Radha Krishna ki Prem Katha: जब राधा जी ने बिना दही माखन और कान्हा ने बिना गैया दुहा दूध
Radha Krishna ki Prem Katha: खिडकी से बाहर देखने लगी कि शायद श्यामसुन्दर यही से आज गईया लेकर निकलें। अब हमारी प्यारी जू के ह्रदय में कोई बात आये और लाला उसे पूरा न करे ऐसा तो हो ही नहीं सकता।
Radha Krishna Prem Katha in Hindi: एक बार राधाजी के मन में कृष्ण दर्शन की बड़ी लालसा थी, यह सोचकर महलन की अटारी पर चढ गई। खिडकी से बाहर देखने लगी कि शायद श्यामसुन्दर यही से आज गईया लेकर निकलें। अब हमारी प्यारी जू के ह्रदय में कोई बात आये और लाला उसे पूरा न करे ऐसा तो हो ही नहीं सकता। जब राधा रानी जी के मन के भाव श्याम सुन्दर ने जाने तो आज उन्होंने सोचा क्या क्यों न साकरीखोर से (जो कि लाडली जी के महलन से होकर जाता है)होते हुए जाए,अब यहाँ महलन की अटारी पे लाडली जी खड़ी थी। तब उनकी मईया कीर्ति रानी उनके पास आई।
और बोली -अरी राधा बेटी! देख अब तु बड़ी है गई है, कल को दूसरे घर ब्याह के जायेगी, तो सासरे वारे काह कहेगे, जा लाली से तो कछु नाय बने है, बेटी कुछ नहीं तो दही बिलोना तो सीख ले, अब लाडली जी ने जब सुना तो अब अटारी से उतरकर दही बिलोने बैठ गई। पर चित्त तो प्यारे में लगा है।
लाडली जी खाली मथानी चला रही है,घड़े में दही नहीं है इस बात का उन्हें ध्यान ही नहीं है,बस बिलोती जा रही है। उधर श्याम सुन्दर नख से शिख तक राधारानी के इस रूप का दर्शन कर रहे है, बिल्वमंगल जी ने इस झाकी का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है। लाला गईया चराके लौट तो आये है पर लाला भी प्यारी जू के ध्यान में खोये हुए है और उनका मुखकमल पके हुए बेर के समान पीला हो गया है। पीला इसलिए हो गया है क्योकि राधा रानी गोरी हैं और उनके श्रीअंग की कांति सुवर्ण के समान है इसलिए उनका ध्यान करते-करते लाला का मुख भी उनके ही समान पीला हो गया है।
इधर जब एक सखी ने देखा कि राधा जी ऐसे दही बिलो रही हैं तो वह झट कीर्ति मईया के पास गई और बोली मईया जरा देखो, राधा बिना दही के माखन निकाल रही है, अब कीर्ति जी ने जैसे ही देखा तो क्या देखती है, श्रीजी का वैभव देखो, मटकी के ऊपर माखन प्रकट हैं। सच है लाडली जी क्या नहीं कर सकती,उनके के लिए फिर बिना दही के माखन निकलना कौन सी बड़ी बात है।
इधर लाला भी खोये हुए हैं। नन्द बाबा बोले लाला - जाकर गईया को दुह लो। अब लाला पैर बांधने की रस्सी लेकर गौ शाला की ओर चले है, गईया के पास तो नहीं गए वृषभ (सांड)के पास जाकर उसके पैर बांध दिए और दोहनी लगाकर दूध दुहने लगे। अब बाबा ने जब देखा तो बाबा का तो वात्सल्य भाव है बाबा बोले - देखो मेरो लाला कितनो भोरो है, इत्ते दिना गईया चराते है गए, पर जा कू इत्तो भी नाय पता है, कि गौ को दुहो जात है कि वृषभ को, मेरो लाल बडो भोरो है। और जो बाबा ने पास आकर देखा तो दोहनी दूध से लबालब भरी है । बाबा देखते ही रह गए,सच है हमारे लाला क्या नहीं कर सकते,वे चाहे गईया तो गईया, वृषभ को भी दुह सकते हैं।
(कंचन सिंह)