Uttrayan Kya Hota Hai : उत्तरायण क्या होता है, जानिए धार्मिक महत्व, इस दिन का महाभारत काल में भीष्म पितामह को क्यों था इंतजार ?

Uttrayan Kya Hota Hai : उत्तरायण की शुरुआत के साथ ही सूर्य की रौशनी तेज होने लगती है और शरीर में ऊर्जा का संचार करती है। प्रकृति और रितु में बदलाव के साथ नकारात्मकता को दूर कर सकारत्मकता भरती है। साथ ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग प्रकाशित करती हैा।

Update:2023-01-14 04:45 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Uttrayan Ka Mahatva

उत्तरायण का महत्व :14 जनवरी से सूर्य धनु राशि से मकर राशि में जायेंगे। इस दिन को संक्रांति काल (sankranti kaal ) कहते हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश नव जीवन में प्रवेश ऊर्जावान बने रहने का प्रतीक है। उत्तरायण जीवन में बदलाव का प्रतीक है। यह सूर्य के सिर्फ राशि परिवर्तन की तिथि नहीं है, बल्कि जीवन में नवचेतना की ओर बढ़ने की घड़ी है।

उत्तरायण कब होता है 

जब सूर्य मकर से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तो इस अंतराल को उत्तरायण कहते हैं। सूर्य के उत्तरायण की यह अवधि 6 माह की होती है। वहीं जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं। दक्षिणायन को नकारात्मकता का और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक मानतो है। उत्तरायण शुरू होने पर सूर्य देव (Surya Dev) धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इसे मकर संक्रांति भी कहते है। इस दिन को उत्तरायण (Uttarayan) के नाम से भी जाना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से उत्तरायण की शुरूआत 22 दिसंबर के बाद होता है। 22 दिसंबर की दोपहर को सूर्य मकर रेखा के बिल्कुल ऊपर होते हैं। मकर रेखा सूर्यदेव की दक्षिण की लक्ष्मण रेखा है।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)


 उत्तरायण क्या है

उत्तरायण ही वह समय होता है, जब संक्रांति का दिन बदलाव का दिन बन जाता है। उत्तरायण सूर्य की एक स्थिति है। मान्यता है कि इसके बाद मृत्यु लोक से स्वर्ग तक का मार्ग प्रकाशित हो जाता है और देवता भी इस दौरान शक्तिशाली हो जाते हैं। इसलिए उत्तरायण को बहुत ही शुभ माना जाता है। उत्तरायण देवताओं के लिए दिन और दक्षिणायन देवों के लिए रात के सामान है, यह समय इतना शुभ है कि भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए इस दिन की प्रतीक्षा की थी। उन्होंने स्वेच्छा से इस दिन प्राण त्यागे थे।

शुभता का प्रतीक है उत्तरायण को सकारात्मकता और दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। उत्तरायण से दिन की अवधि लंबी और रात छोटी होने लगती है, वहीं दक्षिणायन में रात लंबी और दिन छोटे होते हैं। उत्तरायण में सूर्य मकर राशि से प्रवेश करके कर्क राशि की ओर गति करते हैं और दक्षिणायन में सूर्य की गति कर्क राशि से मकर की ओर होती है.

साल में सूर्य छह माह उत्तरायण रहते हैं और छह माह दक्षिणायन की गति करते हैं। सूर्य हर माह राशि परिवर्तन करते हैं जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य उत्तरायण होते हैं और इसके बाद जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हुए आगे बढ़ते हैं और मिथुन में प्रवेश करते हैं, तब दक्षिणायन आरंभ होता है।

उत्तरायण में भीष्म पितामह ने त्यागे थे प्राण

महाभारत के समय भीष्म पितामह ने भी इसी शुभ काल में प्राण  त्त्यागा था। बाणों की शय्या पर लेटे पितामह ने उत्तरायण का इंतजार किया था प्राण त्यागने के लिए। इसीलिए बाणों से बिंधे होने का बाद भी इस तिथि की प्रतीक्षा की थी।उत्तरायण शुरू होने पर स्वेच्छा से उन्होंने प्राण छोड़ कर ईश्वर का सानिध्य पाया था । इस दिन से ही सूर्य उत्तरायण शुरू होते हैं। इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है। यह ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है।

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