Chanchula Story Sawan Special: चरित्रहीन चंचुला कैसे बनी मां पार्वती की सहेली, बरसी शिवकृपा, जानिए क्या है शिव पुराण की कथा

Chanchula Story Shiv Purana: शिव पुराण में चंचुला की कहानी जो उसे अधर्म से धर्म की ओर ले जाती है और कैसे मुक्ति मिलती है जानते है..

Update: 2024-07-27 04:43 GMT

Characterless Chanchula Story Shiv Purana: शिवपुराण की कथा के अनुसार एक बार वाष्कल नामक गांव में बिन्दुग नाम का ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा दुरात्मा और महापापी था।  उसकी स्त्री बहुत सुंदर थी लेकिन वह कुमार्ग पर ही चलता था। उसकी पत्नी का नाम चंचुला था और वह सदैव धर्म के पालन में लगी रहती थी। इस तरह कुकर्म में लगे हुए उस ब्राह्मण के साथ उसे बहुत वर्ष बीत गए। अपने धर्म के नष्ट होने के डर से कभी भी अपने धर्म से विचलित नहीं हुईं लेकिन उसका पति तो दुराचारी था इसलिए दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित होकर वह स्त्री भी अपने ही पति की तरह दूरचारिणी हो गई।

बहुत समय बीत जाने के बाद वह दूषित बुद्धि वाला दुष्ट ब्राह्मण समय के अनुसार मृत्यु को प्राप्त होकर नर्क में चला गया। बहुत दिनों तक नर्क के दुख भोगकर वह पापी एक भयंकर पिशाच हो गया। दूसरी तरफ उस दुराचारी पति की मृत्यु के पश्चात चंचुला बहुत समय तक अपने पुत्रों के साथ अपने घर में ही रहती। एक दिन ईश्वर कृपा से वह अपने भाई बंधुओं के साथ एक तीर्थ क्षेत्र में चली गई। तीर्थ यात्रियों के साथ उसने तीर्थ के जल में स्नान किया और अपने भाइयों के साथ इधर-उधर घूमने लगी।

वहां उसने एक देव मंदिर में एक ब्राह्मण को भगवान शिव की परम पवित्र और उत्तम पौराणिक कथा कहते हुए सुना। वह ब्राह्मण यह कह रहे थे कि जो स्त्रियां पर पुरुषों के साथ व्यभिचार करती हैं यमराज के दूत उन्हें बहुत कष्ट देते हैं। ऐसा सुनकर चंचुला भय से कांपने लगी। उसने विचार किया कि उसने तो अपने पति के साथ बहुत पाप किए हैं तो उसे भी उन पापों का दंड भोगना पड़ेगा।

इसके बाद उसे चैन नहीं आया और उसने उस ब्राह्मण से विनती की, हे प्रभु ! मेरे ऊपर आप कृपा करें और मेरा उद्धार करें। मैं आप के प्रवचन सुनकर भय से कांप रही हूं और इस संसार से मुझे वैराग्य हो रहा है। मैंने जीवन भर दुराचार किया है, न जाने मेरे मरने के बाद मुझे कैसी-कैसी घोर यातनाएं साहनी पड़ेगी। कौन मेरा साथ देगा ! यमराज के उन भयंकर दूतों को मैं कैसे देख पाऊंगी? हे प्रभु ! आप मेरा कल्याण करें।

चंचुला के इन वचनों को सुनकर ब्राह्मण बोले, हे चंचुला ! यह तो बड़े सौभाग्य की बात है कि भगवान शंकर की कृपा से शिवपुराण की कथा को सुनकर तुम्हारा मन समय पर ही सावधान हो गया। पश्चाताप ही पाप करने वाले पापियों के लिए सबसे बड़ा प्रायश्चित है। साधु-संतों ने भी पश्चाताप को ही समस्त पापों का नाश करने वाला बताया है। पश्चाताप से ही पापों की शुद्धि होती है।

जो पश्चाताप करता है वही समस्त भय से मुक्त होकर के निर्भय हो जाता है। इसलिए ब्राह्मण पत्नी, तुम विषयों से अपने मन को हटाओ और भक्ति भाव से भगवान शंकर की इस पावन कथा को सुनो। इस कथा को सुनने से तुम्हारे चित्त की शुद्धि होगी और तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। ऐसा सुनने के बाद उस चंचुला ने शिवपुराण की कथा को सुनने की इच्छा से मन में उस ब्राह्मण देव की सेवा का संकल्प लिया और उन्हीं के साथ रहने लगी।

चंचुला ने अपने शरीर को त्यागा

उसके पश्चात शुद्ध बुद्धि वाले उस ब्राह्मण ने उस स्त्री यानि चंचुला को शिवपुराण की समस्त कथा सुनाई। तत्पश्चात समय का चक्र पूरा होने के बाद भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से युक्त हुई चंचुला ने अपने शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया।

जैसे ही चंचुला ने अपने शरीर को त्यागा, भगवान शंकर का भेजा हुआ दिव्य विमान वहां पहुंच गया और भगवान शंकर के गणों ने चंचुला को उस विमान पर बिठाया और शिवलोक में ले गए। वह दिव्य रूप धारिणी दिव्यांगना हो चुकी थी। चंचुला ने वहां साक्षात भगवान शंकर को देखा। उनके पांच मुख थे और हर मुख में उनकी तीन आंखें थी। मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित हो रहा था। उन्होंने अपने बांई और माता पार्वती को बिठा रखा था। उनका सारा शरीर भस्म से भासित था। शरीर पर श्वेत वस्त्र शोभा पा रहे थे। इस प्रकार परम उज्जवल भगवान शंकर का दर्शन करने के बाद वह ब्राह्मण पत्नी बहुत प्रसन्न हुई।

उसने महादेव और पार्वती को प्रणाम किया और उसकी आंखों से अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगी। संपूर्ण शरीर में रोमांच पैदा हो गया और माता पार्वती एवं भगवान शंकर ने बड़ी करुणा से उसे अपने पास बुलाया उसकी ओर देखा और माता पार्वती ने चंचला को प्रेम पूर्वक अपनी सखी बना लिया। 


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