जयपुर: माघ के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। षटतिला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन काले तिलों के दान का विशेष महत्त्व है। शरीर पर तिल के तेल की मालिश, जल में तिल डालकर उससे स्नान, तिल जलपान और तिल पकवान की इस दिन विशेष महत्ता है. इस दिन तिलों का हवन करके रात्रि जागरण किया जाता है। ‘पंचामृत’ में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराने से बड़ा मिलता है। षटतिला एकादशी पर तिल मिश्रित पदार्थ स्वयं भी खाएं तथा ब्राह्मण को भी खिलाना चाहिए।इस दिन मनुष्य जितने तिल दान करता है, वह उतने ही वर्ष स्वर्ग में निवास करता है। इस एकादशी पर तिल स्नान
तिल की उबटन,तिलोदक,तिल का हवन, तिल का भोजन, तिल का दान इस प्रकार छह रूपों में तिलों का प्रयोग ‘षटतिला’ कहलाता है। इससे अनेक प्रकार के पाप दूर हो जाते हैं।षटतिला एकादशी’ के व्रत से जहां शारीरिक शुद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती ह।. इससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राणी जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे वैसा ही प्राप्तय होता है. अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ दान आदि अवश्य करना चाहिए. शास्त्रों में वर्णन है कि बिना दान आदि के कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं माना जाता। एकादशी तिथि प्रारम्भ = 30 जनवरी 2019 को 15:33 बजे से एकादशी तिथि समाप्त = 31 जनवरी 2019 को 17:01 बजे तक।
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कथा ‘षटतिला एकादशी’ से संबंधित एक कथा भी है, जो इस प्रकार है- एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे।वहाँ उन्होंने भगवान विष्णु से ‘षटतिला एकादशी’ की कथा और उसके महत्त्व के बारे में पूछा. तब भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि- ‘प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी. उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह मुझ में बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी. एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधना की. व्रत के प्रभाव से उसका शरीर शुद्ध हो गया, परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी. अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री वैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी. अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा लेने गया। वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया. कुछ दिनों पश्चात् वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई. यहाँ उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला. ख़ाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि- “मैं तो धर्मपरायण हूँ, फिर मुझे ख़ाली कुटिया क्यों मिली?” तब मैंने उसे बताया कि यह अन्न दान नहीं करने और मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है. मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं, तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको ‘षटतिला एकादशी’ के व्रत का विधान न बताएं. स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था, उस विधि से ‘षटतिला एकादशी’ का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न-धन से भर गई। इसलिए हे नारद! इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है, उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।