शुक्र ग्रह कब देता है सुख-वैभव और अशुभ घातक प्रभाव, जानिए कुंडली के 12 भावों से...

Shukra Gah ka Jyotish Prabhav : शुक्र का ज्योतिष प्रभाव : कुंडली में शुक्र ग्रह कब अच्छा और बुरा प्रभाव डालता है, जानते हैं शुक्र ग्रह की प्रकृति के बारे में....

Update:2024-06-04 08:45 IST

Shukra Gah ka Jyotish Prabhavशुक्र का ज्योतिष प्रभाव :  कुंडली में नवग्रहों की स्थिति जातक के जीवन को प्रभावित करती है। नवग्रहों का जातक के जीवन में गहरा प्रभाव रहता है। ये ग्रह अपनी शुभ अशुभ अवस्था का गहरा प्रभाव डालते है। वैसे तो मंगल सूर्य शनि से कुंडली प्रभावित हो तो जातक ज्यादा डरते हैं, लेकिन कुंडली में शुक्र की स्थिति भी इन ग्रहों की तरह ही अहम है।  ज्योतिष के अनुसार में जातक के जीवन में  शुक्र का शुभ असर सुखों की अनुभूति देने वाला होता है। वैवाहिक और यौन जीवन का सुख मिलना इसके शुभ होने का संकेत होता है, अशुभ इसके विपरीत प्रभाव डालता है।

शुक्र ग्रह की प्रकृति

ज्योतिष में ग्रह चक्र के अनुसार शुक्र प्रत्येक राशि में  एक माह तक रहता है। एक राशि चक्र को पूरा करने में लगभग एक वर्ष लगाता है। यह वृष तथा तुला राशि का स्वामी है तथा तुला राशि पर विशेष बली रहता है। शुक्र ग्रह के गुरु सूर्य, चंद्र मित्र, बुध, शनि सम तथा मंगल शत्रु होते हैं। जन्म के समय शुक्र ग्रह का द्वादश भावों में फल इस प्रकार होता है जिसके लग्न स्थान में शुक्र हो तो उसका अंग-प्रत्यंग सुंदर होता है। श्रेष्ठ रमणियों के साथ विहार करने को लालायित रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घ आयु वाला, स्वस्थ, सुखी, मृदु एवं मधुभाषी, विद्वान, कामी तथा राज कार्य में दक्ष होता है। शुक्र अपने गति में वक्री एवं मार्गी भी होता है।अस्त एवं उदय भी होता है इसी प्रकार कई तरह से वह अपनी स्थिति में बदलाव को दिखाता है। सामान्य तौर पर, शुक्र और वृष के लिए यह अत्यंत शुभ होता है क्योंकि यह इसकी राशियां होती हैं।इसके अलावा मिथुन, कन्या, तुला, मकर और कुंभ राशियों पर भी इसका असर अनुकूल परिणाम देने वाला माना गया है। बाकी अन्य राशियों में इसकी स्थिति शुभ नही रहती है।

शुक्र ग्रह सौरमंडल का सबसे दैदीप्यमान ग्रह है। इसका वर्षमान हमारे 225 दिनों के समान है। 22 मील प्रति सेकंड की गति से सूर्य की प्रदक्षिणा करता है। जातक का रंग गेंहुआ होता है। लग्न से छठे स्थान पर निष्फल व सातवें स्थान पर अशुभ होता है। मिथुन, कन्या, मकर और कुंभ लग्नों में यह योगकारक होता है। आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती, कृतिका व स्वाति और आर्द्रा नक्षत्रों में रहकर शुभ फल देता है तथा भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्रों में स्थित होकर शुभ फल प्रदान करता है। शेष पंद्रह नक्षत्रों में सम फल देता है। 

कुंडली में शुक्र ग्रह के शुभ और अशुभ प्रभाव

कुंडली में शुक्र की  शुभता कब होती  है

 शुक्र विलासिता पूर्ण जीवन देता है। कुंडली में शुक्र शुभ हो तो उसके असर जीवन में व्यक्ति सुखों को पाने में सक्षम होता है। शुक्र के शुभ फलों की स्थिति तब प्राप्त होती है जब कुंडली में शुक्र एक अच्छी स्थिति में होता है। शुक्र का स्वराशिगत होकर शुभ भाव स्थानों में होना। शुभ ग्रहों के द्वारा इस पर दृष्टि या प्रभाव हो, वर्ग कुंडली में शुक्र की स्थिति शुभ हो तब शुक्र से मिलने वाले कारक तत्वों बेहतरीन रुप से जीवन में शुभता का संचार करने वाले होते हैं।

जब शुक्र शुभ हो तो व्यक्ति को ऎसा जीवन आसानी से प्राप्त होता है। वह धनवान लोगों की श्रेणी में होता है। उसके पास हर प्रकार की वैभवशाली चीजें होती हैं और उन्हें भोगने की उसकी प्रवृत्ति भी अत्यंत शुभ होती है।

 लग्न स्‍थान में शुक्र हो तो उसका अंग-प्रत्यंग सुंदर होता है। श्रेष्ठ रमणियों के साथ विहार करने को लालायित रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घ आयु वाला, स्वस्थ, सुखी, मृदु एवं मधुभाषी, विद्वान, कामी तथा राजकार्य में दक्ष होता है।

दूसरे स्थान पर शुक्र हो तो जातक प्रियभाषी तथा बुद्धिमान होता है। स्त्री की कुंडली हो तो जातिका सर्वश्रेष्ठ सुंदरी पद प्राप्त करने की अधिकारिणी होती है। जातक मिष्ठान्नभोगी, लोकप्रिय, जौहरी, कवि, दीर्घजीवी, साहसी व भाग्यवान होता है।

जातक की कुंडली में तीसरे भाव पर शुक्र हो तो वह स्त्री प्रेमी नहीं होता है। पुत्र लाभ होने पर भी संतुष्ट नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति कृपण, आलसी, चित्रकार, विद्वान तथा यात्रा करने का शौकीन होता है।

चतुर्थ भाव पर यदि शुक्र हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है। इस व्यक्ति के अनेक मित्र होते हैं। घर सभी वस्तुओं से पूर्ण रहता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, परोपकारी, आस्तिक, व्यवहारकुशल व दक्ष होता है।

पांचवें भाव पर पड़ा हुआ शुक्र शत्रुनाशक होता है। जातक के अल्प परिश्रम से कार्य सफल होते हैं। ऐसा व्यक्ति कवि हृदय, सुखी, भोगी, न्यायप्रिय, उदार व व्यवसायी होता है।

छठवां, शुक्र जातक के नित नए शत्रु पैदा करता है। मित्रों द्वारा इसका आचरण नष्ट होता है और गलत कार्यों में धन व्यय कर लेता है। ऐसा व्यक्ति स्त्री सुखहीन, दुराचार, बहुमूत्र रोगी, दुखी, गुप्त रोगी तथा मितव्ययी होता है।

आठवें स्थान में शुक्र हो तो जातक वाहनादि का पूर्ण सुख प्राप्त करता है। वह दीर्घजीवी व कटुभाषी होता है। इसके ऊपर कर्जा चढ़ा रहता है। ऐसा जातक रोगी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, दुखी, पर्यटनशील और पराई स्त्री पर धन व्यय करने वाला होता है।

यदि नौवें स्थान पर शुक्र हो तो जातक अत्यंत धनवान होता है। धर्मादि कार्यों में इसकी रुचि बहुत होती है। सगे भाइयों का सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति आस्तिक, गुणी, प्रेमी, राजप्रेमी तथा मौजी स्वभाव का होता है।

जिसके दशम भाव में शुक्र हो तो वह व्यक्ति लोभी व कृपण स्वभाव का होता है। इसे संतान सुख का अभाव-सा रहता है। ऐसा व्यक्ति विलासी, धनवान, विजयी, हस्त कार्यों में रुचि लेने वाला एवं शक्की स्वभाव का होता है।

जिसकी जन्म कुंडली में ग्यारहवें स्थान पर शुक्र हो तो जातक प्रत्येक कार्य में लाभ प्राप्त करता है। सुंदर, सुशील, कीर्तिमान, सत्यप्रेमी, गुणवान, भाग्यवान, धनवान, वाहन सुखी, ऐश्वर्यवान, लोकप्रिय, कामी, जौहरी तथा पुत्र सुख भोगता हुआ ऐसा व्यक्ति जीवन में कीर्तिमान स्थापित करता है।

जिसके बारहवें भाव में शुक्र हो, तब जातक को पैसे की कमी नहीं रहती है। ऐसा व्यक्ति पर स्त्रीगामी, आलसी, गुणज्ञ, प्रेमी, मितव्ययी तथा शत्रुनाशक होता है।

कुंडली में शुक्र अशुभ प्रभाव

कुंडली में अशुभ शुक्र की स्थिति तब  होती है जब वह कुंडली में कमजोर होता है। इस स्थिति के कई कारण हो सकते हैं. शुक्र कुंडली में नीच स्थिति में होने पर खराब फल दे सकता है। शुक्र का पाप ग्रहों के साथ युति या दृष्टि संयोग, शुक्र का खरब भाव स्थानों पर बैठना एवं वर्ग कुंडली में शुक्र की खराब स्थिति ही शुक्र के अशुभ फलों को प्रदान करने वाली होती है।

शुक्र जब कुंडली में खराब होता है तो इसके घातक प्रभाव जीवन पर पड़ सकते हैं. इसके द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में सुखों की कमी सबसे अधिक परेशान करने वाली हो सकती है।

शुक्र के कुंडली में यदि कन्या राशि में होता है तो इसके कारण शुक्र के नीच फल व्यक्ति को प्राप्त होते हैं शुक्र का राहु केतु जैसे पाप ग्रहों के साथ होना अपराध जगत और गंभीर रोगों का असर देने वाला हो सकता है। संघर्ष की स्थिति जीवन में बनी रहती है। शुक्र का कमजोर होना व्यक्ति के भावनात्मक पक्ष को भी कई बार कमजोर कर देने वाला होता है. आलस्य, अनुशासन की कमी, व्यसनों की ओर झुकाव व्यक्ति में बना रहता है।शुक्र का अशुभ होना व्यक्ति को यौन संक्रमण जैसे रोगों से  प्रभावित करता है।

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