Navratri 2023 Fifth Day: कौन है मां स्कंदमाता, इनकी पूजा से क्या होता है, जानिए महत्व मुहूर्त और पूजा विधि

Shardiya Navratri 2023 Fifth Day: नवरात्रि के 5 वें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है,जानते हैं इनकी महिमा स्वरुप और कथा

Update: 2023-10-19 01:43 GMT

Navratri Fifth day Maa skandmata: मां स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि का पांचवां दिन :नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। राक्षसों का संहार करने के लिए मां ने इस रूप में अवतार लिया था। आज जो भी भक्त स्कंदमाता की पूजा करता है। उनकी सारी इच्छा पूरी होती है।मां स्कंदमाता कार्तिकेय की मां भी है। 19 अक्टूबर को नवरात्रि का पांचवां दिन है। नवरात्रि के पांचवे दिन मां के पंचम स्वरूप माता स्कंदमाता की पूजा- अर्चना की जाती है। मां अपने भक्तों पर पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां की उपासना से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। मां का स्मरण करने से ही असंभव कार्य संभव हो जाते हैं।

शारदीय नवरात्रि में स्कंदमाता की पूजा कब करें?

शारदीय नवरात्रि 2023 के पांचवें दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।इसके बाद माता की पूजा की तैयारी शुरू कर दें.दुर्गा मां के इस दिव्य रूप की मूर्ति, फोटो या मूर्ति को गंगा जल से पवित्र करके एक लकड़ी की चौकी पर स्थापित करें।इसके अलावा मां स्कंदमाता को कुमकुम, अक्षत, फूल, फल आदि चीजें अर्पित करें।इसके बाद माता को मिठाई का भोग लगाएं. आप लोगों को प्रसाद के रूप में खीर का भोग भी लगा सकते हैं. माता को केले का भोजन बहुत प्रिय है।भोग लगाकर और देवी की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाकर अपने अनुष्ठानों को आगे बढ़ाएं।

दीपक जलाने के बाद सच्ची श्रद्धा से मां स्कंदमाता की पूजा और ध्यान करें।पूजा के बाद माता की आरती करें और घंटियां बजाकर उनकी स्तुति करें। इस अवसर पर आपको मां स्कंदमाता कथा का पाठ भी करना चाहिए। अंत में, अपनी गहरी इच्छाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए देवी स्कंदमाता के मंत्रों का जाप करें।

शारदीय नवरात्रि देवी स्कंदमाता का स्वरुप

भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है। भगवान स्कंद जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है

स्कंदमाता दुर्गा मां का 5वां रूप है। कहते हैं कि मां के रूप की पूजा करने से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाते हैं। स्कंद कुमार कार्तिकेय की मां होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम।।

इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनके उपासक, अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है।मन को एकाग्र और पवित्र रखकर देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। ये देवी चेतना का निर्माण करने वालीं है। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना को जन्म देने वालीं है मां स्कंदमाता का ये रूप।

स्कंदमाता की स्तुतिनवरात्रि की पांचवी

स्कन्दमाता महारानी।

इसका ममता रूप है

ध्याए ग्यानी ध्यानी॥

कार्तिक्ये को गोद ले

करती अनोखा प्यार।

अपनी शक्ति दी उसे

करे रक्त संचार॥

भूरे सिंह पे बैठ कर,

मंद मंद मुस्काए।

कमल का आसन साथ में,

उसपर लिया सजाए॥

आशीर्वाद दे हाथ से,

मन में भरे उमंग।

कीर्तन करता आपका,

चढ़े नाम का रंग॥

जैसे रूठे बालक की,

सुनती आप पुकार।

मुझको भी वो प्यार दो,

मत करना इनकार॥

नवरात्रों की माँ

कृपा कर दो माँ।

नवरात्रों की माँ

कृपा कर दो माँ॥

जय माँ स्कन्द माता।

जय माँ स्कन्द माता॥

मां स्कंदमाता के पूजा का मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त - 11:49 AM से 12:34 PM

अमृत काल - 12:14 PM से01:50 PM

ब्रह्म मुहूर्त - 04:52 AM से 05:40 AM

विजय मुहूर्त 02.30pm से 03.20 pm

गोधूलि मुहूर्त 06. 29pm से 06. 53 pm

पूजा के लिए दुर्गा मां का स्वरूप : मां स्कंदमाता

पहनने के रंग: सफ़ेद

चढ़ाने के लिए फूल : गुड़हल या लाल गुलाब

नवरात्री के पांचवे मां स्कंदमाता को पीले रंगे के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए, इससे मां की कृपा बरसती है। उन्हें पीले फूल मौसमी फल, केले, चने की दाल का भोग लगाना चाहिए। इससे माता रानी प्रसन्न होती है।

मां स्कंदमाता की पूजा से फायदे

मान्यता के अनुसार देवी स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों को स्वस्थ शरीर, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जातकों को परम शांति और सुख की प्राप्ति होती है।इसके अलावा, लोगों का मानना ​​है कि दुर्गा मां के इस रूप की पूजा करके भक्त उनके बच्चे भगवान कार्तिकेय से भी प्रार्थना करते हैं।माता को सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है, जिससे उनका भक्त अलौकिक तेज और तेज से संपन्न हो जाता है।अगर किसी को संतान प्राप्ति की इच्छा हो तो उसे स्कंदमाता की पूजा अवश्य करनी चाहिए।ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा का यह स्वरूप यानी देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। ऐसे में अगर आप माता की विधिवत पूजा करें तो आपके जीवन से बुध के अशुभ प्रभाव को दूर या कम किया जा सकता है।इसके अलावा आप इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनकर देवी स्कंदमाता की पूजा कर सकते हैं। ऐसा करने से जातक स्वस्थ और फिट रहता है।

मां स्कंदमाता की कथा

कहते हैं कि प्राचीन समय में तारकासूर का प्रकोप बढ़ने से हर तरफ कोहराम मचा हुआ था । जब तारकासुर नाम राक्षस ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगा। कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उसके सामने प्रकट हुए।

ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने को कहा। वरदान के रूप में तारकासुर ने अमर करने के लिए कहा। तब ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। निराश होकर उसने ब्रह्मा जी से कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही उसकी मृत्यु हो। तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव विवाह नहीं करेंगे। इसलिए उसकी मृत्यु नहीं होगी। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया और अदृश्य हो गए।

इसके बाद उसने लोगों पर अत्याचार करना आरंभ कर दिया। तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया और मां पार्वती ने कार्तिक को जन्म दिया। जिसने तारकासूर का संहार किया।

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