Shri Ram Ka Rahasya: श्रीराम जी का जन्म सिर्फ रावण का अंत करना नहीं था, जानिए उनके जीवन से जुड़ी बातें
Shri Ram Ka Rahasya भगवान विष्णु के 7 वां अवतार श्रीराम जी ने मनुष्य को मर्यादित रहने का जो मार्ग दिखाया है उसमें बाधा पार कर अंत में परमपद की का मार्ग प्रशस्त करने की शिक्षा मिली, जानते हैं उनके जीवन के रहस्य
Shri Ram Ka Rahasya: भगवान विष्णु के सातवां अवतार श्रीराम जी का जन्म मनुष्य रुप में हुआ था। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम थे, लेकिन उन्होंने सामान्य बच्चे की तरह माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया। त्रेता युग में अवधपुरी में रघुकुल शिरोमणि दशरथ के घर चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को श्रीराम का जन्म हुआ था।इसी दिन देशभर में राम नवमी का त्योहार मनाया जाता है।महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोक वन्दित श्री राम को जन्म दिया।वाल्मीकि कहते हैं कि जिस समय राम का जन्म हुआ उस समय पांच ग्रह अपनी उच्चतम स्थिति में थे।
भगवान श्रीराम हिन्दुओं की आस्था के महान प्रतीक हैं और इस बात का प्रमाण अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर से लगाया जा सकता है,इस मौके पर हर जगह जय श्रीराम का नारा गूंज रहा है क्योंकि बड़े छोटे पैमाने पर लोग रामायण का आयोजन करते हैं जिसमें रामायण की कहानी बताई जाती है लकिन कुछ ऐसी बातें हैं जो रामायण में नहीं दिखाई गयी है।भगवान श्रीराम और रामायण से जुड़े दस रहस्यों के बारे में बताने जा रहे हैं
भगवान श्रीराम से जुड़ी बातें
मान्यता के अनुसार, द्वापर के 864000 + कलियुग के 5121 वर्ष कुल 869121 यानी 8 लाख 69 हजार 121 वर्ष पहले प्रभु श्रीराम प्रकट हुए। मान्यता है कि वे 11 हजार वर्षों तक जिंदा रहे। भगवान श्रीराम का जीवन एक प्रेरणादायक और धार्मिक कथा है, जिसे "रामायण" कहा जाता है।इसमें भगवान राम के जन्म से मरण तक का उल्लेख है। भगवान श्रीराम का जन्म आयोध्या में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम राजा दशरथ और कौशल्या था। उनका जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे हिन्दू धर्म में श्रीराम नवमी या रामनवमी कहा जाता है।
राम ने अपने बचपन को गुरुकुल में बिताया और वहां वेद, शास्त्र, और योग की शिक्षा प्राप्त की। वह अपने ब्राह्मण गुरु विश्वामित्र के साथ कई दिव्य कार्यों में भी सहायक रहे। श्रीराम ने सीता के स्वयंवर में धनुर्विद्या का प्रदर्शन कर असम्भावी धनुष को तोड़ा और सीता से मिलन हुआ।इसके बाद राम, सीता, और उनके भाई लक्ष्मण ने अपने पिताजी की आज्ञा का पालन करते हुए 14 वर्षों के वनवास गए।
वनवास के दौरान, राम ने राक्षस राजा रावण द्वारा सीता को हरण कर लिया जिससे राम, सीता, और लक्ष्मण का एक अध्भुत युद्ध हुआ। राम ने रावण को मारकर सीता को बचाया और उसका पतिव्रता धर्म को समर्पित होने का प्रमाण दिया।
राम राज्य में श्रीराम ने धर्म और प्रजा की भलाई में सबकुछ त्याग दिया
अयोध्या में वापसी के बाद, राम ने राज्याभिषेक किया और अपने पिताजी के स्वर्गवास के बाद वह अयोध्या के राजा बने। उन्होंने न्याय और धर्म के माध्यम से अपने प्रजा की भलाइयों के लिए कार्य किया। देवी सीता की अग्नि परीक्षा ली,, लेकिन उन्होंने सीता को देवी के रूप में माना और अपने पुत्र लव और कुश के जन्म के बाद अयोध्या में आने की प्रार्थना की
राम ने वनवास के बाद में आकर अपनी प्रजा के बीच धर्म और न्याय का प्रचार-प्रसार किया था। युद्ध के बाद, राम ने अपनी ब्रह्मतेज को संघटित करने के लिए आपत्तियों का समाधान किया।उन्होंने आपत्तियों को सुलझाने के बाद विश्वमित्र मुनि के साथ स्वर्ग चले गए। वहां गए हुए भगवान राम ने अपने पुत्र लव और कुश से मिलकर धर्म की बातें सीखी और उन्हें अयोध्या के राजा के रूप में स्थापित किया। अपने संतानों के साथ राम ने धरती पर धर्म और न्याय की शिक्षा देने का कार्य किया और विश्व में आदर्श राजा के रूप में याद किए जाते हैं। भगवान श्रीराम का जीवन धर्म, नैतिकता, और परमात्मा के प्रति अपनी अद्वितीय भक्ति की शिक्षा से भरपूर है। उनकी कथा धरती पर बसने वाले लोगों के लिए एक अमूर्त स्रोत है जो धार्मिकता और नैतिकता की ओर मार्गदर्शन करती है। इस तरह राम के नाम में जीवन की सफलता का रहस्य छिपा हुआ है। इस नाम का जाप करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। जीवन में व्यक्ति को प्रभु से कभी दूरी बनाकर नहीं रहना चाहिए। यह बात गुरुवार को बीएसएनएल भवन के पास चल रही रामकथा में पंडित आशीषानंद महाराज ने कही।