दोष दूर होते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। ओम् गं गणपतये नम का जाप करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन में खुशहाली आती है। ओम् वक्रतुंडाय हुं  इस मंत्र के जाप से भगवान गणेश की कृपा से काम में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं। ओम् श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा इस मंत्र के का जाप करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और व्यक्ति की रोजगार में आ रही बाधाएं दूर हो जाती हैं।

संकष्टी चतुर्थी में रखें इन बातों का ख्याल

ऐसा माना जाता है कि संकष्टीचतुर्थी के दिन गणेश जी के निमित्त जलाए दीपक की जगह बार-बार न बदलें। ऐसा करना अशुभ माना जाता है।

आज चतुर्थी के दिन जिस जगह पर गणेश जी की स्थापना की जाती है, उस जगह को अकेला या खाली नहीं छोड़ा जाता है। साथ ही गणेश जी की पूजा के समय मन, कर्म और वचन से शुद्ध होना जरूरी है। इस दिन ब्रह्मचर्य का भी पालन करना चाहिए।

पूजा के दौरान गणेश जी की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल भूलकर भी न करें। इससे गणेश जी रुष्ट हो जाते हैं। पौराणिक कथा के गणेश जी ने तुलसी जी को श्राप दिया था और पूजा से वर्जित कर दिया था।

संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत की अवधि में फलाहार के दौरान नमक का इस्तेमाल भूलकर भी न करें। इसके साथ ही इस दिन काला रंग धारण करने से बचें। इसे नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है।

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संकष्टी चतुर्थी की पौराणिक कथा

धर्म ग्रंथों में लिखी गणेश जी की कथाओं में संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी कथा है कि एक बार सभी देवी-देवता संकटों में घिरे हुए थे, तो वे समाधान के लिए भगवान शिव के पास आए। तब उन्होंने भगवान गणेश और कार्तिकेय से संकट का समाधान करने के लिए कहा, तो दोनों भाइयों ने कहा कि वे इसका समाधान कर सकते हैं।

अब शंकर जी दुविधा में पड़ गए। उन्होंने कहा कि जो भी इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर सबसे पहले आएगा, वह देवताओं के संकट के समाधान के लिए जाएगा। भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है, वे उस पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। गणेश जी की सवारी मूषक है, उसके लिए मोर की तुलना में पहले परिक्रमा कर पाना संभव नहीं था।

गणेश जी बहुत ही चतुर हैं। वे जानते थे कि चूहे पर सवार होकर वह पहले पृथ्वी की परिक्रमा नहीं कर सकते हैं। उन्होंने एक उपाय सोचा। वे अपने स्थान से उठे और दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव और माता पार्वती की 7 बार परिक्रमा की, फिर अपने आसन पर विराजमान हो गए।

उधर भगवान कार्तिकेय जब पृथ्वी की परिक्रमा करके आए, तो उन्होंने स्वयं को विजेता घोषित किया क्योंकि गणेश जी को वे वहां पर बैठे हुए देखे। तब महादेव ने गणेश जी से पूछा कि वे पृथ्वी परिक्रमा क्यों नहीं किए और उनकी परिक्रमा क्यों की?

गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही पूरा संसार है। इस वजह से उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर दी। गणेश जी के इस उत्तर से भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने को भेजा। साथ ही भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन गणेश पूजन करेगा और चंद्रमा को जल अर्पित करेगा, उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे। उसके संकटों का समाधान होगा और पाप का नाश होगा। उसके जीवन में सुख एवं समृद्धि आएगी।

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