Sita Ke Roop: सीता के रुप

Sita Ke Roop: देवताओं ने एक बार प्रजापति से प्रश्न किया कि हे देव! श्री सीताजी का क्या स्वरूप है? सीताजी कौन हैं? यह हम सबकी जानने की इच्छा है।

Report :  Kanchan Singh
Update: 2024-08-25 12:49 GMT

Sita Ke Roop

देवा ह वै प्रजापतिमब्रुवन्का सीता किं रूपमिति ।

स होवाच प्रजापतिः सा सीतेति ।

मूलप्रकृतिरूपत्वात्सा सीता प्रकृतिः स्मृता ।

प्रणवप्रकृतिरूपत्वात्सा सीता प्रकृतिरुच्यते ।

सीता इति त्रिवर्णात्मा साक्षान्मायामयी भवेत् ।

विष्णुः प्रपञ्चबीजं च माया ईकार उच्यते ।

सकारः सत्यममृतं प्राप्तिः सोमश्च कीर्त्यते ।

तकारस्तारलक्ष्म्या च वैराजः प्रस्तरः स्मृतः ।

ईकाररूपिणी सोमामृतावयवदिव्यालङ्कारस्रङ्मौक्तिका- द्याभरणलङ्कृता महामायाऽव्यक्तरूपिणी व्यक्ता भवति ।

प्रथमा शब्दब्रह्ममयी स्वाध्यायकाले प्रसन्ना उद्भावनकरी सात्मिका द्वितीया भूतले हलाग्रे समुत्पन्ना तृतीया ईकाररूपिणी अव्यक्तस्वरूपा भवतीति सीता इत्युदाहरन्ति ।

देवताओं ने एक बार प्रजापति से प्रश्न किया कि हे देव! श्री सीताजी का क्या स्वरूप है? सीताजी कौन हैं? यह हम सबकी जानने की इच्छा है। प्रश्न सुनकर उन प्रजापति ब्रह्माजी ने कहा-वे सीता जी साक्षात् शक्तिस्वरूपिणी हैं। प्रकृति का मूल कारण होने से सीता जी मूलप्रकृति कही जाती हैं। प्रणव, प्रकृतिरूपिणी होने के कारण भी सीता जी को प्रकृति कहते हैं। सीताजी साक्षात् मायामयी (योगमाया) हैं। त्रयवर्णात्मक यह 'सीता' नाम साक्षात् योगमायास्वरूप है। भगवान् विष्णु सम्पूर्ण जगत् प्रपञ्च के बीज हैं। भगवान् विष्णु की योगमाया ईकार स्वरूपा है। सत्य, अमृत, प्राप्ति तथा चन्द्र का वाचक 'स' कार है। दीर्घ आकार मात्रायुक्त'त' कार होने के कारण प्रकाशमय विस्तार करने वाला महालक्ष्मी रूप कहा गया है। 'ई' कार रूपिणी वे सीताजी अव्यक्त महामाया होते हुए भी अपने अमृततुल्य अवयवों तथा दिव्यालंकारों आदि से अलंकृत हुई व्यक्त होती हैं। महामाया भगवती सीता के तीनरूप हैं। अपने प्रथम' शब्द ब्रह्म' रूप में प्रकट होकर बुद्धिरूपा स्वाध्याय के समय प्रसन्न होने वाली हैं। इस पृथ्वी पर महाराजा जनक जी के यहाँ हल के अग्रभाग से द्वितीय रूप में प्रकट हुईं। तीसरे 'ई' कार रूप में वे अव्यक्त रहती हैं। यही तीन रूप शौनकीय तंत्र में सीता के कहे गये हैं।

( लेखिका प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं ।) 

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