Utpanna Ekadashi: उत्‍पन्‍ना एकादशी से हुई एकादशी व्रत की शुरुआत, इस दिन जरूर पढ़ें ये कथा, जानें पूजन विधि

Utpanna Ekadashi: हिन्दू धर्म में एकादशियों का बड़ा महत्व है। हिन्दू धर्म में कुल 24 एकादशियां मानी गई हैं, जो यदि मलमास हो तो बढ़कर 26 हो जाती हैं, इनमें उत्पन्ना एकादशी भी एक है।

Written By :  Anupma Raj
Update:2023-01-22 11:40 IST

Utpanna Ekadashi (Image: Social Media)

Utpanna Ekadashi: हिन्दू धर्म में एकादशियों का बड़ा महत्व है, यह दिन मात्र एक अवसर होने की बजाय एक पर्व का रूप भी धारण कर लेता है। इस दिन हिन्दू धर्म के लोग भगवान की पूरे विधि अनुसार पूजा करते हैं, उनके नाम का व्रत करते हैं तथा एकादशी के अनुकूल वरदान पाते हैं, ऐसी मान्यता प्रचलित है। हिन्दू धर्म में कुल 24 एकादशियां मानी गई हैं, जो यदि मलमास हो तो बढ़कर 26 हो जाती हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह दो एकादशियाँ आती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की।

पिछली बार हमने देवोत्थान एकादशी पर चर्चा की थी इसी क्रम में आज चर्चा करते हैं आगामी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की 'उत्पन्ना एकादशी' की। जानें इस एकादशी का महत्व एवं कैसे करें व्रत तथा पूजन के विषय मे।

परिचय

यह सभी जानते हैं कि एकादशी को व्रत करके भगवान का पूजन किया जाता है। लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत करने की प्रथा आरंभ हुई थी। इस एकादशी से जुड़ी कथा बेहद रोचक है। कहते हैं कि सतयुग में इसी एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ था। इस देवी ने भगवान विष्णु के प्राण बचाए, जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इन्हें देवी एकादशी नाम दिया।


उत्पन्ना देवी के जन्म के पीछे एक पौराणिक कथा इस प्रकार हैं- मुर नामक एक असुर हुआ करता था, जिससे युद्घ करते हुए भगवान विष्णु काफी थक गए थे, और मौका पाकर बद्रीकाश्रम में गुफा में जाकर विश्राम करने लगे। परन्तु मुर असुर ने उनका पीछा किया और उनके पीछे-पीछे चलता हुआ बद्रीकाश्रम पहुंच गया। जब वह पहुंचा तो उसने देखा कि श्रीहरि विश्राम कर रहे हैं, उन्हें निद्रा में लीन देख उसने उनको मारना चाहा तभी विष्णु भगवान के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ और इस देवी ने मुर का वध कर दिया। देवी के कार्य से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने कहा कि देवी तुम मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्न हुई हो अतः तुम्हारा नाम 'उत्पन्ना एकादशीं' होगा। तथा भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया और कहा कि आज से प्रत्येक एकादशी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी। जो भी भक्त एकादशी के दिन मेरे साथ तुम्हारा भी पूजन करेगा और व्रत करेगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।

तभी से यह मान्यता बनी हुई है कि प्रत्येक एकादशी पर व्रत किया जाए और साथ ही भगवान की पूजा भी की जाए। किंतु अधिकतर लोग एकादशी पर केवल भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, परंतु आप अधिक फल पाना चाहते हैं । तो श्रीविष्णु के साथ एकादशी देवी की भी आराधना करें। यह एकादशी देवी विष्णु जी की माया से प्रकट हुई थी। इसलिए इनका महत्व पूजा में उतना ही है जितना भगवान विष्णु का है। शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्घा भाव से उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखता है । वह मोहमाया के प्रभाव से मुक्त हो जाता है, छल-कपट की भावना उसमें कम हो जाती है और अपने पुण्य के प्रभाव से व्यक्ति विष्णु लोक में स्थान पाने योग्य बन जाता है।

विधि एवं नियम (Utpanna Ekadashi Vidhi aur Niyam)

यदि आप इस एकादशी का व्रत करने जा रहे हैं तो हेमंत ऋतु में मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से इस व्रत को प्रारंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दातुन करें ।ताकि अन्न का अंश मुँह में रह न जाए। रात्रि को भोजन कदापि न करें, न अधिक बोलें। एकादशी के दिन प्रात: 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। पूरे दिन निराहार रहकर संध्या पूजन के बाद फलाहार लें, संभव हो तो श्रीहरि के किसी भी मंत्र का जाप करते रहें। परनिंदा, छल-कपट, लालच, द्वेष की भावना मन में न लाएं। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा माँगनी चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के पश्चात स्वयं भोजन करें।



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