Bhagavad Gita Quotes in Hindi: इच्छा काया इच्छा माया, इच्छा जग उपजाया
Bhagavad Gita Quotes in Hindi: महाभारत युद्ध को लेकर ये अतिमहत्वपूर्ण श्लोक है
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता:।
भीष्ममेवाभिरक्षंतु भवन्त: सर्व एव हि।।
( गीता - 1 / 11 )
महाभारत युद्ध को लेकर ये अतिमहत्वपूर्ण श्लोक है।
इस श्लोक में दुर्योधन अपने सभी महारथियों से कह रहा है कि सब मोर्चों पर अपनी अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सबके सब भीष्म की ही सब ओर से रक्षा करें।
यदि भीष्म जीवित हैं तो हम अजेय हैं।
इसलिए आप पाण्डवों से न लड़कर केवल भीष्म की ही रक्षा करें।
कहने का तातपर्य यहाँ पे ये है कि कैसा योद्धा हैं भीष्म, जो स्वयं अपनी रक्षा नही कर पा रहा हैं,
कौरवों को उसकी रक्षा व्यवस्था करनी पड़ रही हैं ?
यह कोई ब्रह्म योद्धा नही,
भ्रम ही भीष्म है।
जब तक भ्रम जीवित है, तब तक विजातीय प्रवृत्तियां ( कौरव ) अजेय हैं।
अजेय का यह अर्थ नही की जिसे जीता ही ना जा सके; बल्कि अजेय का अर्थ दुर्जय है,
जिसे कठिनाई से जीता जा सकता हैं।
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर ।।
( रामचरितमानस, ६ / ८० क )
यदि भ्रम समाप्त हो जाये तो अविधा अस्तित्वहीन हो जाए।
मोह इत्यादि जो आशंकि रूप से बचे भी हैं, शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगे।
भीष्म की इच्छा मृत्यु थी।
इच्छा ही भ्रम हैं।
इच्छा का अंत और भ्रम का मिटना एक ही बात हैं।
इसी को संत कबीर ने सरलता से कहा -इच्छा काया इच्छा माया, इच्छा जग उपजाया।कह कबीर जे इच्छा विवर्जित, ताका पार न पाया।।
जहाँ भ्रम नही होता, वह अपार और अव्यक्त है।
इस शरीर के जन्म का कारण इच्छा है।
इच्छा ही माया है और इच्छा ही जगत की उत्पत्ति का कारण हैं।
[ 'सोऽकामयत।' ( तैत्तिरीय उप०, ब्रह्मानन्द बल्ली अनुवाक् ६ ), '
तदैक्षत बहु स्यां प्रजायेयेति।'
( छान्दोग्य उप०, ६ /२ / ३ ) ]
कबीर कहते हैं - जो इच्छाओं से सर्वथा रहित हैं,
'ताका पार न पाया'*-
वे अपार, अनन्त, असीम तत्त्व में प्रवेश पा जाते हैं।
[ योअकामो निष्काम आप्तकाम आत्मकामो न तस्य प्राणा उत्क्रामन्ति ब्रह्मैव संब्रह्माप्राप्येति। ( बृहदारण्यकोपनिषद ४ /४ ६ )
- जो कामनाओ से रहित आत्मा में स्थिर आत्मस्वरूप है, उसका कभी पतन नही होता।
वह ब्रह्मा के साथ एक हो जाता है। ]
आरम्भ में इच्छायें अनन्त होती हैं और अंततोगत्वा परमात्मा प्राप्ति की इच्छा शेष रहती है।
जब यह इच्छा भी पूरी हो जाती है, तब इच्छा भी मिट जाती हैं।
यदि उससे भी बड़ी कोई वस्तु होती तो आप उसकी इच्छा अवश्य करते।
जब उससे आगे कोई वस्तु हैं ही नही तो इच्छा किसकी होगी ?
जब प्राप्त होने योग्य कोई वस्तु अप्राप्य न रह जाये तो इच्छा भी समूल नष्ट हो जाती हैं और इच्छा के मिटते ही भ्रम का सर्वथा अंत हो जाता हैं।
यही भीष्म की इच्छा मृत्यु हैं।
इस प्रकार भीष्म द्वारा रक्षित हमलोगों की सेना सब प्रकार से अजेय हैं।
जब तक भ्रम है, तभी तक अविधा का भी अस्तित्व हैं।
भ्रम शांत हुआ तो अविधा भी समाप्त हो जाती हैं।भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की सेना जीतने में सुगम हैं।
भावरूपी भीम।
' भावे विद्यते देवः ' -
भाव में वह क्षमता है कि अविदित परमात्मा भी विदित हो जाता है।
' भाव बस्य भगवान, सुख निधान करुना भवन। '
( रामचरितमानस, ७ / ९२ ख )
श्रीकृष्ण ने इसे श्रद्धा कहकर सम्बोधित किया हैं।
भाव में वह क्षमता है कि भगवान को भी वश में कर लेता हैं।
भाव से ही सम्पूर्ण पुण्यमयी प्रवत्तियों का विकास है।
यह पुण्य का सरंक्षक है।है तो इतना बलवान की परमदेव परमात्मा को सम्भव बनाता है; किन्तु साथ ही इतना कोमल भी है कि आज भाव है तो कल अभाव में बदलते देर नही लगती।
आज आप कहते है कि महाराज बहुत अच्छे है, कल कह सकते है कि नही, हमने तो देखा महाराज खीर खाते हैं।
घास पात जो खात हैं, तिनहि सतावे काम।
दूध मलाई खात जे, तिनकी जाने राम।।
इष्ट में लेशमात्र भी त्रुटि प्रतीत होने पर भाव डगमगा जाता है,
पुण्यमयी प्रवृतियां विचलित हो उठती है, इष्ट से सम्बन्ध टूट जाता है।
इसलिए भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की सेना जितने में सुगम हैं।
महर्षि पतंजलि का भी यही निर्णय है-
' स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढभूमिः ।'
( योग्यदर्शन, १ / १४ )
दीर्घकाल तक निरन्तर श्रद्धा - भक्तिपूर्वक किया हुआ साधन ही दृढ़ हो पाता हैं।