Shani Amavasya 2022: बन रहा है दुर्लभ संयोग, पितरों को खुश करने के लिए बेहद ख़ास है ये दिन

Shani Amavasya 2022: साल 2022 का पहला सूर्यग्रहण (first solar eclipse 2022) 30 अप्रैल, शनिवार को है। इसी दिन शनिचरी अमावस्या पड़ने के कारण भी इस ग्रहण का विशेष महत्व है।

Report :  Preeti Mishra
Published By :  Shashi kant gautam
Update: 2022-04-30 11:40 GMT

Shani Amavasya 2022: Photo - Social Media

Shani Amavasya 2022: साल 2022 का पहला सूर्यग्रहण (first solar eclipse 2022) 30 अप्रैल, शनिवार को है। इसी दिन शनिचरी अमावस्या पड़ने के कारण भी इस ग्रहण का विशेष महत्व है। शनि अमावस्या 30 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 59 मिनट पर शुरू होकर 1 मई को देर रात 1 बजकर 59 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। जबकि सूर्यग्रहण रात 12 बजकर 15 मिनट पर शुरू होकर 1 मई को सुबह 04 बजकर 07 मिनट पर समाप्त होगा।

हालाँकि इस सूर्यग्रहण के भारत में दिखाई नहीं देने के कारण इसके सूतक का भी असर यहाँ मान्य नहीं होगा। लेकिन फिर भी हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दिन होने वाले ग्रहों के हेर -फेर और अपने बुरे ग्रहों की शांति के कारण लोगों को इस ग्रहण की समाप्ति के बाद स्नान कर दान अवश्य देना चाहिए।

बता दें कि शनिचरी अमावस्या के दिन पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए पवित्र नदियों में स्नान, दान व तप करने की परंपरा है।

ज्योतिषाचार्य पंडित धनेश मणि त्रिपाठी (Astrologer Pandit Dhanesh Mani Tripathi) के अनुसार शनि अमावस्या कहते ही ये समझ में आता है कि अमावस्या मतलब अंधकार यानि तमाह प्रधान। शनि भी तमाह प्रधान ही है। 30 अप्रैल, शनिवार को दोनों तमाह प्रधान का एक साथ होना मतलब तमाह की प्रधानता होना। यानि नाकारात्मक शक्तियों की प्रधानता का दिन।

बता दें की जब अमावस्या के दिन शनि या शनि के दिन अमावस्या पड़े तो दोनों को मिलाकर नकरात्मत्क शक्तियों की ऊर्जा घनीभूत हो जाती है। ज्योतिषाचार्य पंडित धनेश मणि त्रिपाठी के मुताबिक ऐसी ऊर्जा को दो भाग में बाँट जाती है।

- सकारात्मक

- नकारात्मक

यानी जो व्यक्ति अपने अंदर की बुराई को हटाकर कुछ अच्छा करना चाहे तो भी शनि अमावस्या के दिन बने इस खास संयोग में वो व्यक्ति अपनी सकारात्मक ऊर्जा का भरपूर प्रयोग करने में सक्षम होगा। दूसरा किसी के अपने नकारात्मक शक्तियों को बढ़ाने के लिए भी यह एक दुर्लभ संयोग है। यानि इस पुरे वायु मंडल में शनिवार और अमावस्या जो इस पुरे ब्रम्हांड में है तो उसकी ऊर्जा घनीभूत होती है तो वही ऊर्जा को निकलकर उस तत्व में विलीन करने का अवसर है जिसके लिए कुछ लोग बेहद खास आराधना और पूजा -पाठ करते हैं।

गौरतलब है कि इस तामह प्रधान शक्तियों के मुख्य ग्रह शनि को ही माना जाता है। इसलिए शनिवार को अमावस्या पड़ने से उसकी ऊर्जा और भी ज्यादा तीव्र हो जाती है। मौजूद नकारात्मक शक्तियों से जुड़ कर अपनी शक्तियों को बढ़ाने की विद्या को भी बढ़ाने का ये दुर्लभ संयोग है।

शनि अमावस्या के दिन दुर्लभ संयोग- पंडित धनेश मणि त्रिपाठी

पंडित धनेश मणि त्रिपाठी के मुताबिक शनि अमावस्या के दिन बने इस दुर्लभ संयोग के कारण व्यक्ति आराधना और पूजा -पाठ के द्वारा अपने बुरे ग्रहों के प्रभाव से भी बाहर निकलने में सक्षम हो सकते है। मान्यताओं के अनुसार शनि अमावस्या के दिन पूजा -पाठ, आराधना और दीप-दान का विशेष महत्त्व होता है। पंडित त्रिपाठी ने दीप-दान का वैज्ञानिक महत्त्व भी बताया। उनके मुताबिक एक साथ कई दीप प्रज्जवलित करने से हम अपने आस-पास पुरे ब्रम्हांड में जो भी नेगेटिव एनर्जी विचरित करती है उसपर काबू पा कर अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं। जिस कारण भी इस दिन का दुर्लभ संयोग बेहद खास है।

पंडित धनेश मणि त्रिपाठी: Photo - Social Media

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक अमावस्या को हमारे पितर यानि हमारे पूर्वज जो प्रेत आदि योनियों में चले गए है या कही अन्य जगह चले गए हों जहाँ उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पायी है तो ऐसे लोग इस दिन सुबह सूर्योदय के साथ ही हमारे घर में प्रवेश कर जाते हैं। जो सूर्यास्त तक घर में ही विध्यमान रहते हैं। ऐसे में उन्हें अपने वंशजो से तर्पण की उम्मीद रहती है। जिसमें दान और ब्राह्मण खिलाना भी शामिल है। ऐसे में अगर शाम तक भी उन पितरों को हमारे द्वारा तर्पण नहीं मिल पाने की स्थिति में वे दुखी होकर वहां से चले जाते हैं।

असंतुष्ट पितरों को तृप्त करने के लिए तर्पण, पूजन, दान

गौरतलब है कि उन का दुःख हम पर किसी श्राप के भांति ही लगता है। इसलिए अमावस्या वो भी अगर शनिवार के दिन पड़ें तो अपने असंतुष्ट पितरों को तृप्त करने हेतु तर्पण, पूजन, दान और ब्राह्मण को जरूर भोजन कराना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य पंडित धनेश मणि त्रिपाठी का कहना है कि आम अमावस्या में ये बातें एक बार को क्षम्य भी हो सकती है। लेकिन शनि अमावस्या के दिन पितरों को प्रसन्न करने के उपायों में कमी करना पाप के समान है। क्योंकि जब आपके पूर्वज या पितर प्रसन्न होते हैं तो आपको आशीर्वाद स्वरुप वंश , शौर्य ,तरक्की ,स्वास्थ्य और ढेरों आशीर्वाद देकर जाते हैं। इसलिए 30 अप्रैल शनिवार को सूर्य ग्रहण के साथ अमावस्या को योग बेहद दुर्लभ संयोग होने के नाते इस दिन आपलोगों को अपने पितर और इष्ट देवताओं की उपासना में कोई त्रुटि नहीं छोड़नी चाहिए।

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