Vaikuntha Chaturdashi Kaise Manate Hai वैकुंठ चतुर्दशी कैसे मनाते हैं?: जानते हैं कथा, क्यों और किसकी होती है पूजा, क्या मिलता है फल

Vaikuntha Chaturdashi Kaise Manate Hai वैकुंठ चतुर्दशी कैसे मनाते हैं?: कार्तिक मास की चतुर्दशी की तिथि भगवान शिव और विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन स्वर्ग जाने का मार्ग खुलता है, जानते हैं इस दिन का महत्व...

Update:2023-11-18 09:00 IST

Vaikuntha Chaturdashi Kaise Manate Hai वैकुंठ चतुर्दशी कैसे मनाते हैं?:  बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ की जाती है। इसी एक दिन भगवान शिव को तुलसी पत्र अर्पित किया जाता है। ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु को बेलपत्र जरूर अर्पित करना चाहिए।भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी पर उनकी पूजा करता है, उसे स्वर्ग प्राप्त होता है।

कब है वैकुंठ चतुर्दशी?

 कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहते है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी को हरि हर यानी श्रीहरि और महादेव की पूजा करने का विधान है। जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी को भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जीवन के अंतिम समय में उसे भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में स्थान मिलता है। 

बैकुंठ चतुर्दशी कब है, शुभ मुहूर्त ,कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 25 नवंबर दिन शनिवार को शाम 05.22 मिनट पर प्रारंभ होगी। यह तिथि अगले दिन यानी 26 नवंबर रविवार को दोपहर 03.53 मिनट तक मान्य रहेगी। उदयातिथि की मान्यता के अनुसार, इस वर्ष बैकुंठ चतुर्दशी 25 नवंबर शनिवार को है।

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन का शुभ समय या अभिजित मुहूर्त सुबह 11 . 47 मिनट से दोपहर 12. 29 मिनट तक है। बैकुंठ चतुर्दशी को निशिता मुहूर्त रात 11 .41 मिनट से प्रारंभ है, जो देर रात 12 . 35 मिनट तक रहेगा। दिन में शुभ-उत्तम मुहूर्त 08:10 बजे से 09:30 बजे तक है।रवि योग दोपहर में 02 . 56 मिनट पर बन रहा है। यह योग अगले दिन सुबह 06 बजकर 52 मिनट तक मान्य है।

वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि

सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। संभव हो तो इस दिन उपवास भी रखें। किसी तरह के बुरे विचार मन में न लाएं। इसके बाद रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करें और शिवजी को बिल्व पत्र चढ़ाएं। पूजा के दौरान ये मंत्र बोलें-

विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।

वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।

 शुद्ध घी का दीपक जलाएं। दोनों देवताओं को कुमकुम से तिलक करें। फूल माला पहनाएं। वस्त्र के रूप में मौली समर्पित करें। इस तरह पूजा करने के बाद आरती करें। अगली सुबह (27 नवंबर, सोमवार) ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें।इस तरह वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव और विष्णु की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानी दूर होती है।

वैकुंठ चतुर्दशी को क्या दान करना चाहिए?

 बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा में शिव जी को तुलसी अर्पित और भगवान विष्णु को बेल पत्र अर्पित करना चाहिए। क्योंकि इन दोनों ने एक दूसरे को इस दिन ही यह पावन वृक्षों की पत्तियां अर्पित की थीं। इसी के साथ दोनों देवताओं को दीपदान भी करना बेहद शुभ होता है। आप चाहें तो तीर्थ घाट के समीप दीप दान कर सकते हैं।

वैकुंठ चतुर्दशी की कथा 

भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए जो भी व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी पर उनकी पूजा करता है, उसे स्वर्ग प्राप्त होता है। मृत्यु के बाद जीवात्मा को बैकुंठ में स्थान मिलता है। सामान्यजनों के लिए बैकुंठ चतुर्दशी पर स्वर्ग के द्वारा खुले रहते हैं, ताकि उनको भगवान विष्णु नाम जप से ही स्वर्ग प्राप्त हो। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने जय और विजय को बैकुंठ चतुर्दशी पर स्वर्ग के द्वार खुले रहने का आदेश दिया।पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु 108 कमल पुष्पों से भगवान शिव की पूजा कर रहे थे, तब महादेव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प गायब कर दिया। अंत में जब पुष्प कम लगा तो वे अपना नेत्र अर्पित करने लगे तो भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें ऐसा करने से रोकते हुए सुदर्शन चक्र प्रदान किया।

धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु के मन में शिवजी की पूजा करने का विचार आया। इसके लिए वे काशी आए और उन्होंने 1 हजार कमल के फूलों से महादेव की पूजा का संकल्प लिया। भगवान विष्णु विधि-विधान से शिवजी की पूजा करने लगे। शिवजी ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। जब भगवान विष्णु ने देखा कि पूजा में एक कमल का फूल कम है तो उन्होंने सोचा कि ‘मेरा एक नाम कमलनयन भी है यानी मेरी आंखें भी कमल पुष्प के समान है।’ ये सोचकर वे अपनी आंख निकालकर महादेव को समर्पित करने लगे। तभी वहां स्वयं महादेव प्रकट हुए और भगवान विष्णु की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए। महादेव ने कहा कि ‘आज कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी की तिथि वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध होगी। आज जो भी संयुक्त रूप से हरि और हर की पूजा करेगा उसे वैकुंठ में स्थान प्राप्त होगा।’ तभी से वैकुंठ चतुर्दशी का व्रत किया जाने लगा।

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