Shrimad Bhagavad Gita: इंद्रियों से परे मन और मन से परे बुद्द्धि और बुद्द्धि से परे आत्मा

Shrimad Bhagavad Gita; विचार और भाव जब तक हमारे स्वामी हैं तब तक हम गुलाम हैं

Report :  Kanchan Singh
Update:2024-06-01 12:11 IST

Shrimad Bhagavad Gita ( Social Media Photo)

Shrimad Bhagavad Gita: समस्त भारतीय सनातन धर्म ग्रंथों का सार है - विचार और भावों पर नियंत्रण करने की कला सीखना और सिखाना।विचार और भाव जब तक हमारे स्वामी हैं तब तक हम गुलाम हैं।वे विचार किसी के भी हो सकते हैं, किसी के भी बारे में हो सकते हैं।परमात्मा से लेकर किसी व्यक्ति तक।

इसी को कृष्ण कहते हैं -:

ईश्वर सर्वभूतेषु हृतदेशे अर्जुन तिस्ठति।

भ्रामयन सर्वभूतानि यंत्र आरूढानि मायया।।

हे अर्जुन ईश्वर सभी जीवों के हृदय में निवास करता है।

लेकिन माया रूपी यंत्र पर सवार होने के कारण वह भ्रमित रहता है।

होता क्या है हमारे मन में?

एक पल आंख बंद करो और झांको अपने मन में।

हमारे मन में सदैव विचारों के बादल घूमते रहते हैं।

सोते समय भी - जिसे हम स्वपन कहते हैं।

जगते समय भी - जिसे हम दिवा स्वप्न कहते हैं।

ये समस्त विचार या तो भूतकाल के बारे में होते हैं या भविष्य के बारे में।

भविष्य भी भूतकाल का ही सजा सवंरा रूप है।

एक जा चुका है।

एक अभी आया नहीं है।

इसीलिये इसे माया कहा जा रहा है।

माया - जिसका अस्तित्व नहीं है।

हम इन्हीं विचारों से संचालित होते हैं।

हमारे विचार अपने नहीं होते।

हम इसे बाहर से ग्रहण करते हैं।

लेकिन अभिव्यक्ति का कोई अन्य तरीका हमारे पास नहीं है इसलिए विचार करना ही पड़ता है।

चूंकि समस्त विचार बाहर से आते हैं।

इसलिए हम इनके गुलाम हुए।

हम इन्हीं विचारों से संचालित होते हैं।

और यही हमारे दुखों के मूल में है।

यह तो होना ही है।

विचारों के पार यदि हम जा सके तो हम मालिक हो सकते हैं।

और वहीं परमात्मा बैठा हुआ है।

मन और बुद्द्धि के पार।

उससे मिलन हो सकता है।

कृष्ण कहते हैं -:

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।

मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः

वस्तुओं से परे इंद्रियां हैं।

इंद्रियों से परे मन और मन से परे बुद्द्धि और बुद्द्धि से परे आत्मा।

हमारी गाँव के वार्षिक समारोह में एक प्रसिद्ध साइकेट्रिस्ट का लेक्चर था - मिडिल ऐज क्राइसिस से कैसे बचें।

उनके लेक्चर का सार तत्व था कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है।

इसलिए इसे पॉजिटिव जगहों पर उलझोओ।

अच्छी पुस्तकें।

अच्छी आदते।

गीत संगीत आदि आदि।

कहने का तात्पर्य था अपने आपको समय दो।

कोई हर्ज नहीं है इसमें।

अच्छी बात है।

लेकिन मन का नाम ही उलझन।

मन के रहते या विचारों के रहते हम उलझन से बच नहीं सकते।

इसलिए यहां योग विज्ञान का रोल आता है।

मन के पार जाने का विज्ञान।

जैसे बाहर के जगत को जानने के लिये साइंस है।

वैसे ही अंतर्जगत में प्रवेश के लिये विज्ञान है।

अर्जुन के अनेक जिज्ञासाओं में एक जिज्ञासा थी कि - मन बहुत चंचल है, बहुत शक्तिशाली और दृढ़ है।

इसको नियंत्रित करना वायु को मुठ्ठी में पकड़ने जैसा है।

चंचलत्वं मनोकृष्ण: प्रमाथ बलवत दृढम।

तस्य अहं निग्रह मन्ये वायुर्पि सुदुष्कृतं।।

कृष्ण सहमत होते हैं अर्जुन से और इसका उपाय बताते हैं - अभ्यास और वैराग्य।

अभ्यास किसका और कैसे इसी को अंतर्जगत का विज्ञान कहते हैं।

मन के पार जाने का अभ्यास।

अपना मालिक बनने का अभ्यास।

इसीलिये हमारे यहाँ योगियों को स्वामी की उपाधि दी जाती है। 

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