Valmiki Jayanti 2024: आदिकवि का पौलस्त्यवध नाटक कैसे बन गया रामायण
Valmiki Jayanti 2024: प्राचीन काल में मुनि वाल्मीकि ने इस आर्ष काव्य की ‘रामायण’ की रचना की थी। नाटक दृश्य काव्य है, और वाल्मीकि का पौलस्त्यवध नाटक था, जिसे रामायण नाम से प्रसिद्धि मिली।
Valmiki Jayanti 2024: आज वाल्मीकि जयंती है। महर्षि वाल्मीकि की प्रतिष्ठा रामायण महाकाव्य को लेकर है यह सब बातें सभी जानते हैं लेकिन आज हम इस बात पर चर्चा करने जा रहे हैं कि महर्षि वाल्मीकि पर क्या कुछ अलग हटकर चिंतन किया गया है। इसका जवाब हां में है। ये बात हम सभी जानते हैं कि रावण ऋषि पुलिस्त के पुत्र विश्रवा का पुत्र था। और ऋषि पुलिस्त का पौत्र था। इसी लिए वाल्मीकि ने पौलस्त्यवध नाटक लिखा था।
ऐसा माना जाता है की आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था हिंदी पाणिनि आचार्य किशोरी दास वाजपेयी ने अपनी पुस्तक मेरे कुछ मौलिक विचार में लिखा है “वाल्मीकि रामचरित के आदिगायक हैं। उन्होंने पौलस्त्यवध नाटक लिखा था। इसकी जानकारी वाल्मीकीय रामायण के प्रारंभिक चार सर्गों से चलती है। प्रारंभिक सर्ग उस अज्ञात नाम महाकवि ने भूमिका के रूप में लिखे हैं और पांचवें सर्ग से महाकाव्य की कथा आरंभ होती है। इससे पहले वह कहते हैं की पौलस्त्यवध, वाल्मीकीय रामायण और रामचरितमानस इनमें से एक (पौलस्त्यवध) नाटक है और शेष दोनों महाकाव्य।
महाकाव्य की परिभाषा
आचार्य वाजपेयी लिखते हैं कि महाकाव्य की जो परिभाषा साहित्य शास्त्रीय ग्रंथों में दी गई है, उसमें यदि वाल्मीकीय रामायण तथा रामचरितमानस शामिल नहीं होते तो यह परिभाषा बनाने वालों का दोष है कि वह अपनी परिभाषा में इन महाकाव्यों को नहीं ला सके। यह भी संभव है कि उनके सामने महाकाव्य संस्कृत के ही रहे हों और मानस पर उनका ध्यान ना गया हो या परिभाषा बनाने तक मानस का अवतरण ही ना हुआ और वाल्मीकि रामायण को वह साधारण महाकाव्य में ना रखना चाहते हों। वह तो आदि काव्य के नाम से प्रसिद्ध है तब महाकाव्य की अर्वाचीन परिभाषा में वह कैसे आता। वाल्मीकि रामायण नाम इसलिए प्रचलित हो गया क्योंकि महाकवि ने आरंभ के चार सर्गों में बताया कि रामायण के प्रथम गायक वाल्मीकि हैं और फिर अंत में कृतज्ञतापूर्वक कहा- आदिकाव्यमिदं चार्षम्, पुरा वाल्मीकिना कृतम्।
‘रामायण’ की रचना
प्राचीन काल में मुनि वाल्मीकि ने इस आर्ष काव्य की ‘रामायण’ की रचना की थी। नाटक दृश्य काव्य है, और वाल्मीकि का पौलस्त्यवध नाटक था, जिसे रामायण नाम से प्रसिद्धि मिली। अब चूंकि रामायण का, रामचरित का निबंधन पौलस्त्यवध में होने के कारण उसे रामायण लोग कहने लगे। पहले रामचरित के अर्थ में रामायण का प्रयोग होता था। वाल्मीकि रामायण के प्रौढ़ टीकाकार श्रीमान राम महोदय ने लिखा है रामस्य अयनम् चरितम् – रामायणम् यानी रामायण तब तक काव्य विशेष की संज्ञा ना थी। आगे चलकर रामायण का प्रयोग उन काव्य विशेषों के लिए होने लगा जिन में रामचरित (रामायण) का निबंध हुआ हो। अध्यात्म रामायण यहां तक कि तुलसीदास के रामचरितमानस की भी तुलसीकृत रामायण नाम से ही अधिक प्रसिद्ध है। इसलिए वाल्मीकि के पौलस्त्यवध नाटक को रामायण नाम मिला और फिर रामायण को लेकर जब किसी महाकवि ने एक महाकाव्य की रचना की तो उसे भी रामायण नाम मिला। वह वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस महाकाव्य को भी पौलस्त्यवध तक ही सीमित रखा गया था। युद्ध कांड के अंत में राम का अयोध्या आगमन और राज्य भर ग्रहण करने का वर्णन है और यही फल श्रुति आदि है, जो ग्रंथ की समाप्ति पर ही लिखी जाती है। उत्तरकांड उत्तर कालीन प्रक्षेप है।