Somvar Vrat Ke Niyam: इस तारीख को है सावन का पहला सोमवार, जानिए व्रत कथा,फलाहार और उपवास में क्या नहीं खाएँ
Somvar Vrat Ke Niyam: सावन मास का पहला सोमवार 10 जुलाई को है। इस दिन व्रत रखने और शिव की पूजा करने हर इच्छा पूरी होती है। जानते है सोमवार के व्रत की कथा और व्रत में क्या खाए और क्या नहीं खाएं...
Somvar Vrat Ke Niyam Aur Khanpan: चातुर्मास का पहला माह और शिव का प्रिय मास सावन 4 जुलाई से शुरू हो चुका है। 10 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। इस माह शिव उपासना , जलाभिषेक , कावंड़ यात्रा और रुद्राभिषेक व्रत के साथ सावन के नियम का पालन किया जाता है। वैसे तो पूरे माह शिव भक्ति की जाती है, लेकिन लोग सावन में सोमवार को व्रत रखते हैं कुछ लोग फल खाकर तो कुछ सेंधा नमक से व्रत करते हैं ।कुछ लोग दिन में कुछ नहीं खाते और रात में एक बार ही खाते हैं। ऐसे में जो लोग पहली बार इस व्रत को रख रहे है उन्हें बिल्कुल समझ नहीं आता कि इस व्रत की शुरुआत कैसे करें। ऐसे में सावन सोमवार व्रत के दौरान आप क्या खा सकते हैं और किन चीजों से परहेज कर सकते है जानते हैं..
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सोमवार (Somvar) के व्रत के दिन सफेद कपड़े पहनकर बीज मंत्र की 11या 3 माला जप करें। सफेद फूलों से पूजन करके सफेद चंदन का तिलक करें। चंद्र देव की प्रतिमा अथवा चंद्र ग्रह के यंत्र को स्वर्ण पात्र रजत पात्र ताम्रपत्र अथवा भोजपत्र पर अंकित करके इसकी विधिवत षोडशोपचार से पूजा आराधना करके यथाशक्ति चंद्र देव के मंत्र का जाप करना चाहिए। नमक के बिना दही-चावल, घी, खाण्ड का यथाशक्ति दान करके स्वयं भोजन करें।
सावन के सोमवार व्रत में कैसा रहेगा फलाहार
सावन के सोमवार का व्रत कर रहे हैं तो दिन की शुरुआत हेल्दी ड्रिंक से करे, इससे आप दिन भर ऊर्जावान रहेंगे। उपवास के दौरान अक्सर शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इसलिए दिन की शुरुआत जूस, नींबू पानी, नारियल पानी से करें। इससे आप खुद को स्वस्थ रख सकते हैं।
व्रत में आप मुट्ठी भर सूखे मेवे खाएं,इससे शरीर को शक्ति मिलती और पेट भी लंबे समय तक भरा रहेगा।
सोमवार व्रत नें फ्रूट डाइट में आलू, लौकी, कद्दू और अरबी की सब्जियां भी खा सकते है। इन सब्जियों को शुद्ध सात्विक मानते हैं, इन्हें आप घी और जीरा में छिड़क कर बना सकते हैं। हरी मिर्च और सेंधा नमक शरीर को स्वस्थ रखने का काम करता है।
सावन के सोमवार के दिन फल खाने चाहिए। फलों में आप केला, सेब, संतरा, अनार जैसे फल खा सकते हैं। इससे आप शरीर को डिहाइड्रेशन से बचा सकते हैं और आपका पेट भी भरा रहेगा।
सोमवार व्रत इन चीजों से दूरी बनाकर रखें
अगर आप व्रत करते है तो सुबह की शुरुआत चाय से नहीं करें। आपको दिन भर हल्का खाना खाना चाहिए ऐसे में सुबह खाली पेट चाय पीने से गैस बनने लगती है। इससे आपके लिए उपवास करना मुश्किल हो सकता है।
सोमवार का व्रत करने का अर्थ यह नही है कि भूखे रहकर व्रत करें तो यह सही नहीं रहें। क्योंकि खाली पेट रहने से पेट में गैस की समस्या हो सकती है.आपको सिरदर्द और उल्टी भी हो सकती है।सेहत के लिए बरसात के मौसम में आपको अपने खान-पान का बहुत ध्यान रखने की जरूरत होती है।
सावन के सोमवार के दिन कॉर्न का सेवन खूब करने से बचना चाहिए। बारिश में पाचन तंत्र बहुत कमजोर हो जाता है। ऐसे में आपको ज्यादा तली-भुनी चीजें नहीं खानी चाहिए
जो लोग सावन सोमवार का व्रत रखते हैं, वे अन्न का सेवन नहीं करते हैं। सोमवार व्रत नियम के अनुसार, व्रत के दौरान, आटा, बेसन, मैदा, सत्तू अन्न और अनाज का सेवन नहीं किया जाता ह। इसके अलावा मांस, मदीरा, लहसुन, प्याज इत्यादि का भी सेवन नहीं किया जाता है. वहीं धनिया पाउडर, मिर्च, सादा नमक का सेवन नहीं किया जाता है।
सोमवार व्रत कथा
एक बहुत धनवान साहूकार था, जिसके घर धन आदि किसी प्रकार की कमी नहीं थी। परंतु उसको एक दुःख था। उसके कोई पुत्र नहीं था। वह इसी चिंता में दिन-रात रहता था। वह पुत्र की कामना के लिए प्रति सोमवार को चंद्रदेव का सोमेश्वर व्रत तथा चंद्र देव और शिवजी का पूजन किया करता था तथा प्रतिदिन मंदिर में जाकर शिवजी पर दीपक जलाया करता था। उसके भक्ति भाव को देखकर एक दिन पार्वती जी ने शिवजी से कहा-हे महाराज यह साहूकार आपका अत्यंत भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है, इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।
शिवजी ने कहा -हे पार्वती ! यह संसार कर्म क्षेत्र है। जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है, उसी तरह इस संसार में जो जैसा करता है वैसा ही फल भोगता है। पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा कि महाराज, जब यह आपका ऐसा भक्त है और यदि इसको किसी प्रकार का कोई दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए, क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु हैं, उनके दुःखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य क्यों आपकी सेवा-पूजा करेंगे।
पार्वती जी का यह आग्रह देख शिवजी महाराज कहने लगे-हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है, इसी चिंता से यह अति दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र देता हूं, परंतु वह केवल बारह वर्ष तक जीवित रहेगा, इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। यह सब बातें वह साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न ही कुछ कष्ट हुआ। वह पहले जैसा ही शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ काल व्यतीत होने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार के घर में बहुत खुशियां मनाई गई, परंतु साहूकार ने उसकी केवल बारह वर्ष तक की आयु जान कोई अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी को यह भेद बतलाया।
जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हो गया तो उसकी माता ने उसके पिता से लड़के के विवाह आदि के लिए कहा। परंतु साहूकार कहने लगा, मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा और काशीजी पढ़ने के लिए भेजूंगा। फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात् उस बालक के मामा को बुला उसको बहुत-सा धन देकर कहा-तुम इस बालक को काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ। रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ, यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाना। वह दोनों मामा-भांजे सब जगह सब प्रकार यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे।
रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो विवाह करने के लिए बरात लेकर आया वह एक आंख से काना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं वर को देखकर कन्या के माता-पिता विवाह से मना न कर दें। इस कारण जब उसने सेठ के अति सुंदर लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न इस लड़के से वर के कपड़े पहना तथा घोड़ी पर चढ़ा ले जाए। यह कार्य बड़ी सुंदरता से हो गया। फेरों का समय आया तो वर के पिता ने सोचा, यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा दिया जाए तो क्या बुराई है? ऐसा विचार कर राजा ने लड़के और उसके मामा से कहा यदि आप फेरों और तिलक आदि का काम भी करा दें, तो आपकी बड़ी कृपा होगी और हम इसके बदले में बहुत-सा धन देंगे। उन्होंने भी स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से हो गया।
परंतु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के साथ तुम को भेजेंगे वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी जी पढ़ने जा रहा हूं। उस राजकुमारी ने जब चुन्दड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ, जिसके साथ विवाह हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने गया है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापिस चली गई।
उधर वह सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गये। वहां जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ाना शुरू कर दिया। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई और उस दिन भी उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। लड़के ने अपने मामा जी से कहा-मामा जी, आज तो मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा-अंदर जाकर सो जाओ। लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गये। जब उसके मामा ने आकर देखा कि वह तो मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि मैं अभी रोना और विलाप करना शुरू कर दूंगा तो यज्ञ कार्य अधूरा रह जाएगा। उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना आरंभ कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वती जी उधर से जा रहे थे। जब उन्होंने जोर-जोर से रोने-पीटने की आवाज सुनी तो पार्वती जी से कहने लगीं-महाराज! कोई दुखिया रो रहा है। इसके कष्ट दूर करो। तब शिवजी जी बोले इसकी आयु इतनी ही थी, सो भोग चुका। पार्वती जी ने कहा कि महाराज कृपा करके इस बालक को और आयु दो, नहीं तो उसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। पार्वती जी के इस प्रकार बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उस को वरदान दिया और शिव जी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया। शिव-पार्वती जी कैलाश चले गए।
तब लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते हुए अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहां विवाह हुआ था। वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरंभ किया तो लड़के को ससुर ने पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर बड़ी खातिर की। राजा ने कुछ दिन उन्हें अपने यहां रखने के बाद बहुत से दास-दासियों के सहित आदर पूर्वक लड़की और जंवाई को विदा किया। जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर सबको खबर कर आता हूं। उस समय लड़के के माता-पिता अपने घर की छत पर बैठे हुए थे उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल घर पर आ जाएगा तब तो राजी-खुशी नीचे उतरकर आ जाएंगे, नहीं तो छत से गिर कर अपने प्राण खो देंगे। इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है। परंतु उनको विश्वास नहीं आया तब उसके मामा ने शपथ पूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन साथ में लेकर आया हुआ है तो सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे। इसी प्रकार जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसके सब दुःख दूर होकर उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होते हैं।