कठिन परीक्षा : शास्त्रार्थ से होगा ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य का चुनाव!

Update:2017-11-24 13:42 IST

आशुतोष सिंह

वाराणसी। करोड़ों की आस्था के प्रतीक ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर सरगर्मियां बढऩे लगी हैं। शंकराचार्य की गद्दी पर इस बार कौन बैठेगा, इसे लेकर बहस शुरू हो गई है। नियुक्ति की प्रक्रिया क्या होगी? कौन-कौन दावेदार हैं? इसे कयास लगाए जा रहे हैं। शंकराचार्य के चयन के लिए नामित भारत धर्म महामंडल ने द्वारिका-शारदा पीठ, शृंगेरी पीठ और पुरी पीठ के शंकराचार्यों से नए शंकराचार्य के नाम पर अनुशंसा मांगी है।

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माना जा रहा है कि चुनाव कड़ा है। इस पीठ पर आम सहमति बनाने के लिए भारत धर्म महामंडल ने एक अलग युक्ति निकाली है। देश की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली काशी में ज्योतिष पीठ शंकराचार्य की खाली गद्दी पर बैठने के लिए शास्त्रार्थ होगा। कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है, लेकिन 1941 के बाद तर्क-वितर्क और ज्ञान की कसौटी पर पहली बार खुद को साबित करना होगा। शास्त्रार्थ में अपनी विद्वता साबित करने वाला ही शंकराचार्य की गद्दी पर बैठने का अधिकारी माना जाएगा।

कई चरणों के बाद शास्त्रार्थ की नौबत

नये शंकराचार्य को चुनने की खातिर गठित निर्वाचक मंडल के समन्वयक भाल शास्त्री ने बताया कि नियुक्ति प्रक्रिया तीन चरणों तक चलेगी। इसके तहत देश भर के विद्वानों से नाम मिलने के बाद स्क्रीनिंग कमेटी उनकी योग्यता देखेगी। गौरतलब है कि शंकराचार्य पद के लिए ब्राह्मण-ब्रह्मचारी, परिवाज्रक के साथ चतुर्वेद, वेदांत-वेदांग व पुराण का ज्ञाता होना आवश्यक है। दोनों चरणों में अव्वल आने वालों के बीच शास्त्रार्थ होगा। चयन की तय प्रक्रिया पर भारत धर्म मंडल की नेशनल काउंसिल 7 दिसम्बर को होने वाली बैठक में मुहर लगाएगी।

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य और विवाद

ज्योतिष पीठ के घोषणापत्र में गुरु-शिष्य परंपरा में मठाम्नाय अनुशासन के आधार पर संन्यासी को शंकराचार्य के पद पर आसीन कराने का विधान है। 1953 में स्वामी ब्रह्मानंद के देहावसान के बाद उनके स्थान पर वसीयतनामा के आधार पर शांतानंद सरस्वती, द्वारका प्रसाद शास्त्री, विष्णुद्वानंद सरस्वती और परमानंद सरस्वती को आचार्य पद के लिए नामित किया गया था, लेकिन ये सभी उत्तराधिकारी न्यायालय के परीक्षण में अयोग्य पाए गए।

इस पद पर धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के नाम का भी प्रस्ताव किया गया था, लेकिन उनके स्वीकार न करने पर 25 जून, 1953 को स्वामी कृष्णबोधाश्रम का अभिषेक किया गया। 20 मई, 1973 को कृष्णबोधाश्रम के देहावसान के बाद 12 सितंबर, 1973 को इस पद पर ब्रह्मानंद के शिष्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का अभिषेक किया गया था। भारत धर्म महामंडल ने इसका अनुमोदन कर दिया था, लेकिन बाद में विवाद खड़ा हो गया।

1989 में स्वामी वासुदेवानंद ने खुद को ब्रह्मानंद की शिष्य परंपरा का संन्यासी बताते हुए पीठ का शंकराचार्य घोषित कर दिया। इस पर न्यायालय में विवाद चलने लगा। 2015 में सिविल जज इलाहाबाद ने वासुदेवानंद को अयोग्य घोषित करते हुए दंड, छत्र, चंवर धारण करने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 22 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वासुदेवानंद और स्वरूपानंद दोनों को अयोग्य ठहराते हुए नए सिरे से शंकराचार्य के चयन का आदेश दिया है।

बैठक में जारी होगी फर्जी संतों की सूची

काशी विद्वत परिषद की अहम बैठक में एक अन्य महत्वपूर्ण मसले पर भी मंथन होगा। संत का चोला ओढ़ समाज को शर्मसार करने वालों के खिलाफ भी खाका खींचा जाएगा। इसके तहत फर्जी संतों की एक सूची बनाई जा रही है। इसके तहत काशी विद्वत परिषद असली और नकली संतों की सूची जारी करने जा रही है। इसके लिए परिषद ने नीर-क्षीर विवेचन की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

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इसके तहत देश के सभी वैष्णव व शैव अखाड़ों को पत्र लिखकर संबंद्ध संतों के नाम-स्थान व संपर्क नंबर मांगे गए हैं। इसे प्रदर्शित करने को परिषद की ओर एक वेबसाइट तैयार की जा रही है। यह आठ दिसंबर को लांच की जाएगी। इस पर सनातन धर्म के सभी संप्रदायों के संतों-महंतों का पूरा विवरण प्रदर्शित किया जाएगा। शास्त्रीय नियमों का हवाला देते हुए अवैध तरीके से संत समेत अन्य उपाधियां न लिखने की चेतावनी दी जाएगी।

हाईकोर्ट के आदेश पर हो रही है समूची कवायद

बताते चलें कि स्वामी स्वरूपानंद और स्वामी वासुदेवानंद के बीच शंकराचार्य की गद्दी को लेकर पैदा हुआ विवाद इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंचा था। हाईकोर्ट ने दोनों के दावे को खारिज करते हुए नए शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए काशी की 116 साल पुरानी संस्था भारत धर्म महामंडल को मुख्य रूप से जिम्मेदारी सौंपी है। इस संस्था को मठाम्नाय अनुशासन ग्रंथ के आधार पर विद्वानों और द्वारिका, शृंगेरी व पुरी पीठ के शंकराचार्यों के परामर्श से नाम तय करना है।

महामंडल के मुख्य सचिव प्यारे मोहन सिंह ने स्वीकार किया कि शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए गठित 26 सदस्यों वाले निर्वाचक मंडल ने इस बाबत प्रक्रिया तय कर दी है। प्रक्रिया के अंतिम चरण में ठीक उसी तरह शास्त्रार्थ होगा जैसा कि 1941 में हुआ था। उस समय शास्त्रार्थ में विजय हासिल करने वाले स्वामी ब्रह्मानंद ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की गद्दी पर बैठने वाले पहले संत थे।

फैसले के पीछे विद्वानों का यह है तर्क

काशी विद्वान परिषद के मंत्री डॉक्टर रामनारायण द्विवेदी कहते हैं कि कथावाचकों के खुद के संत लिखने और स्वयंभू शंकराचार्य घोषित किए जाने से समाज में भ्रम की स्थिति बन रही है। इसमें वास्तविक संतों को भी कई बार असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए परिषद ने सबकुछ पारदर्शी बनाने का निर्णय लिया है।

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इसमें सरकार ने भी सहयोग का भरोसा दिया है। माना जा रहा है कि इस तरह की गतिविधियों पर रोक के लिए परिषद की ओर से देश के सभी अखाड़ों के महामंडलेश्वरों को संबद्ध संतों को सूचीबद्ध करने के साथ ही उन्हें आईडी जारी करने का आग्रह किया गया है। इसके बाद भी कोई इस तरह का मामला सामने आता है तो उस संत के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा।

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