Shiv & Shankar: अलग अलग हैं शिव और शंकर ? जानें दोनों के बीच का अंतर
Shiv & Shankar : भगवान शिव को हम कई नाम से पहचानते हैं। कोई उन्हें शंकर बुलाता है कोई भोलेनाथ तो कोई भोला। किसी के लिए वह त्रिकालदर्शी है तो किसी के लिए कालों के काल महाकाल। शिव सृष्टि के कर्ताधर्ता का जाते हैं और आज हम उनके दो नाम शिव शंकर के बीच के अंतर से आपको रूबरू करवाते हैं।
Shiv & Shankar : भगवान शिव की पूजा या उपासना इस दुनिया में लाखों करोड़ों लोग करते हैं। दुनिया भर में उन्हें पूजने वाले लोग उन्हें देवों के देव महादेव के नाम से पहचानते हैं। शिव के कई नाम है और हर भक्त अपनी सहूलियत और भक्ति के अनुसार उन्हें पुकारता है और उनकी पूजन करता है। हिंदू धर्म में वैसे भी शैव और वैष्णव दो संप्रदाय है। इनमें से जो लोग भोलेनाथ की पूजन करते हैं वह शैव संप्रदाय के कहलाते हैं। भगवान शिव को हमने हमेशा से ही शिवलिंग के रूप में देखा है और इसी रूप में उनकी पूजन की जाती है। हम उन्हें शिव भी कहते हैं और शंकर भी कहते हैं। लेकिन आज हम आपको इन दोनों के बीच के अंतर के बारे में बताते हैं।
शिव और शंकर का रूप
भगवान शंकर के हम दो रूप देखते हैं एक तो वह जो शिवलिंग में है और एक दूसरा उन्हें किसी ऊंचे पर्वत पर ध्यान में मगन बैठे हुए भी देखा जा सकता है। इन दोनों रूपों के अंतर की बात करें तो शंकर भगवान का एक साकार रूप है जबकि उनके ज्योति स्वरूप को शिव कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि शिव जो निराकार हैं उनके साकार स्वरूप को शंकर कहा जाता है।
ब्रह्मांड के संचालक शिव
इस दुनिया की सत्ता चलाने का जिम्मा ब्रह्मा, विष्णु और महेश मिलकर निभाते हैं और इन तीनों के स्वरूप से मिलकर बने हुए रूप को त्रिमूर्ति या फिर शिव कहा जाता है। इन तीनों के काम अलग-अलग है एक सृष्टि की रचना करता है दूसरा उसका संचालन करता है और तीसरा उसका विनाश। शिव इन तीनों में ऐसा तत्व है जो तीनों ही कार्यों को पूरी तरह से देखते हैं। धर्म शास्त्रों में जब हम गहराई से सब कुछ देखेंगे तो शिव परमात्मा का स्वरूप हैं और त्रिदेव यानी ब्रह्मा विष्णु और महेश उनके अनुसार ही सृष्टि का निर्माण संचालन और विनाश करते हैं।
क्या कहते हैं पुराण
हिंदू धर्म में यही कहा जाता है कि भगवान शिव खुद प्रकट हुए थे लेकिन पुराने में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। विष्णु पुराण के मुताबिक जिस तरह से ब्रह्मा जी की नाभि से विष्णु की उत्पत्ति हुई थी ठीक उसी तरह से विष्णु के माथे के तेज से शिव उत्पन्न हुए थे। भगवान शिव और शंकर में अगर अंतर पता करना है तो सबसे आसान अंतर उनकी प्रतिमाओं से लगाया जा सकता है। भगवान शंकर जहां संपूर्ण आकार में विराजित दिखाई देते हैं तो वहीं शिव की प्रतिमा लिंग रूप में होती है।