Tulsi Vivah 2020: जानें वृंदा से तुलसी बनने की अद्भुत कथा, महत्व और महाउपाय...

तुलसी विवाह का अर्थ भगवान का आह्वान करना होता हैं। तुलसी विवाह के दिन तुलसी का शालिग्राम के साथ विवाह करने से बहुत से कार्यों की सिद्धि होती हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया हैं।

Update:2020-11-24 07:52 IST
तुलसी विवाह के दिन जिन लड़के या लड़कियों के विवाह होने में दिक्कतें आती हैं। इस दिन उनका विवाह बिना किसी रूकावट के हो जाता हैं । यह दिन विवाह के लिए बहुत ही शुभ भी माना जाता हैं।

जयपुर: इस साल 25 या 26 नवंबर को होगा तुलसी विवाह होगा। भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम का विवाह तुलसी से जिस दिन हुआ था। उस दिन को तुलसी विवाह के नाम से जानते हैं। तुलसी विवाह का उत्सव हर साल कार्तिक मास की एकादशी तिथि को मनाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन विश्राम करने के लिए अपने शयनकक्ष में चले जाते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक काम जैसे – गृहप्रवेश, विवाह, व्रत, शुरू हो जाते हैं। कार्तिक मास की एकादशी के दिन विष्णु भगवान जागते हैं और इस दिन से ही शुभ कार्य शुरू होते हैं। तुलसी विवाह के दिन जिन लड़के या लड़कियों के विवाह होने में दिक्कतें आती हैं। इस दिन उनका विवाह बिना किसी रूकावट के हो जाता हैं । यह दिन विवाह के लिए बहुत ही शुभ भी माना जाता हैं।

कथा

शास्त्रानुसार प्राचीन समय में एक जालंधर नाम का दैत्य था। जो बहुत ही अत्याचारी था। यह राक्षस बहुत ही शक्तिशाली तथा वीर था। कहा जाता हैं कि जालंधर की वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा का पत्नीधर्म का पालन करना था। वृंदा के द्वारा पत्नीधर्म का पालन करने के कारण ही वह सर्वजयीं बना हुआ था।।

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पत्नीधर्म था जालंधर की वीरता रहस्य

 

जालंधर से सभी देवता बहुत ही परेशान थे। जालंधर के आतंक से परेशान होकर सभी देवता विष्णु भगवान के पास गये और उन्होंने जालंधर के उत्पात से छुटकारा पाने के लिए उनसे प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना सुनकर विष्णु भगवान ने जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व धर्म को भंग करने का प्रयास किया।

जिसके बाद जालंधर की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से दुखी होकर वृंदा ने विष्णु भगवान को एक श्राप दिया और कहा कि जैसे मैंने पति वियोग सहा हैं उसी तरह तुम्हें एक दिन पत्नी वियोग सहना पड़ेगा। यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। कहा जाता हैं कि जिस स्थान पर वृंदा की मृत्यु हुई थी। वहां पर तुलसी का पौधा उत्पन्न हो गया था।

 

एक अन्य कथा

तुलसी विवाह के बारे में एक अन्य कथा प्रचलित हैं कि वृंदा ने विष्णु भगवान को पत्थर की मूर्ति बनने का श्राप दिया था। जिसके बाद विष्णु जी ने वृंदा को यह वचन दिया था कि तुम दुबारा जन्म लोगी और तुम्हारा विवाह तुलसी के रूप में मेरे साथ होगा।

इसलिए विष्णु जी ने शालिग्राम के रूप में जन्म लिया और वृंदा अर्थात तुलसी से विवाह कर लिया। उस दिन के बाद से ही तुलसी विवाह की यह परम्परा चली आ रही हैं। कार्तिक मास के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह का त्यौहार बहुत ही शुभ होता हैं।

तुलसी को विष्णुप्रिया के नाम से भी जाना जाता है। तुलसी विवाह का अर्थ भगवान का आह्वान करना होता हैं। तुलसी विवाह के दिन तुलसी का शालिग्राम के साथ विवाह करने से बहुत से कार्यों की सिद्धि होती हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया हैं।

 

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त

 

एकादशी तिथि प्रारंभ 25 नवंबर दिन बुधवार की सुबह 2 बजकर 42 मिनट पर

एकादशी तिथि समाप्त 26 नवंबर दिन गुरुवार की सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर

द्वादशी तिथि प्रारंभ 26 नवंबर दिन गुरुवार की सुबह 05 बजकर 10 मिनट पर

द्वादशी तिथि समाप्त 27 नवंबर दिन शुक्रवार की सुबह 07 बजकर 46 मिनट पर

महत्व

 

*यदि किसी व्यक्ति की संतान नहीं हैं या कोई कन्या नहीं हैं। जिसके कारण उन्हें कन्यादान जैसे जीवन के महादान नहीं कर पाते हैं।

इस पुण्य को कमाने के लिए उस व्यक्ति को तुलसी विवाह के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह करवाना चाहिए। तुलसी विवाह के दिन विवाह करवाने से कन्यादान के समान पुण्यफल मिलता है।

*यदि तुलसी विवाह के दिन विधिवत रूप से पूजा की जाए तो तुलसी पूजा करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

*तुलसी विवाह के दिन व्रत भी रखा जाता हैं। माना जाता हैं कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता हैं। उसे इस जन्म के पापों से तो मुक्ति मिल ही जाती हैं। इसके साथ की उसके पूर्व जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

*तुलसी विवाह के दिन तुलसी माता की पूजा करने से या तुलसी विवाह करवाने से घर में सुख – शांति बनी रहती हैं व धन आदि की कभी कमी नहीं होती। क्योंकि तुलसी को लक्ष्मी जी का ही एक रूप माना जाता हैं।

 

 

 

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पूजन विधि-भगवान विष्णु का आवाहन इस मन्त्र के साथ करें –

आगच्छ भगवन देव अर्चयिष्यामि केशव। तुभ्यं दास्यामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव

*तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे को गेरू से सजा लें।

*इसके बाद तुलसी के पौधे पर ओढ़नी के रूप में एक लाल रंग की चुन्नी ओढा दें।

*अब गमले के चारों ओर गन्नों को खड़ा करके विवाह का मंडप बना लें। इसके बाद तुलसी माता को साड़ी से लपेट दें और उन पर सभी श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ा दें।

गणेश भगवान की वंदना से पूजा आरम्भ

*इसके बाद श्री गणेश भगवान की वंदना से पूजा आरम्भ करने के बाद ॐ तुलस्यै नाम: का जाप करते हुए तुलसी की पूजा करें।

*अब एक नारियल लें और उसे तुलसी माता के समक्ष टिके के रूप में चढ़ा दें।

*इसके बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति को अपने हाथ में लेकर तुलसी के पौधे की सात बार परिक्रमा करें। इस प्रकार तुलसी विवाह व तुलसी पूजा सम्पन्न होती है। साथ ही जीवन में सुख सौभाग्य की पूर्ति होती है।

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