Sharadiya Navratri : देवताओं के तेज से हुई थी देवी की उत्पत्ति, जानिए कैसे स्त्री के पूरे जीवनचक्र का बिम्ब है मां दुर्गा
Sharadiya Navratri : देवताओ के द्वारा शक्ति का संचार देवी दुर्गा में हुआ। शिवजी ने देवी को अपना त्रिशूल,विष्णु से अपना चक्र,वरुण से अपना शंख,वायु ने धनुष और बाण,अग्नि ने शक्ति,बह्रमा ने कमण्डलु,इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह,और इस तरह सभी देवताओ ने माँ भगवती में अपनी अपनी शक्ति प्रदान की |
देवताओं के तेज से देवी की उत्पत्ति
नव शक्ति की आराधना का त्योहार नवरात्रि 7 अक्टूबर गुरुवार से शुरू हो रहा है। लोग नव दिन तक व्रत रखकर देवी की आराधना करते हैं। आचार्य कौशलेन्द्र पाण्डेय के अनुसार धार्मिक ग्रंथों के आधार पर जानते हैं कैसी हुई थी देवी दुर्गा की उत्पति।
नवदुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय से जब दानव राज महिषासुर ने अपने राक्षसी सेना के साथ देवताओ पर सैकड़ो साल चले युद्ध में विजय प्राप्त कर ली और स्वर्ग का राजाधिराज बन चुका था | सभी देवता स्वर्ग से निकाले जा चुके थे | वे सभी त्रिदेव (ब्रम्हा,विष्णु और महेश) के पास जाकर अपने दु:खद वेदना सुनाते है | पूरा वृंतान्त सुनकर त्रिदेव बड़े क्रोधित होते है और उनके मुख मंडल से एक तेज निकलता है जो एक सुन्दर देवी में परिवर्तित हो जाता है | भगवान शिव के तेज से देवी का मुख,यमराज के तेज से सर के बाल,श्री विष्णु के तेज से बलशाली भुजाये,चंद्रमा के तेज से स्तन,धरती के तेज से नितम्ब,इंद्र के तेज से मध्य भाग,वायु से कान,संध्या के तेज से भोहै,कुबेर के तेज से नासिका,अग्नि के तेज से तीनो नेत्र आचार्य कौशलेन्द्र पाण्डेय कहते है कि देवताओ के द्वारा ही शक्ति का संचार भी देवी दुर्गा में हुआ शिवजी ने देवी को अपना त्रिशूल,विष्णु से अपना चक्र,वरुण से अपना शंख,वायु ने धनुष और बाण,अग्नि ने शक्ति,बह्रमा ने कमण्डलु,इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह,कुबेर ने मधुपान,विश्वकर्मा में फरसा और ना मुरझाने वाले कमल भेट किये , और इस तरह सभी देवताओ ने माँ भगवती में अपनी अपनी शक्तिया प्रदान की |
एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र का बिम्ब है माँ नवदुर्गा के ये नौ स्वरूप।
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री" स्वरूप है।
2. कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" का रूप है।
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह "चंद्रघंटा" समान है।
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह "कूष्मांडा" स्वरूप में है।
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री "स्कन्दमाता" हो जाती है।
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री "कात्यायनी" रूप है।
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह "कालरात्रि" जैसी है।
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से "महागौरी" हो जाती है।
9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली "सिद्धिदात्री" हो जाती है।
मां दुर्गा के अवतरण की कथा
मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक है और जानते है कि इस शक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई थी। इसके लिए मां दुर्गा की उत्पत्ति से जुडी पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं, जिसका वर्णन देवी पुराण में है। आदिशक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई, पौराणिक कथा के अनुसार महिसासुर, शुभ-निशुंभ, रक्तबीज जैसे असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने त्रिदेव की आराधना की। जब देवताओं ने ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने। भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं। फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।
इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।
इस तरह मां दुर्गा में समस्त देवताओं की शक्ति से पूर्ण स्वयं की शक्ति है। जिसका कोई भी मुकाबला नही कर सकता है। इसलिए देवी दुर्गा की आराधना करके हम मां से अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और सदगति की राह पर चलने की प्रेरणा लेते है।
शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त महालया के बाद आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाली नवरात्रि का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन ही कलश की स्थापना की जाती है। मान्यता है कि कलश में त्रिदेव का वास होता है और कलश स्थापित कर भगवान गणेश समेत ब्रह्मा विष्णु का आह्वान किया जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर मां दुर्गा के आहवान से पहले कलश स्थापित करने का विधान है। कलश स्थापित करने के लिए घर के मंदिर की साफ-सफाई करके एक सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं।उसके ऊपर एक चावल की ढेरी बनाएं। एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जौ बोएं और इसका ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं, कलावा बांधे. एक नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटें और कलावे से बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें। कलश के अंदर एक साबूत सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें। अशोक के पत्ते कलश के ऊपर रखकर नारियल रख दें। नारियल रखते हुए मां दुर्गा का आवाह्न करना न भूलें। अब दीप जलाकर कलश की पूजा करें। फिर उसके बाद नौ दिनों के व्रत करने का मन हो तो संकल्प लेकर सप्तशती की पाठ करें।
नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 06 अक्टूबर 2021 को 04:34 PM बजे से
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 07 अक्टूबर 2021 को 01:46 PM बजे तक
आश्विन कलश स्थापना गुरुवार, अक्टूबर 7, 2021 को शुभ मुहूर्त – 06:17 AM से 07:07 AM
कन्या लग्न में अभिजित मुहूर्त – 11:45 AM से 12:32 PM