सबसे पहले भगवान शिव ने विवाह में माता पार्वती को दिए थे 'सात वचन', और ये तो आपको पता भी नहीं होगा!
Stories Of Shiva: देवों के देव महादेव जो भक्तों के लिए भोलेनाथ हैं। तो दुष्टों के लिए महाकाल हैं। धर्मं ग्रंथों के मुताबिक जिसका ना आदि है ना अंत है वो भगवान शिव हैं। आज जानते हैं शिव को..
Stories Of Shiva: देवों के देव महादेव (Mahadev), जो भक्तों के लिए भोलेनाथ हैं। तो दुष्टों के लिए महाकाल हैं। भाल पर चंद्र है, तो विषधर हार बन गले में है। अर्धनारीश्वर हैं, तो कामजीत भी हैं। गृहस्थ हैं, तो वीतरागी भी हैं। शिव परिवार में वो सभी हैं। जिन्हें हम प्रेम करते हैं। उनकी भक्ति करते हैं। वहीँ उनसे भय भी होता है। ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। लय व प्रलय दोनों उनके अधीन हैं। धर्मं ग्रंथों के मुताबिक जिसका ना आदि है ना अंत है वो भगवान शिव हैं। आज जानते हैं शिव को..
सनातन धर्म में शैव मत को मानने वाले शिव-शक्ति के उपासक हैं। लेकिन शिव सभी मतों पंथों में सामान रूप से स्वीकार्य हैं। त्रिदेवों में पूज्य हैं। तंत्र साधना में भैरव, अघोरनाथ हैं। वेदों में रुद्र कहे गए हैं। माता पार्वती पत्नी हैं। गणेश, कार्तिकेय और अय्यपा पुत्र हैं। मनसा, ज्योति और अशोक सुंदरी पुत्रियाँ हैं। शुक्ल यजुर्वेद संहिता के रुद्र अष्टाध्याई में कहा गया कि संपूर्ण सृष्टि शिवमय है।
शिव की पूजा लिंग स्वरुप व मूर्तियों दोनों में की जाती है। सावन मास के सोमवार शिव को विशेष प्रिय हैं। इसलिए इस दिन व्रत व पूजन का विशेष फल मिलता है। शिव समय से परे हैं इसलिए वो महाकाल हैं। श्री देवी भागवत महापुराण के अध्याय 5, स्कंद 3, पृष्ठ 121 में शिव को तमोगुण कहा गया है। शिव पुराण में कहा गया कि कैलाशपति शिव ने आदिशक्ति और सदाशिव से कहा, ब्रह्मा आपकी संतान है, विष्णु की उत्पति भी आप से ही हुई है ऐसे में, मैं भी आपकी संतान हूं।
विष्णु व ब्रह्मा सदाशिव के अर्द्ध अवतार है। किंतु कैलाशपति शिव सदाशिव के पूर्ण अवतार हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है जैसे भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार हैं। इसी तरह माता लक्ष्मी, सरस्वती व पार्वती आदिशक्ति की अवतार हैं।
शिव पुराण में कहा गया कि सदाशिव कहते हैं जो भी कैलाशपति शिव व मुझमें भेद करेगा वो नर्क का भागी बनेगा। कैलाशपति, ब्रह्मा और विष्णु मैं ही तो हूं।
क्या है शिव की अष्टमूर्ति का भाव
सूर्यमूर्ति - ईशान
चन्द्रमूर्ति - महादेव
वायुमूर्ति - उग्र
आकाशमूर्ति - भीम
पृथ्वीमूर्ति - शर्व
जलमूर्ति - भव
तेजमूर्ति - रूद्र
अग्निमूर्ति – पशुपति
कौन हैं शिव के गण
नंदी
भूतनाथ
नन्दिकेश्वर
भृंगी
रिटी
बेताल
पिशाच
टुंडी
श्रृंगी
तोतला
शिव के नाम व उनका अर्थ
महाकाल
समय आयाम को नियंत्रित करने वाले।
महादेव
महान शक्ति।
भोलेनाथ
दयालु।
लिंगम
ब्रह्मांड का प्रतीक।
शिव
मैत्रीपूर्ण।
रूद्र
दुखों का नाश करने वाले।
पशुपतिनाथ
जीवआत्माओं के स्वामी।
अर्धनारीश्वर
शिव-शक्ति के मिलन का प्रतिक।
नीलकंठ
महाविनाशक विष को कंठ में धारण करने वाले।
क्या है महामृत्युंजय मन्त्र (Mahamrityunjaya Mantra)
ये भगवान शिव का शक्तिशाली मंत्र है। नित्य पाठ करने से मृत्यु भय नहीं होता। काल भी महाकाल के भक्तों से दूर रहता है। इसे त्र्यम्बकं मंत्र भी कहते हैं। यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में ये मंत्र शिव स्तुति के तौर पर है।
शिव महापुराण
इसमें शिव लीला का विस्तृत वर्णन किया गया। शिव महापुराण में 12 सहिंता हैं।
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी मनाई जाती है। इसे शिव और शक्ति के मिलन की रात कहते हैं।
शिवरात्रि
मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कही जाती है। मान्यता है कि सृष्टि में पहली बार शिवलिंग का पूजन विष्णु व ब्रह्मा ने किया था।
शादी के 7 वचन सबसे पहले शिव-पार्वती ने ही लिए थे।
ज्योतिर्लिंग
भगवान भोलेनाथ जहां स्वयं प्रकट हुए वहां ज्योतिर्लिंग हैं। दुनिया में 12 ज्योतिर्लिंग हैं।
कहा जाता है कि पृथ्वी इन्ही 12 ज्योतिर्लिंग पर टिकी है।
शिवलिंग
स्वयंभू शिवलिंग उन्हें कहा जाता है जो मानव द्वारा स्थापित हो।
12 ज्योतिर्लिंग व प्रमुख शिवालय
विश्वनाथ
त्र्यम्बकेश्वर
रामेश्वरम
पशुपतिनाथ
ॐकारेश्वर
केदारनाथ
भीमाशंकर
सोमनाथ
महाकालेश्वर
घृष्णेश्वर
बैद्यनाथ
रौला केदार नेपाल
ध्वज केदार नेपाल
अशिम केदार नेपाल
कैलाश पर्वत
बाबा गरीब नाथ
श्री केदार नेपाल
नागेश्वर
श्रीमल्लिकार्जुन
शिव की छवि धूमिल करने का प्रयास
इसके बाद ये भी जान लीजिए कि शिव पुराण में शिव की विस्तृत जानकारी है। लेकिन कहीं भी ये नहीं लिखा गया है कि वो नशा करने की प्रेरणा देते हैं। लेकिन पिछले काफी समय से देखने को मिल रहा है कि भगवान शिव को नशे का आदी चित्रों में दिखाया जा रहा है। जहां उनके हाथ में चिलम पकड़ी दिखाई जाती है और ढेर सारा धुआं नजर आता है। बाजार ऐसे चित्रों से पटा पड़ा है।
मजे की बात ये है कि आज का युवा शान से नशेबाजी करता है और गर्व से अपने को शिव भक्त कहता है। रही बात भांग धतूरा प्रिय होने की तो वो सिर्फ प्रतिक है कि शिव को आप कुछ भी अर्पित करिए वो उसे स्नेह से स्वीकार करते हैं। इसके पीछे की भावना ये है कि उन्हें कोई भी बहुमूल्य वस्तु नहीं बल्कि भक्तिभाव चाहिए।
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