Swastik Ka Mahatva: हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वस्तिक का चिन्ह, जानें इसका रहस्य और महत्व

Swastik Ka Mahatva: हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक बनाया जाता है। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक के चिह्न को मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है।

Report :  Anupma Raj
Update:2022-11-08 09:32 IST

Swastik Sign (Image: Social Media)

Swastik Ka Mahatva: हिंदू धर्म में स्वास्तिक का विशेष महत्व है। दरअसल हर शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक बनाया जाता है। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक के चिह्न को मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है और इसके पीछे की रहस्य और महत्व क्या है? नहीं जानते तो चलिए हम आपको बताते है स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है और इसका महत्व

स्वस्तिक का अर्थ क्या है

दरअसल स्वस्तिक शब्द तीन शब्दों (सु+अस+क) से मिलकर बना है, सु+अस+क मतलब 'सु' का मतलब है शुभ, 'अस' का मतलब है अस्तित्व, और 'क' का मतलब है कर्ता। इस प्रकार से स्वस्तिक का अर्थ हुआ मंगल करने वाला। जानकारी के लिए बता दें कि स्वस्तिक को भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है, और जैसे भगवान गणेश प्रथम पूज्य होते हैं ठीक उसी प्रकार हिन्दू धर्म में शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक का चिन्ह बनाते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि स्वस्तिक में बनी चार रेखाएं चार दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण को दर्शाती हैं तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ये रेखाएं चारों वेदों का प्रतीक है।

दरअसल स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की होती है। पहला स्वस्तिक, जो आगे बढ़कर मुड़ जाती हैं और इसकी चार भुजाएं बन जाती हैं, बता दें जिस स्वास्तिक में रेखाएं आगे की ओर इंगित करती हुई दायीं ओर मुड़ती हैं वह स्वास्तिक अति शुभ माना जाता है। ऐसा स्वास्तिक जीवन में शुभता और प्रगति का संकेत होता है। इस स्वस्तिक के मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों का रूप माना जाता है। दरअसल स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोडऩे के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा भी परिभाषित किया जाता है। इतना ही नहीं स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं और स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। जानकारी के लिए बता दें स्वस्तिक का बायां हिस्साजो है उसे भगवान गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है। अन्य ग्रंथो में भी स्वास्तिक को चार युग और चार आश्रम (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का प्रतीक बताया गया है। इसलिए कुंडली हो, खाता का पूजन करना हो या फिर कोई भी शुभ अनुष्ठान स्वास्तिक अवश्य ही बनाया जाता है। लेकिन स्वास्तिक बनाते समय इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए कि बायीं ओर जाती हुई रेखाएं शुभ नहीं होती हैं। 


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