हरिशयनी एकादशी स्पेशल: आज करें ये सब, निद्रा से पहले बन जाएंगे श्रीहरि के कृपापात्र

भगवान विष्णु के विश्राम काल आरंभ के समय को देवशयनी एकादशी कहते हैं। जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आता हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल शुरू हो जाता है ।

Update: 2020-07-01 01:21 GMT

जयपुर : भगवान विष्णु के विश्राम काल आरंभ के समय को देवशयनी एकादशी कहते हैं। जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आता हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल शुरू हो जाता है । देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

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शिव को सौंप विश्राम करते हैं पालनहार

मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभग 5 माह की रहेगी। देवशयनी एकादशी को पद्मनाभा भी कहा जाता है चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्व दिया गया है। सवान का महीना भी चार्तुमास में ही आता है।

 

मुहुर्त और विधि

पारण (व्रत तोड़ने का) समय = 2 जुलाई, 05:32 to 04:14

एकादशी तिथि प्रारम्भ =30 जून, 2020, 19:49 बजे से

एकादशी तिथि समाप्त = 1 जुलाई, 2020 को 14:29 बजे

 

इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु को नये वस्त्र पहनाए जाते हैं और उन्हें नये बिस्तर पर सुलाया जाता है। ऐसा करने से भगवान विष्णु भक्तों से प्रसन्न होते हैं और उन्‍हें मनचाहा आर्शीवाद देते हैं। भगवान विष्णु ही प्रकृति के पालनहार माने जाते हैं और उनकी कृपा से ही सृष्टि चल रही है।इसलिए जब श्रीहरि चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं तो उस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता।

 

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ये शुभ काम करें...

देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेज तत्व कम हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि देवशयन हो गया है।शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं मिलते।अगर इस दिन व्रत रख सकें तो अति उत्तम है लेकिन अगर ना रख सकें तो कुछ सामान्य सी शुभ काम करें...

*प्रात:काल स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की सोने, चांदी, पीतल या तांबे की मूर्ति को पीतांबर से सजाकर सफेद वस्त्र से सजे तकिए तथा बिस्तर वाले एक छोटे से पलंग पर शयन कराएं। इसके साथ ही कुछ खास मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इन महीनों में कुछ चीजों के त्याग का व्रत लें।

*देवशयनी एकादशी पर दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर उससे भगवान विष्णु का अभिषेक करें। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु को खीर, पीले फल या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।

*अगर धन लाभ चाहते हैं तो इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें।

*एकादशी की शाम तुलसी के सामने गाय के शुद्ध घी का दीपक लगाएं और तुलसी के पौधे को प्रणाम करें। और “ॐ नमो भगवते वसुदेवाय नम:” का जाप करते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें। इससे घर के सभी संकट और आने वाली परेशानियां टल जाती हैं।

 

*देवशयनी एकादशी पर गाय के कच्चे दूध में केसर मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें।

*पीपल में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इसलिए एकादशी पर पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं।

*विष्णु भगवान के मंदिर में जाकर अन्न (गेहूं, चावल आदि) दान करें। बाद में इसे गरीबों में बांट दें। मधुर स्वर के लिए गुड़, लंबी आयु के लिए सरसों का तेल, शत्रु बाधा से मुक्ति पाने के लिए सरसों तेल और मीठा तेल, संतान प्राप्ति के लिए दूध, पाप मुक्ति के लिए उपवास।

* सुबह-सुबह घर की साफ-सफाई के पश्चात मुख्य द्वार पर हल्दी का जल या गंगाजल का छिड़काव करें। “ॐ नमो नारायणाय” या “ॐ नमो भगवते वसुदेवाय नम:” का 108 बार या एक तुलसी की माला जाप करें। घर में धन-धान्य तथा लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का केसर मिले जल से अभिषेक करें।

 

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