Vaman Dwadashi 2024: वामन द्वादशी, चविष्णुजी की कृपा के लिए करें पूजा, जानिए कथा और इस दिन का महत्व

Vaman Dwadashi 2024: यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये अवतार विष्णु जी का मनुष्य रूप में पहला अवतार था

Report :  Kanchan Singh
Update:2024-04-28 16:18 IST

Vaman Dwadashi 2024 ( Social Media Photo)

Vaman Dwadashi 2024: वामन जयंती का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है इस दिन श्री हरि ने वामन देव के रूप में जन्म लिया था भक्त श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान वामन की पूजा करते हैं*वामन द्वादशी या वामन जयंती प्रति वर्ष 2 बार मनाई जाती है। एक चैत्र माह की शुक्ल द्वादशी तिथि को और दूसरी बार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये अवतार विष्णु जी का मनुष्य रूप में पहला अवतार था। इस दिन श्री हरि विष्णु जी ने वामन अवतार या वामन देव के रूप में जन्म लिया था।ज्योतिषाचार्य के अनुसार, साल 2024 में वामन द्वादशी का व्रत रविवार 20 अप्रैल 2024 को पड़ी थी। ऐसा माना जाता है कि, इस दिन जो भक्त श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान वामन की पूजा करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भक्तों को इस दिन उपवास रखकर भगवान वामन की स्वर्ण प्रतिमा बनवा कर पंचोपचार करना चाहिए और विधि-विधान से भगवान विष्णु के इस स्वरूप का पूजन करना चाहिए।

वामन अवतार कथा

प्राचीन काल में एक बलि नाम का दैत्य राजा था। वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपने बल और तप की बदौलत पूरे ब्रह्मांड पर अपना अधिपत्य जमा लिया था। भगवान विष्णु के परमभक्त और अत्यन्त बलशाली बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग को भी जीत लिया था। तब इंद्र भगवान विष्णु के पास आए, और उन्होंने अपना राज वापस दिलाने की प्रार्थना की। इसके बाद भगवान विष्णु ने इंद्र को आश्वासन दिया, वह इनका अधिकार वापस दिलाकर रहेंगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोग पर इंद्र के अधिकार को वापस दिलाने के लिए वामन अवतार लिया। उन्होंने ॠषि कश्यप और अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लिया। राजा बलि भगवान विष्णु का परमभक्त तो था। लेकिन वह एक क्रूर और अभिमानी शासक भी था। राजा बलि ने हमेशा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। वह हमेशा अपने बल और शक्ति से देवताओं और लोगों को डराया-धमकाया करता था। उसने अपने पराक्रम की बदौलत तीनों लोकों को जीत लिया था।


एक दिन जब राजा बलि अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। तब श्रीहरि विष्णु वामन अवतार में उसके घर पहुंच गए। उस समय वहां पर दैत्यगुरु शुक्राचार्य भी उपस्थित थी। जैसे ही शुक्रचार्य ने वामन को देखा, वह तुरंत ही समझ गए कि यहां विष्णु है। शुक्राचार्य ने राजा बलि को बुलाकर उन्हें कहा कि यहां विष्णु वामन रूप में पहुंच चुके हैं, वहां तुम संकल्प करवाकर कुछ भी मांग सकते हैं, तो मुझ से बिना पूछे उन्हें कुछ मत देने का वचन मत देना। लेकिन राजा बलि ने इस बात को अनसुना कर दिया। तभी वामन देव राजा बलि के पास आए। कुछ मांगने की इच्छा जाहिर की था। राजा बलि बहुत दानवीर भी थे। उसने वामन को दान देने का वचन दे दिया। इस बीच शुक्राचार्य ने उन्हें वचन न देने इशारा भी किया। लेकिन वह नहीं माने और उन्हें वामन देव को वचन दे दिया।

राजा के मुख से मुंह मांगा दान पाने का वचन मिलते ही, उन्होंने राजा बलि से तीन पग धरती की याचना की। राजा बलि सहर्ष वामन देव की इच्छा पूर्ति करने के लिये सहमत हो गये। राजा बलि के सहमत होते ही वामन ने विशाल रूप धारण कर लिया। इन्होंने एक पग में पूरे भू लोक को नाप दिया, दूसरे पग में स्वर्ग लोक को अपने अधीन कर लिया। वामन रूपी श्रीहरि विष्णु ने जब तीसरा पग उठाया, तो राजा बलि श्रीहरि विष्णु को पहचान गये।उसने अपना शीश वामन देव के सामने प्रस्तुत कर दिया। वह भगवान विष्णु का परमभक्त भी थे, तो उन्होंने बलि की उदारता का सम्मान किया, और उसका वध करने के बजाय उसे पाताल लोक भेज दिया। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह वरदान दिया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वीलोक पर आ सकते हैं।

दक्षिण भारत में ऐसा माना जाता है कि राजा बलि साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस दिन को ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है। साथ ही अन्य भारतीय राज्यों में बलि-प्रतिपदा के नाम से भी मनाया जाता है।

( लेखिका प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं। )

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