Sanatana Dharma: सनातन में श्रद्धा व विश्वास के पुष्ट करने की है क्षमता

Sanatana Dharma: शिव जो अज हैं तो अमृत्य हैं। अजन्मा हैं, मृत्यु जिनका स्पर्श भी नहीं कर सकती, जो स्वयं जन्म-मरण से परे हैं... वही शिव विश्वास हैं, तो जिनका न जन्म हुआ है और न ही मरण हो सकता है। वे शिव-विश्वास अंध कैसे हो सकते हैं। या विश्वास मर भी कैसे सकता है!

Update: 2023-03-29 22:32 GMT

Sanatana Dharma: श्री रामचरित मानस के आश्रय से - अंधविश्वास शब्द का प्रयोग अविवेकी प्रयोग है, मूढ़ता का लक्षण है क्योंकि आचार्य तुलसीदास जी विश्वास को शिव कहते हैं। अब विश्वास जो स्वयं शिव है वो अंध कैसे हो सकता है? "भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ... " अर्थात भवानी हैं श्रद्धा और शिव हैं विश्वास। शिव जो अज हैं तो अमृत्य हैं। अजन्मा हैं, मृत्यु जिनका स्पर्श भी नहीं कर सकती, जो स्वयं जन्म-मरण से परे हैं... वही शिव विश्वास हैं, तो जिनका न जन्म हुआ है और न ही मरण हो सकता है। वे शिव-विश्वास अंध कैसे हो सकते हैं। या विश्वास मर भी कैसे सकता है!

विश्वास न अंधा होता है और न ही मरता है इसीलिए अंधविश्वास शब्द का प्रयोग मूढ़ता है। हां श्रद्धा जन्म लेती है, इसीलिए मर भी सकती है, पुनः जन्म भी ले सकती है। श्रद्धा सती है, प्राण त्यागकर पुनः हिमालय के घर में उमा के रूप में जन्म ले लेती है। यह श्रद्धा है जो बनती बिगड़ती रहती है। इसीलिए अंधश्रद्धा शब्द का प्रयोग समुचित है।

हां, श्रद्धा रूपी पार्वती का यदि विश्वास शिव के साथ मिलन हो जाय तो कार्तिकेय अर्थात पुरुषार्थ और गणेश अर्थात बुद्धि की प्राप्ति हो जाती है। पुरुषार्थ और बुद्धि प्राप्त हो जाय तब जीवन में रिद्धि और सिद्धि आती हैं। रिद्धि-सिद्धि आ गए तो जीवन शुभ-लाभ से परिपूर्ण हो जाता है।

मूल बात है कि श्रद्धा यदि यज्ञक्षेत्र जैसे पवित्र क्षेत्र में अकेले ही विचरण करे तो अंध होकर मरण को प्राप्त हो जाती है। इसीलिए अपनी श्रद्धा का विश्वास रूपी शिव से मिलन कराना ही मनोरथ होना चाहिये। नारद भी कहते हैं केवल श्रद्धा नहीं वरन् आदौ श्रद्धा (इसका फिर कभी विवेचन करेंगे), केवल निष्ठा नहीं वरन् ततौ निष्ठा (इसका भी फिर कभी विवेचन करेंगे) ही भक्ति को उपलब्ध होती है।

सनातन धर्म की यही विशिष्टता है कि इसमें श्रद्धा और विश्वास को पुष्ट करने की सामर्थ्य है। अविश्वास मनुष्य की प्रवृत्तियों को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही मनुष्य की प्रवृत्तियों को सुधारता है। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी प्रगतिशील दिखने के चक्कर में अनर्गल वृतांत देकर आपको बरगलाऐंगे, पर आप केवल विश्वास रखें। श्रद्धा अवश्य अंधश्रद्धा हो सकती है पर विश्वास कभी अंधविश्वास नहीं हो सकता।।

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