Shadi ke Saat Vachan Ka Matlab:शादी के सात वचन का मतलब, जानिए विवाह में पति पत्नी सात फेरे क्यों लिए जाते हैं?

Shadi ke Saat Vachan Ka Matlab: हिन्दू धर्म मेें कई तरह की रस्में होती है जिसका हमारी संस्कृति में एक विशेष महत्व रखता है। विवाह की सभी रस्में वर और वधू को लेकर कई तरह के रीति रिवाजों को निभाने पर सम्पन्न होती है। जिन्हे उनके सुखी वैवाहिक दांपत्य जीवन के लिए पालन करना बेहद जरुरी है।

Update:2023-05-08 16:05 IST
सांकेतिक तस्वीर,सौ. से सोशल मीडिया

Shadi ke Saat Vachan Ka Matlab:

शादी के सात वचन का मतलब

हिंदू संस्कृति में रिति रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर काम किए जाते हैं। जिससे वह काम सफल हो सके। हिन्दू धर्म में ऐसी कई रस्में होती है, जिन्हें सही तरह से निभाकर हर कोई अपने परिवार की खुशियों को आगे ले जाते हैं। भगवान के प्रति अटूट आस्था भक्तों में देखने को मिलती है। इस तरह हिन्दू धर्म में सप्ताह के 7 दिनों का भी बहुत महत्व होता है।विवाह को लेकर भी हिन्दू धर्म मेें कई तरह की रस्में होती है जिसका हमारी संस्कृति में एक विशेष महत्व रखता है। विवाह की सभी रस्में वर और वधू को लेकर कई तरह के रीति रिवाजों को निभाने पर सम्पन्न होती है। जिन्हे उनके सुखी वैवाहिक दांपत्य जीवन के लिए पालन करना बेहद जरुरी है।

ऐसे में हर किसी ने शादियों में वर वधू की मेंहदी की रस्म से लेकर हल्दी और वरमाला जैसी कई रस्में देखी होगी,जब वर वधू फेरे लेते है तो इसको लेकर भी वर और वधू कई तरह के वचन फेरों के सामने अग्नि को साक्षी मानकर एक दूसरे को देते है। लेकिन कभी यह जानने की कोशिश की है की आखिर दुल्हा और दुल्हन अग्नि के सामने ही विवाह के समय सात फेरे लेकर वचन को क्यों निभाते है। जानते है..

हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में एक है विवाह संस्कार। इस संस्कार का एक नियम यह है कि जब दुल्हा और दुल्हन शादी के समय में मंडप में आते हैं तब पुरोहित ईश्वर को साक्षी मानकर दुल्हा और दुल्हन का विवाह संपन्न करवाते हैं। लेकिन यह विवाह तभी सहीं संपन्न माना जाता है, जब इस दौरान वर और वधू अग्नि के सामने सात फेरे लेकर वचन निभाने का वादा न करें। शादी की रस्मों के समय की आखिर अग्नि के ही चारों ओर फेरे क्यों लगाए जाए जाते हैं। यह हर कोई जानना भी चाहता है, दरअसल अग्नि को वेदों और शास्त्रों में प्रमुख देवता के रुप में स्थान मिला है।

आजकल भागदौड़ भरी इस जिंदगी में लोग पूरे विधि विधान से विवाह तो नहीं करा पाते हैं। लेकिन विवाह के समय पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं, आज हम आपको इन्हीं सात वचनों के बारे में बताने जा रहे हैं। हलांकि इन वचनों को शादी के बाद न तो पत्नियां ही पूरा कर पाती हैं और न ही पति। तो आइए जानते हैं इसके बारे में...

शादी में दिए गए इन सात वचनों का दांपत्य जीवन में काफी महत्व होता है। आज भी यदि इनके महत्व को समझा जाय तो वैवाहिक जीवन में आने वाली कई समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।

शादी के सात वचन

हिन्दू शादी की परंपरा ये मानती है कि पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। विवाह का शाब्दिक अर्थ है वि + वाह = विवाह , अर्थात उत्तरदायित्व का वहन करना या जिम्मेदारी उठाना।

सनातनी और वैदिक संस्कृति के अनुसार 16 संस्कारों का बड़ा महत्व है और विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है। पाणिग्रहण संस्कार को ही सामान्यतः विवाह के नाम से जाना जाता है। पत्नी और पत्नी के बीच संबंध को शारीरिक संबंध से अधिक आत्माओं का संबंध माना गया है. विवाह की रस्मों में सात फेरों का भी एक प्रचलन है जिसके बाद ही विवाह संपूर्ण माना जाता है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है।

विवाह में पति पत्नी सात फेरे के साथ सात वचन लेते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवन भर साथ निभाने का वादा करते हैं। लड़की विवाह के बाद लड़के के वाम अंग (बाई ओर) में बैठने से पहले उससे 7 वचन लेती है। 7 संस्कृत मंत्र वचन तथा उनका बताने जा रहे हैं।

मंत्र उच्चारण के साथ अग्नि के सात फेरे लेकर व ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो व्यक्ति तन-मन और आत्मा के साथ एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं।

प्रथम वचन
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!

यहाँ कन्या वर से पहला वचन मांग रही है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा करने जाएं तो मुझे भी अपने संग लेकर जाइएगा. यदि आप कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धार्मिक कार्य करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग (बांई ओर) में बिठाएं. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

द्वितीय वचन
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!

दूसरे वचन में कन्या वर से मांग रही है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा परिवार की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ.

तृतीय वचन
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!

तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे. यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

चतुर्थ वचन

चौथे वचन में वधू ये कहती है कि अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

पंचम वचन
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!

पांचवें वचन में कन्या कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाह आदि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी राय लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

षष्ठम वचन
न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!

छठवें वचन में कन्या कहती है कि यदि मैं कभी अपनी सहेलियों या अन्य महिलाओं के साथ बैठी रहूँ तो आप सामने किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे. इसी प्रकार यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार की बुराइयों अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

सप्तम वचन
परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!

आखिरी या सातवें वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को मां समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

वधू और वर अग्नि के समाने इन सात फेरों के वचनों को निभाते है

अग्नि को विष्णु भगवान का स्वरुप माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कहा गया है कि अग्नि में सभी देवताओं की आत्मा बसती है, इसलिए अग्नि में हवन करने से हवन में डाली गई सामग्रियों का अंश सभी देवताओं तक पहुंचता है। अग्नि के चारों तरफ फेरे लगाकर सात वचन लेने से यह माना जाता है कि दुल्हा और दुल्हन ने सभी देवताओं को साक्षी माना है और एक दूसरे को अपना जीवनसाथी स्वीकार कर लिया है। इसी तरह विवाह की जिम्मेरियों को निभाने का वचन लिया है। जिससे उनका वैवाहिक जीवन में सुखमय व्यतीत होगा उनके जीवन में आने वाली तमाम बाधाएं आसानी से दूर होती है। अग्नि को बेहद पवित्र माना गया है, इसलिए वधू और वर अग्नि के समाने इन सात फेरों के वचनों को निभाते है।

यदि शादी के बाद कोई व्रत-उपवास और किसी धार्मिक स्थान पर जाएं तो पति-पत्नी साथ लेकर जाएं। अगर बातों से सहमत हैं तो मैं आपके साथ जीवन यापन करने के लिए तैयार हूं। आप जैसे अपने माता -पिता का सम्मान करते हैं, ठीक वैसे ही आप मेरे माता-पिता का भी सम्मान करेंगे। परिवार की मर्यादा का पालन करेंगे। अगर आप इस बात को स्वीकार करते हैं तो मुझे आपके वामांग में आना स्वीकार है।

तीसरे वचन में कन्या अपने वर से कहती हैं कि आप मुझे वचन दीजिए कि जीवन की तीनों अवस्थाओं में मेरे साथ खड़े रहेंगे। मेरे बातों का पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं। कन्या चौथे वचन में ये मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से मुक्त थे। अब जब आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो आपको अपने परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाना होगा। अगर आप मेरे बात से सहमत है तो मैं आपके साथ आने के लिए तैयार हूं। इस वचन से यह मालूम होता है कि पुत्र का विवाह तब करे जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो। अपने परिवार का खर्चा चलाने लगे।

इस वचन में कन्या अपने वर से कहती हैं कि अगर आप घर परिवार के लेन देन में मेरी भी राय हो तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं। कन्या कहती है यदि मैं अपनी सखियों के साथ बैठकर कुछ समय बिता रही हूं तो उस समय आप किसी प्रकार का अपमान नहीं करेंगे। साथ ही आपको जुए के लत से खुद को दूर रखना होगा। अगर आप हमारी बातों को मानते हैं तो मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं। अंतिम वचन में कन्या कहती हैं कि आप पराई औरतों को माता और बहन के समान समझेंगे तथा पति-पत्नी के प्रेम के बीच में तीसरे किसी भी व्यक्ति को जगह नहीं देंगे।

Tags:    

Similar News