सौभाग्य वृद्धि के लिए इस दिन रखें सीता नवमी का व्रत, जानिए शुभ और महत्व

सीता नवमी 21 मई को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं घर की सुख शांति और अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

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Newstrack Network :  Suman Mishra | Astrologer
Update: 2021-05-17 09:27 GMT

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

  लखनऊ : वैशाख माह के नवमी के दिन मां सीता ( Maa Sita ) का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इस दिन को सीता नवमी ( Sita Navami) कहते हैं। इस साल 21 मई को सीता नवमी या जानकी नवमी मनाया जाएगा।  माता सीता अपने त्याग एवं समर्पण के लिए पूजनीय हैं। सीता नवमी के दिन सुहागिन महिलाएं अपने घर की सुख शांति और अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

सीता नवमी का शुभ मुहूर्त...

इस बार सीता नवमी के दिन नवमी तिथि का प्रारंभ 20 मई 2021 को 12:25 से होकर तिथि का समापन21 मई 2021 11:10 तक है।

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

जानिए पूजा- विधि और महत्व

जानकी नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद घर के मंदिर की साफ-सफाई करें । मंदिर में साफ- सफाई करने के बाद दीप जलाएं और मंदिर में स्थापित सभी भगवान को गंगा जल से अभिषेक करें। इस दिन माता सीता के साथ भगवान राम का भी ध्यान करें। अगर आप व्रत कर सकते हैं तो व्रत का संकल्प लें। इस दिन माता सीता और भगवान राम की आरती अवश्य करें।

भगवान राम और माता सीता को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाया जाता है। इस पावन दिन हनुमान जी का भी अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए। सीता नवमी के दिन व्रत रखने का बहुत अधिक महत्व होता है। इस पावन दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत भी रखती हैं। माता सीता की पूजा- अर्चना करने से सभी तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं। साथ ही  108 माला श्री सीतायै नमः, श्री सीता-रामाय नमः म्ंत्र का जाप इस दिन जरूर करना चाहिए। इससे कल्याण होता है।

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

जानकी जन्म की कथा

रामायण   में वाल्मिकी ने लिखा है कि  एक बार मिथिला में भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने को कहा। ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे। तभी उन्हें धरती में से सोने की खूबसूरत संदूक में एक सुंदर कन्या मिली। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी । राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।आगे चलकर माता सीता का विवाह भगवान श्रीराम के साथ हुआ और उन्हें श्री राम के साथ 14 वर्ष का वनवास भी बिताना पड़ा। लव-कुश नाम के दोमाता सीता के प्राकट्य की तिथि को ही उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।



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