Shani Pradosh Vrat 2024: शनि प्रदोष आज

Shani Pradosh Vrat 2024: यह चैत्र के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत होगा, चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि 6 अप्रैल को सुबह 10:19 एएम से 7 अप्रैल को सुबह 06:53 एएम तक रहेगी

Written By :  Sankata Prasad Dwived
Update:2024-04-09 01:18 IST

Shani Pradosh Vrat 2024

Shani Pradosh Vrat 2024: हिन्दू नववर्ष 2024 में 4 शनि प्रदोष व्रत आने वाले हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पुत्र प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत रखा जाता है। उस दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में करते हैं और शनि प्रदोष व्रत की कथा सुनते हैं। पौराणिक कथा में नि:संतान सेठ और सेठानी की कहानी बताई गए है, जिनको शनि प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है।इस साल का पहला शनि प्रदोष व्रत 6 अप्रैल दिन शनिवार को है। यह चैत्र के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत होगा। चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि 6 अप्रैल को सुबह 10:19 एएम से 7 अप्रैल को सुबह 06:53 एएम तक रहेगी।

शनि प्रदोष व्रत मुहूर्त

वर्ष के पहले शनि प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ समय शाम 06:42 पीएम से रात 08:58 पीएम तक है।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

भगवान शिव को शनिदेव का गुरू माना गया है। इसलिए शनि संबंधी दोष दूर करने और शनिदेव की शांति के लिए शनि प्रदोष का व्रत करने की सलाह दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष काल में शिव जी साक्षात शिवलिंग में प्रकट होते हैं। इसीलिए इस समय शिव जी की पूजा का विशेष फल मिलता है। इस दिन दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ करने शनि की महादशा से राहत मिलती है।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत की पूजा के लिए प्रदोष काल यानी शाम का समय शुभ माना जाता है। लेकिन सुबह शिव के समक्ष व्रत का संकल्प लेकर शिव मंदिर में पूजा करें फिर सूर्यास्त से एक घंटे पहले, भक्त स्नान के बाद गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल आदि से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। भोलेनाथ को बेलपत्र, मदार, पुष्प, भांग, आदि अर्पित करना शुभ होता है। इसके बाद विधिपूर्वक पूजन और आरती करनी चाहिए।

शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा

शनिवार के दिन आने वाली प्रदोष (त्रयोदशी) तिथि पर शनि प्रदोष व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान शिवजी और शनिदेव का पूजन-अर्चन किया जाता है।इसकी कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।

शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।

हे नीलकंठ सुर नमस्कार।

शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।

हे उमाकांत सुधि नमस्कार।

उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।

ईशान ईश प्रभु नमस्कार।

विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।

दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया।

( लेखिका ख्यात ज्योतिषाचार्य हैं।)

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